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खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना होगा: मोदी

By भाषा | Updated: December 16, 2021 18:01 IST

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आणंद (गुजरात), 16 दिसंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि भले ही रसायन और उर्वरकों ने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो लेकिन अब खेती को रसायन की प्रयोगशाला से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ने का समय आ गया है और इस दिशा में कृषि से जुड़े प्राचीन ज्ञान को ना सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी आवश्यकता है।

प्राकृतिक खेती पर यहां आयोजित राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन सत्र को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पराली जलाने के मुद्दे पर भी चिंता जताई ओर कहा कि इससे खेतों की उत्पादकता प्रभावित होती है।

उन्होंने ‘‘इलाज से परहेज बेहतर’’ तात्पर्य वाली एक गुजराती कहावत का उल्लेख करते हुए कहा कि इससे पहले की खेती से जुड़ी समस्याएं भी विकराल हो जाएं, उससे पहले बड़े कदम उठाने का यह सही समय है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह सही है कि रसायन और उर्वरक ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करना होगा और अधिक ध्यान देना होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘इससे पहले खेती से जुड़ी समस्याएं भी विकराल हो जाएं, बड़े कदम उठाने का यह सही समय है। हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। जब मैं प्रकृति की प्रयोगशाला की बात करता हूं तो ये पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि खेती में उपयोग होने वाले खाद और कीटनाशक दुनिया के विभिन्न कोनों से अरबों-खरबों रुपए खर्च करके लाना होता है और इस वजह से खेती की लागत भी बढ़ती है, किसान का खर्च बढ़ता है और गरीब की रसोई भी महंगी होती है।

उन्होंने कहा कि यह समस्या किसानों और सभी देशवासियों की सेहत से भी जुड़ी है, इसलिए सतर्क व जागरूक रहने की आवश्यकता है।

मोदी ने किसानों से प्राकृतिक खेती को अपनाने का आह्वान किया और कहा कि इस दिशा में नए सिरे से शोध करने होंगे और प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक सांचे में ढालना होगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती का सबसे अधिक लाभ छोटे किसानों को होगा और यदि वह प्राकृतिक खेती का रुख करेंगे तो उनकी स्थिति और बेहतर होगी।

उन्होंने सभी राज्यों से प्राकृतिक खेती को जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया और कहा कि आत्मनिर्भर भारत तब ही बन सकता है जब उसकी कृषि आत्मनिर्भर बने, एक-एक किसान आत्मनिर्भर बने। और ऐसा तभी हो सकता है जब अप्राकृतिक खाद और दवाइयों के बदले, मिट्टी का संवर्धन, गोबर-धन से व प्राकृतिक तत्वों से करें।

उन्होंने कहा, ‘‘कृषि के अलग-अलग आयाम हो, खाद्य प्रसंस्करण हो या फिर प्राकृतिक खेती हो, यह विषय 21वीं सदी में भारतीय कृषि का कायाकल्प करने में बहुत मदद करेगा। आजादी के अमृत महोत्सव में आज समय अतीत का अवलोकन करने और उनके अनुभवों से सीख लेकर नए मार्ग बनाने का भी है।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद के दशकों में जिस तरह देश में खेती हुई और जिस दिशा में वह बढ़ी, वह सभी ने बहुत बारीकी से देखा है।

उन्होंने कहा, ‘‘अगले 25 वर्ष का जो हमारा सफर है, वह नई आवश्यकताओं और नयी चुनौतियों के अनुसार अपनी खेती को ढालने का है।’’

पिछले सात वर्ष में खेती और कृषि के क्षेत्र में उठाए गए विभिन्न कदमों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आज दुनिया भर में खेती को विभिन्न चुनौतियों से दो चार होना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि कम लागत और ज्यादा मुनाफा ही प्राकृतिक खेती है और आज दुनिया जितनी आधुनिक हो रही है, उतना ही वह जड़ों से जुड़ रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘प्राकृतिक खेती से जिन्हें सबसे अधिक फायदा होगा, वह हमारे देश के 80 प्रतिशत छोटे किसान हैं। वह छोटे किसान जिनके पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है। इनमें से अधिकांश किसानों का काफी खर्च, रासायनिक उर्वरकों पर होता है। अगर वह प्राकृतिक खेती की तरफ मुड़ेंगे तो उनकी स्थिति और बेहतर होगी।’’

पराली जलाने का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि नया सीखने के साथ किसानों को उन गलतियों को भुलाना भी पड़ेगा जो खेती के तौर-तरीकों में आ गई हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘खेत में आग लगाने से धरती अपनी उपजाऊ क्षमता खोती जाती है। फसल के अवशेषों को जलाने की हमारे यहां परंपरा सी पड़ गई है।’’

उन्होंने कहा कि आज प्रौद्योगिकी के इस युग में टेक्नोलजी की ताकत है, कितने साधन हैं, मौसम की भी जानकारी है।

उन्होंने कहा, ‘‘अब तो हम किसान मिलकर के एक नया इतिहास बना सकते हैं। दुनिया जब ग्लोबल वार्मिंग को लेकर परेशान है, उसका रास्ता खोजने में भारत का किसान अपने परंपरागत ज्ञान के द्वारा उपाय दे सकता है। हम मिलकर के कुछ कर सकते हैं।’’

इस शिखर सम्मेलन में प्राकृतिक खेती पर ध्यान केन्द्रित किया गया और किसानों को प्राकृतिक खेती के तरीके अपनाने के लाभों के बारे में सभी आवश्यक जानकारी उपलब्‍ध कराई गई।

केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह ने भी इस सम्मेलन को संबोधित किया। इस अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल सहित कई नेता व केंद्रीय मंत्री उपस्थित थे। पांच हजार से अधिक किसानों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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