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खूंटी के कोचांग में पांच युवतियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म के दूसरे मामले में सभी आरोपी बरी

By भाषा | Updated: December 6, 2019 06:09 IST

अभियोजन की ओर से इस मामले में सिर्फ एक गवाही दर्ज कराई गई थी और एनजीओ की युवतियों और अन्य सहकर्मियों की गाड़ी का ड्राइवर संतोष हेंब्रम ही इस मामले में अपनी गवाही देने अदालत पहुंचा था।

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ठळक मुद्देसभी पर महिलाओं को जंगल में ले जाकर मारपीट करने, पेशाब पिलाने और बंधक बनाने का आरोप था। अभियोजन की ओर से इस मामले में सिर्फ एक गवाही दर्ज कराई गई थीइस मामले में उस समय खूंटी के इलाके में पत्थलगड़ी करवाने वाले गिरोह का भी हाथ होना पाया गया था। 

झारखंड के खूंटी की अदालत ने प्राथमिकी दर्ज कराने वाले एक गैरसरकारी संगठन के संचालक समेत किसी गवाह के अदालत में पेश न होने के चलते पिछले वर्ष कोचांग के जंगलों में पांच युवतियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म से जुड़े दूसरे मामले में एक पादरी समेत सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया है। इस मामले में सिर्फ एनजीओ का वाहन चालक ही गवाह के तौर पर पेश हुआ था।

खूंटी के न्यायाधीश राजेश कुमार की अदालत ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कराने वाले गैर सरकारी संगठन के संचालक संजय शर्मा तथा अन्य गवाहों के अदालत में पेश नहीं होने के कारण साक्ष्य के अभाव में इस मामले के आरोपी पादरी अल्फोंस सहित सभी छह आरोपियों को बुधवार को बरी कर दिया। बरी होने वालों में स्थानीय चर्च का फादर अल्फोंस आइंद, बाजी सामद उर्फ टकला, अजुब सांडीपूर्ति, जोनास मुंडा, जॉन जुनास तिड़ू और बलराम सामद शामिल है।

प्राथमिकी के अनुसार इसी चर्च से पांच आदिवासी युवतियों का अपहरण कर उनके साथ दुष्कर्म और अप्राकृतिक कर्म किया गया था। महत्वपूर्ण यह है कि इस मामले में पीड़ित युवतियों की ओर से दर्ज प्राथमिकी में पादरी समेत सभी छह आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी जा चुकी है और वह सभी बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं। आरोपियों के अधिवक्ता सुभाशीष सोरेन ने बताया कि अभियोजन पक्ष की ओर से एक प्रत्यक्षदर्शी गैर सरकारी संगठन के वाहन चालक के अलावा और कोई भी गवाह इस मामले में अदालत में पेश ही नहीं हुआ जबकि अदालत ने गवाहों की पेशी के लिए गैर जमानती वारंट भी जारी किये थे। वारंट के तामील किये जाने के प्रमाण अदालत में पेश नहीं किये गये और अदालत ने अभियोजन पक्ष की गवाही बंद कर दी। अदालत में मामले के शिकायतकर्ता एनजीओ संचालक संजय शर्मा के पेश न होने से इस मामले में दर्ज करायी गयी दूसरी प्राथमिकी की अदालत में पुष्टि ही नहीं हो सकी।

सामूहिक दुष्कर्म के इस मामले में दो प्राथमिकियां दर्ज की गई थीं। पहली प्राथमिकी दुष्कर्म पीड़ितों की ओर से और दूसरी एनजीओ संचालक संजय शर्मा की ओर से दर्ज कराई गयी थी। दुष्कर्म पीड़ित युवतियों की ओर से दर्ज कराये पहले मामले में निचली अदालत ने 17 मई 2019 को फादर अल्फोंस सहित सभी छह आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है लेकिन दूसरे मामले में गवाहों की पेशी न होने से अभियोजन पक्ष मामला साबित करने में नाकाम रहा। इस कारण अदालत ने सभी आरोपियों को बुधवार शाम बरी कर दिया। सुनवाई के दौरान फादर अल्फोंस आइंद की ओर से अधिवक्ता शुभाशीष सोरेन ने अदालत को बताया कि इस मामले में उनकी कोई भूमिका नहीं है। उन पर लगाए गए सभी आरोप बेबुनियाद है ।

सभी पर महिलाओं को जंगल में ले जाकर मारपीट करने, पेशाब पिलाने और बंधक बनाने का आरोप था। अभियोजन की ओर से इस मामले में सिर्फ एक गवाही दर्ज कराई गई थी और एनजीओ की युवतियों और अन्य सहकर्मियों की गाड़ी का ड्राइवर संतोष हेंब्रम ही इस मामले में अपनी गवाही देने अदालत पहुंचा था। खूंटी में पत्थलगड़ी के दौरान नुक्कड़ नाटक से लोगों को सामाजिक मुद्दों पर जागरूक करने पहुंची पांच आदिवासी युवतियों के साथ जून 2018 में सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। इस मामले में दो प्राथमिकी दर्ज की गई। इसमें फादर अल्फोंस आइंद सहित छह को आरोपित बनाया गया था। इस मामले में उस समय खूंटी के इलाके में पत्थलगड़ी करवाने वाले गिरोह का भी हाथ होना पाया गया था। 

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