गंगा संरक्षण को उपवास पर बैठे एक और सामाजिक कार्यकर्ता एम्स में कराया गया भर्ती

By भाषा | Updated: October 18, 2018 00:13 IST2018-10-18T00:13:13+5:302018-10-18T00:13:13+5:30

गोपालदास को अस्पताल में दो दिन रखे जाने के बाद 15 अक्टूबर को छुट्टी दे दी गयी थी। जल त्यागने के कारण उन्हें 13 अक्टूबर को एम्स में भर्ती कराया गया था। अब ए‌‌क बार फिर से उनकी ‌तबीयत बिगड़ गई है।

Another social worker hospitalized in AIIMS for fasting on Ganga protection | गंगा संरक्षण को उपवास पर बैठे एक और सामाजिक कार्यकर्ता एम्स में कराया गया भर्ती

तस्वीर फेसबुक से

गंगा संरक्षण को लेकर उपवास पर बैठे सामाजिक कार्यकर्ता संत गोपालदास को बुधवार को एक बार फिर यहां एम्स में भर्ती कराया गया ।

यहां एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल ने बताया कि 36 वर्षीय गोपालदास को हरिद्वार स्थित मातृसदन आश्रम से शाम में संस्थान लाया गया।

गोपालदास को अस्पताल में दो दिन रखे जाने के बाद 15 अक्टूबर को छुट्टी दे दी गयी थी। जल त्यागने के कारण उन्हें 13 अक्टूबर को एम्स में भर्ती कराया गया था।

एम्स में मौजूद उनके शिष्य अरविंद हटवाल ने बताया कि गंगा नदी में खनन के खिलाफ संत गोपालदास ने पहले बदरीनाथ में उपवास शुरू किया था और उसके बाद 24 जून से वह त्रिवेणी और गंगा घाट पर उपवास कर रहे हैं ।

स्वामी सानंद ने गंगा सफाई के लिए दिया प्राणों का ब‌लिदान

उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे कांधला में 1932 में जन्मे गुरूदास अग्रवाल का आईआईटी प्रोफेसर से गंगा पुत्र संत स्वामी सानंद बनने का सफर उनके मशीनी ज्ञान से रूहानी संकल्प की कहानी सुनाता है। रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग के स्नातक गुरूदास उर्फ जीडी अग्रवाल ने 1950 में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग से अपने करियर की शुरुआत करते हुए नौकरी की और फिर उच्च शिक्षा के लिए आईआईटी कानपुर चले गए। वहां से पीएचडी करने विदेश गए और वापस आकर कानपुर आईआईटी में सेवाएं देने लगे।

17 वर्ष तक वहां सेवाएं देने वाले जेडी ने वर्ष 1977 में किसी विवाद के चलते कानपुर आईआईटी में डीन ऑफ फैकल्टी और एन्वायरनमेंट इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख से इस्तीफा दे दिया और कानपुर से दिल्ली चले आए। उन्होंने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सदस्य सचिव के रूप काम किया और यहां से पर्यावरण में आती गिरावट और नदियों में बढ़ता प्रदूषण उन्हें परेशान करने लगा। उन्होंने पर्यावरण के संरक्षण से जुड़ी कुछ संस्थाओं के साथ काम किया और प्रदूषण की जांच में काम आने वाले कुछ उपकरण भी बनाए। 

इस दौरान गंगा की धारा को अविरल बनाने की ललक उनके हर काम पर भारी पड़ने लगी और कुछ समय तक चित्रकूट स्थित महात्मा गांधी ग्रामीण विश्वविद्यालय में सेवाएं देने के बाद जीडी अग्रवाल वर्ष 2008 में पूरी तरह से गंगा के पुनर्जीविनीकरण अभियान से जुड़ गए। गंगा संरक्षण के लिए अब तक उन्होंने पांच उपवास किए और यह उनकी पांचवीं तपस्या थी, जो प्राणघातक रही। 

सन्यास की राह पर निकले स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के नए नामकरण वाले प्रो. जी डी अग्रवाल के नाम पर कई उपलब्धियां हैं। आईआईटी, कानपुर के एक विद्वान और समर्पित प्रोफेसर के रूप में हों, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सचिव हों या राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के सलाहकार हों, उनकी प्रतिभा और गहरी समझ ने उन्हें हर जगह सम्मान दिलाया।

चित्रकूट के एक छोटे से कमरे में एक स्टोव, एक बिस्तर और एक अटैची में दो-चार जोड़ी कपड़ों की सादगी और स्वावलंबन को संजोकर केवल ज्ञान बांटने वाले और पर्यावरण को बेहतर बनाने की जिद ठाने ग्रामोदय विश्वविद्यालय में मानद प्रोफेसर के रूप में भी प्रो. अग्रवाल ने खूब प्रतिष्ठा बटोरी।

एक सन्यासी और एक गंगापुत्र के रूप में प्रो. अग्रवाल का दृढ़ निश्चय ही था कि सरकार उत्तरकाशी पर तीन बांध परियोजनाओं को रद्द करने को विवश हुई और भगीरथी उद्गम क्षेत्र को पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील घोषित किया गया। सतही और भूगर्भ जल विज्ञान के क्षेत्र में देश के सर्वोच्च विज्ञानियों में शुमार प्रो. अग्रवाल के मार्गदर्शन में अलवर समेत देश के कई भागों में ‘डार्क जोन’ को ‘व्हाइट जोन’ में बदलने में सफलता मिली। 

दरअसल प्रो. जी डी अग्रवाल के लिए गंगा की निर्मलता और अविरलता विज्ञान का विषय नहीं, बल्कि आस्था का विषय रहा। वह कहते थे कि गंगा उनकी मां है और वह मां के लिए अपनी जान दे सकते हैं। अपनी धुन का पक्का बेटा गंगा के जल की धारा अविरल रखने की अपनी मांग के साथ 22 जून को एक बार फिर अनशन कर बैठा और 11 अक्टूबर को अपनी देह त्याग दी।

Web Title: Another social worker hospitalized in AIIMS for fasting on Ganga protection

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