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नागरिकता संशोधन विधेयकः पूर्वोत्तर के मुख्यमंत्रियों और संगठनों से लगातार बैठक कर रहे हैं अमित शाह, टटोली जा रही नब्ज

By भाषा | Updated: November 29, 2019 19:25 IST

नागरिकता संशोधन विधेयक: जिन संगठनों के साथ अमित शाह चर्चा का कार्यक्रम है उनमें नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन, ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन एवं मेघालय, नगालैंड और अरूणाचल प्रदेश के छात्र संगठन शामिल हैं।

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ठळक मुद्देकेंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह नागरिकता अधिनियम में संशोधन के लिए पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों, छात्र संगठनों और राजनीतिक पार्टियों के साथ लगातार बैठकें कर रहे हैं। धिकारियों ने बताया कि शाह लगातार इस सिलसिले में बैठक ले रहे हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह नागरिकता अधिनियम में संशोधन के लिए पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों, छात्र संगठनों और राजनीतिक पार्टियों के साथ लगातार बैठकें कर रहे हैं। अधिकारियों ने बताया कि शाह लगातार इस सिलसिले में बैठक ले रहे हैं। शुक्रवार को हुई बैठक के अलावा कल और तीन दिसंबर को भी शाह बैठक करेंगे।

जिन संगठनों के साथ उनकी चर्चा का कार्यक्रम है उनमें नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन, ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन एवं मेघालय, नगालैंड और अरूणाचल प्रदेश के छात्र संगठन शामिल हैं। एक अधिकारी ने बताया कि मुख्यमंत्रियों के साथ शनिवार को बैठक होगी।

उन्होंने बताया कि कई राजनीतिक दलों के नेता --राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के क्षेत्रीय और राज्य प्रमुख दोनों -- सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों के प्रमुखों को भी चर्चा के लिए आमंत्रित किया गया है। नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर में कई संगठनों की ओर से किए गए जोरदार प्रदर्शनों के मद्देनजर शाह यह बैठकें कर रहे हैं।

नागरिकता अधिनियम 1955 में प्रस्तावित संशोधन पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के हिन्दू, सिखों, बौद्ध, जैन, पारसियों और ईसाइयों को भारत की नागरिकता देने की बात कहता है, भले ही उनके पास कोई उचित दस्तावेज नहीं हों। भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह वादा किया था।

पूर्वोत्तर के लोगों के एक बड़े तबके और संगठनों ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि यह 1985 में हुए असम समझौते के प्रावधानों को प्रभावहीन कर देगा। यह समझौता 24 मार्च 1971 के बाद के सभी अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने की बात कहता है, भले ही उनका धर्म कुछ भी हो।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा और कुछ अन्य राजनीतिक पार्टियां भी इस विधेयक का विरोध कर रही हैं और उनका कहना है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है। भाजपा नीत राजग ने अपने पिछले कार्यकाल में लोकसभा में इस संशोधन विधेयक को पेश किया था और इसे पारित करा लिया था लेकिन पूर्वोत्तर में जबर्दस्त विरोध होने की वजह से इसे राज्यसभा में पेश नहीं कर पाई थी।

लोकसभा के भंग होने की वजह से विधेयक निष्प्रभावी हो गया। विधेयक के मुताबिक, 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए लोगों को इससे फायदा होगा। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि 31 दिसंबर 2014 की तारीख में भी बदलाव की संभावना है।

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