अपील में विलंब पर नाराज न्यायालय ने कहा, फाइल पर बैठने वाले अधिकारियों पर कभी कार्रवाई नहीं होती

By भाषा | Updated: December 22, 2020 16:21 IST2020-12-22T16:21:13+5:302020-12-22T16:21:13+5:30

Angry over delay in appeal, the court said, no action is taken against the officers sitting on file | अपील में विलंब पर नाराज न्यायालय ने कहा, फाइल पर बैठने वाले अधिकारियों पर कभी कार्रवाई नहीं होती

अपील में विलंब पर नाराज न्यायालय ने कहा, फाइल पर बैठने वाले अधिकारियों पर कभी कार्रवाई नहीं होती

नयी दिल्ली, 22 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने बार बार अप्रसन्नता व्यक्त करने के बावजूद सरकारी प्राधिकारियों द्वारा अपील दायर करने में विलंब के अनवरत सिलसिले की निन्दा करते हुये कहा है कि यह विडंबना ही है कि फाइल पर बैठने वाले अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं होती।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय की पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के पिछले साल फरवरी के आदेश के खिलाफ उप वन संरक्षक की अपील खारिज करते हुये विलंब से अपील दायर करने के रवैये की निन्दा की। यही नहीं, पीठ ने ‘न्यायिक समय बर्बाद’ करने के लिये याचिकाकर्ता पर 15,000 रूपए का जुर्माना भी लगाया।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘यह विडंबना ही है कि बार बार कहने के बावजूद फाइल पर बैठने और कुछ नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘इस मामले में तो अपील 462 दिन के विलंब से दायर की गयी और इस बार भी इसकी वजह अधिवक्ता की बदला जाना बताई गयी है। हमने सिर्फ औपचारिकता के लिये इस न्यायालय आने के बार बार राज्य सरकारों के इस तरह के प्रयासों की निन्दा की है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारी प्राधिकारी इस न्यायालय में विलंब से अपील इस तरह दाखिल करते हैं जैसे कानून में निर्धारित समय सीमा उनके लिये नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘विशेष अनुमति याचिका 462 दिन के विलंब से दायर की गयी है। यह एक और ऐसा ही मामला है जिसे हमने सिर्फ औपचारिकता पूरी करने और वादकारी का बचाव करने में लगातार लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को बचाने के लिये इस न्यायालय में दायर होने वाले ‘प्रमाणित मामलों’ की श्रेणी में रखा है।’’

शीर्ष अदालत ने इसी साल अक्टूबर में ऐसे ही एक मामले में सुनाये गये फैसले का जिक्र करते हुये कहा कि उसने ‘‘प्रमाणित मामलों’ को परिभाषित किया है जिसका मकसद प्रकरण को इस टिप्पणी के साथ बंद करना होता है कि इसमे कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि शीर्ष अदलत ने अपील खारिज कर दी है।

याचिकाकर्ता के वकील ने जब यह दलील दी कि यह बेशकीमती जमीन का मामला है तो पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय में अगर यह ऐसा था तो इसके लिये जिम्मदार उन अधिकारियों को जुर्माना भरना होगा जिन्होंने इस याचिका का बचाव किया।

पीठ ने कहा ‘‘ अत: हम इस याचिका को विलंब के आधार पर खारिज करते हुये याचिकाकता पर न्यायिक समय बर्बाद करने के लिये 15,000 रूपए का जुर्माना भी लगा रहे हैं।’’

न्यायालय ने कहा ‘‘ जुर्माने की राशि ज्यादा निर्धारित की जाती लेकिन एक युवा अधिवक्ता हमारे सामने पेश हुआ है और हमने इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुये यह रियायत दी है।’’

न्यायालय ने जुर्माने की राशि उन अधिकारियों से वसूल करने का निर्देश दिया है जो शीर्ष अदालत में इतने विलंब से अपील दायर करने के लिये जिम्मेदार हैं।

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Web Title: Angry over delay in appeal, the court said, no action is taken against the officers sitting on file

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