अन्नाद्रमुक और द्रुमुक की मुफ्त रेवड़ियां वाले घोषणापत्रों से वित्तीय प्रभावों पर बहस छिड़ी

By भाषा | Updated: March 17, 2021 20:04 IST2021-03-17T20:04:41+5:302021-03-17T20:04:41+5:30

Announcements of free AIADMK and DMK manifestos sparked debate on financial implications | अन्नाद्रमुक और द्रुमुक की मुफ्त रेवड़ियां वाले घोषणापत्रों से वित्तीय प्रभावों पर बहस छिड़ी

अन्नाद्रमुक और द्रुमुक की मुफ्त रेवड़ियां वाले घोषणापत्रों से वित्तीय प्रभावों पर बहस छिड़ी

चेन्नई, 17 मार्च भारी कर्ज में डूबे तमिलनाडु में छह अप्रैल को होने वाले चुनाव से पहले मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए मुफ्त रेवड़ियां बांटने के वादों के सिलसिले में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक और विपक्षी द्रमुक के घोषणापत्रों पर वित्तीय प्रभावों के मद्देनजर बहस छिड़ गयी है।

दिवंगत द्रमुक प्रमुख एम करूणानिधि के 2006 के घोषणापत्र में मुफ्त रंगीन टीवी और अन्य चीजों का वादा क्या किया, भविष्य में राजनीतिक दलों के बीच ऐसे वादों जैसे मुफ्त लैपटॉप, दुधारू गाय, मिक्सर ग्राइंडर और सोने के मंगलसूत्र की होड़ लग गयी।

अन्नाद्रमुक और द्रमुक ऐसी रेवड़ियां बांटने के वादे पर एक -सा जान पड़ रहे हैं। इतना ही उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के निरसन एवं राजीव गांधी हत्याकांड के सात अभियुक्तों को रिहा करने जैसे विवादास्पद वादे भी कर डाले। अन्नाद्रमुक तीसरे कार्यकाल के लिए प्रयासरत है जबकि द्रमुक पार्टी एक दशक बाद सत्ता में वापसी की जी-तोड़ कोशिश कर रही है।

अन्नाद्रमुक के घोषणापत्र में मतदाताओं से मुफ्त वाशिंग मशीन, सभी के लिए घर, सौर कुकर, शिक्षा ऋण माफी, घर में बिना किसी सरकारी नौकरी वाले परिवारों को सरकारी नौकरी आदि वादे किए गए हैं जबकि द्रमुक ने कोविड-19 प्रभावित चावल राशनकार्ड धारकों के लिए 4000 रूपये, स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में 75 फीसद आरक्षण, विभिन्न ऋणों की माफी और विभिन्न सहायताएं आदि का वादा किया है।

आर्थिक मोर्च पर विशेषज्ञ महसूस करते हैं कि नयी सरकार को भारी वित्तीय घाटा विरासत में मिलेगा और उस पर विकास कार्यक्रमों एवं चुनावी वादों के वास्ते नया कोष जुटाने के बीच संतुलन कायम करने का बोझ भी होगा।

उनके अनुसार इससे कई चुनौतियों खासकर चुनाव के बाद कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने में असर पड़ेगा। वैसे दोनों ही दल दलील देते हैं कि उनके वादे सरकारी योजनाओं में तब्दील हो जायेंगे।

पूर्व केंद्रीय राजस्व सचिव एम आर शिवरमण ने कहा, ‘‘ मेरे विचार से दोनों दलों द्वारा रेवड़ियों की घोषणा एक परिपाटी सी बन गयी है। मुझे आश्चर्य होता है कि क्या किसी ने इस पर गौर किया कि सत्ता में आने पर यदि पार्टी को अपने चुनावी वादे लागू करने पड़े तो उसका वित्तीय बोझ क्या होगा।’’

मद्रास स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स के निदेशक और प्रोफेसर के आर षणमुगम ने कहा, ‘‘ लोकप्रिय योजनाओं के क्रियान्वायन में बार बार होने वाले खर्च के लिए भारी धनराशि की जरूरत हो सकती है और सरकार के लिए अन्य विकास कार्यों के वास्ते समय एवं संसाधन बमुश्किल ही बचेगा।

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Web Title: Announcements of free AIADMK and DMK manifestos sparked debate on financial implications

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