अरुण जेटली के निधन से बीजेपी में 'दिल्ली-4' दौर हुआ समाप्त, 2004 से लेकर 2014 तक पार्टी के रहे मुखौटा

By भाषा | Updated: August 26, 2019 06:11 IST2019-08-26T06:11:25+5:302019-08-26T06:11:25+5:30

2006 में प्रमोद महाजन के निधन और वाजपेयी के राजनीति में अपनी सक्रियता कम करने के बाद आडवाणी पार्टी में सबसे बड़े नेता थे और ये चारों नेता उनके पीछे मजबूती से खड़े थे। इसी अवधि के दौरान इन चार नेताओं के लिए ‘दिल्ली-4’ नाम गढ़ा गया था।

Arun Jaitley's death marks end of Delhi-4 era in BJP | अरुण जेटली के निधन से बीजेपी में 'दिल्ली-4' दौर हुआ समाप्त, 2004 से लेकर 2014 तक पार्टी के रहे मुखौटा

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Highlightsअरुण जेटली के निधन के साथ ही भाजपा में ‘दिल्ली-4’ दौर समाप्त हो गया जो कि दूसरी पंक्ति के चार नेताओं का एक हाईप्रोफाइल समूह था जिसने 2004 से 2014 तक पार्टी मामलों में बेहद प्रभावी था। इसमें जेटली के अलावा वेंकैया नायडू, सुषमा स्वराज और अनंत कुमार शामिल थे।

भाजपा के दिग्गज नेता अरुण जेटली के निधन के साथ ही भाजपा में ‘दिल्ली-4’ दौर समाप्त हो गया जो कि दूसरी पंक्ति के चार नेताओं का एक हाईप्रोफाइल समूह था जिसने 2004 से 2014 तक पार्टी मामलों में बेहद प्रभावी था। इसमें जेटली के अलावा वेंकैया नायडू, सुषमा स्वराज और अनंत कुमार शामिल थे। ये सभी पार्टी संरक्षक लालकृष्ण आडवाणी के समर्थक थे। शनिवार को जेटली के निधन से पार्टी को एक और झटका लगा जो कि पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के निधन से अभी उबर भी नहीं पायी थी।

अनंत कुमार का निधन गत वर्ष नवम्बर में हुआ था और उपराष्ट्रपति बनने के बाद नायडू अब सक्रिय राजनीति में नहीं हैं। इन चारों नेताओं को राष्ट्रीय पटल पर प्रमुखता 1999 से 2004 के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के वक्त मिली जब इन्हें केंद्रीय कैबिनेट में जगह दी गई। यद्यपि वह प्रमोद महाजन थे जो समान स्तर के नेताओं में सबसे आगे थे और जिन्हें वाजपेयी व आडवाणी दोनों काफी तरजीह देते थे।

2006 में प्रमोद महाजन के निधन और वाजपेयी के राजनीति में अपनी सक्रियता कम करने के बाद आडवाणी पार्टी में सबसे बड़े नेता थे और ये चारों नेता उनके पीछे मजबूती से खड़े थे। इसी अवधि के दौरान इन चार नेताओं के लिए ‘दिल्ली-4’ नाम गढ़ा गया था क्योंकि ये सभी दिल्ली में रहते थे और इनका प्रभाव पार्टी के प्रत्येक निर्णय पर होता था।

वर्ष बीतने के साथ ही इनका पार्टी पर प्रभाव भी बढ़ता गया लेकिन उनके मतभेद भी बढ़ते रहे। यद्यपि आडवाणी की मौजूदगी ने इन सभी को एकजुट रखा। बदलाव 2009 में लोकसभा चुनाव में पार्टी की लगातार दूसरी हार के बाद आया क्योंकि तब भाजपा के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने पार्टी पर इसके लिए दबाव बनाया कि वह पार्टी के चेहरा के रूप में आडवाणी से आगे देखना शुरू करे।

इसके परिणामस्वरूप सुषमा स्वराज को लोकसभा में विपक्ष का नेता जबकि जेटली को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया। उसके बाद जेटली ने एक अलग रास्ता अपना लिया और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं अपने पुराने मित्र नरेंद्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने पर जोर देना शुरू किया।

2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी की जीत के बाद जेटली शीर्ष पद के लिए मोदी की उम्मीदवार के खुलेआम समर्थन में उतर आये। बाद में नायडू भी जेटली के साथ आ गए और मोदी का समर्थन करने लगे। यद्यपि पार्टी के एक वर्ग के नेताओं को आडवाणी को दरकिनार करने पर आपत्ति थी।

2014 लोकसभा चुनाव में पार्टी की जीत के बाद इन चारों नेताओं को कैबिनेट में स्थान दिया गया लेकिन वह जेटली थे जो मोदी के साथ नजदीकी की वजह से सबसे ताकतवर और प्रभावशाली नेता के तौर पर उभरे। उन्हें वित्त और रक्षा जैसे प्रमुख प्रभार दिये गए।

मोदी सरकार के पांच वर्ष की अवधि और नये अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में विधानसभा चुनावों में लगातार जीत के बाद पार्टी का नियंत्रण शाह मोदी की जोड़ी के हाथों में आ गया। नायडू अगस्त 2017 में उप राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए। यद्यपि जेटली मोदी के कोर समूह का हिस्सा बने रहे, दिल्ली..4 के अन्य नेता मंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों तक सीमित रहे। 

Web Title: Arun Jaitley's death marks end of Delhi-4 era in BJP

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