कृषि कानून विवाद: सरकार और किसानों के बीच बातचीत की प्रक्रिया से न्यायालय बेहद निराश

By भाषा | Updated: January 12, 2021 00:00 IST2021-01-12T00:00:23+5:302021-01-12T00:00:23+5:30

Agricultural law dispute: Court disappointed by the process of negotiation between the government and farmers | कृषि कानून विवाद: सरकार और किसानों के बीच बातचीत की प्रक्रिया से न्यायालय बेहद निराश

कृषि कानून विवाद: सरकार और किसानों के बीच बातचीत की प्रक्रिया से न्यायालय बेहद निराश

नयी दिल्ली 11 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों के विरोध प्रदर्शन से निबटने के तरीके पर सोमवार को केन्द्र को आड़े हाथ लिया और कहा कि किसानों के साथ उसकी बातचीत के तरीके से वह ‘बहुत निराश’ है। न्यायालय ने कहा कि इस विवाद का समाधान खोजने के लिये वह अब एक समिति गठित करेगा।

इस बीच कृषि मंत्रालय ने न्यायालय में हलफनामा दायर कर सरकार की तरफ से किसानों के साथ बातचीत के लिये किये गए प्रयासों का उल्लेख किया वहीं दिल्ली पुलिस की तरफ से न्यायालय में याचिका दायर कर किसानों को 26 जनवरी की प्रस्तावित ‘ट्रैक्टर रैली’ या किसी भी तरह के मार्च पर रोक लगाने का आदेश देने का अनुरोध किया गया है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुये यहां तक संकेत दिया कि अगर सरकार इन कानूनों का अमल स्थगित नहीं करती है तो वह उन पर रोक लगा सकती है। पीठ ने कहा कि हम पहले ही सरकार को काफी वक्त दे चुके हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘मिस्टर अटॉर्नी जनरल, हम पहले ही आपको काफी समय दे चुके हैं, कृपया संयम के बारे में हमें भाषण मत दीजिये।’’

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि शीर्ष अदालत ने सरकार द्वारा इस स्थिति से निबटने के संबंध में ‘काफी सख्त टिप्पणियां’ की हैं।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हमारे यह कहना ही सबसे निरापद बात थी।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में कृषि कानूनों और किसानों के आन्दोलन के संबंध में वह हिस्सों में आदेश पारित करेगी।

पीठ ने इसके साथ ही पक्षकारों से कहा कि वे शीर्ष अदालत द्वारा गठित की जाने वाली पीठ के अध्यक्ष के लिये पूर्व प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा सहित दो-तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों के नामों का सुझाव दें।

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘यह सब क्या हो रहा है? राज्य आपके कानूनों के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम बातचीत की प्रक्रिया से बेहद निराश हैं। हम आपकी बातचीत के बारे में कोई छिटपुट टिप्पणियां नहीं करना चाहते लेकिन हम इस प्रक्रिया से बहुत निराश हैं।’’

शीर्ष अदालत तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली और दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले किसानों को हटाने के लिये याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी। न्यायालय ने कहा कि इस समय वह इन कानूनों को खत्म करने के बारे में बात नहीं कर रही है।

पीठ ने कहा, ‘‘यह बहुत ही संवेदनशील स्थति है। हमारे सामने एक भी ऐसी याचिका नहीं है जो इन कानूनों को लाभकारी बता रही हो।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ नहीं हैं। आप हमें बतायें कि क्या सरकार इन कृषि कानूनों को स्थगित रखने जा रही है या हम ऐसा करेंगे।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह कहते हुये दुख हो रहा है कि केन्द्र इस समस्या और किसान आन्दोलन को नहीं सुलझा पाया।’’

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी कि किसी भी कानून पर उस समय तक रोक नहीं लगाई जा सकती जब तक न्यायालय यह नहीं महसूस करे कि इससे मौलिक अधिकारों या संविधान की योजना का हनन हो रहा है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारी मंशा यह देखने की है कि क्या हम इस सबका कोई सर्वमान्य समाधान निकाल सकते हैं। इसीलिए हमने आपसे (केन्द्र) पूछा कि क्या आप इन कानून को कुछ समय के लिये स्थगित रखने के लिये तैयार हैं। लेकिन आप समय निकालना चाहते थे।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हमें नहीं पता कि क्या आप समाधान का हिस्सा हैं या समस्या का हिस्सा हैं।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला दिन प्रतिदिन बिगड़ रहा है और लोग आत्महत्या कर रहे हैं। न्यायालय ने इस समस्या के समाधान के लिये समिति गठित करने का अपना विचार दोहराते हुये कहा कि इसमें सरकार और देश भर के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा ।

पीठ ने कहा, ‘‘अगर समिति की सलाह होगी तो वह इन कानूनों के अमल पर रोक लगा देगा। पीठ ने कहा कि किसान इन कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और वे अपनी आपत्तियां समिति के समक्ष रख सकते हैं।

साथ ही पीठ ने सख्त लहजे में कहा कि अगर सरकार खुद इस पर अमल नहीं स्थगित करेगी तो उसे इस पर रोक लगानी होगी।

यही नहीं, इन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की यूनियनों से भी पीठ ने कहा, ‘‘आपका भरोसा है या नहीं, लेकिन हम उच्चतम न्यायालय हैं और हम अपना काम करेंगे।’’

पीठ ने कहा कि उसे नहीं मालूम कि आन्दोलनरत किसान कोविड-19 महामारी के लिये निर्धारित मानकों के अनुरूप उचित दूरी का पालन कर रहे हैं या नहीं लेकिन वह उनके लिये भोजन और पानी को लेकर चिंतित हैं।

पीठ ने यह भी आशंका जताई कि इस आन्दोलन के दौरान शांतिभंग करने वाली कुछ घटनायें भी हो सकती हैं।

पीठ ने कहा कि इन कानूनों के अमल पर रोक लगाये जाने के बाद आन्दोलनकारी किसान अपना आन्दोलन जारी रख सकते हैं क्योंकि न्यायालय किसी को यह कहने का मौका नहीं देना चाहता कि उसने विरोध की आवाज दबा दी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि बातचीत सिर्फ इसलिए टूट रही है क्योंकि केन्द चाहता है कि इन कानूनों के प्रत्येक उपबंध पर चर्चा की जाये और किसान चाहते हैं कि इन्हें खत्म किया जाये।

पीठ ने कहा, ‘‘हम किसी भी कानून तोड़नेवाले को संरक्षण देने नहीं जा रहे हैं। हम जान माल के नुकसान को बचाना चाहते हैं।’’

कानून व्यवस्था का मुद्दा उठाये जाने पर पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘इन मुद्दों को पुलिस देखेगी। विरोध प्रदर्शन का अधिकार बरकरार है और गांधीजी ने सत्याग्रह किया था। वह आन्दोलन कहीं ज्यादा बड़ा था।’’

अटॉर्नी जनरल ने जब पीठ से कहा कि सरकार और किसानों के बीच अगली दौर की बातचीत 15 जनवरी को होने वाली है और इसलिए न्यायालय को आज कोई आदेश पारित नहीं करना चाहिए, पीठ ने कहा, ‘‘हमें नहीं लगता कि केन्द्र ठीक से इस मसले को ले रही है। हमें ही आज कोई कार्रवाई करनी होगी। हमें नहीं लगता कि आप प्रभावी हो रहे हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘अगर कानून को स्थगित कर दिया जाये तो बातचीत से कोई रास्ता निकल सकता है।’’

न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, ‘‘मुझे जोखिम लेने दीजिये और कहने दीजिये प्रधान न्यायाधीश चाहते हैं कि वे (आन्दोलनकारी किसान) वापस अपने घर लौटें।’’

इस बीच, केंद्र की ओर से उच्चतम न्यायालय को बताया गया कि ''सीमित संख्या'' में प्रदर्शनकारी किसानों के साथ बातचीत के गंभीर प्रयास किए गए।

अदालत द्वारा इस मामले को सुलझाने के प्रयासों को लेकर निराशा जताए जाने के चलते कृषि मंत्रालय ने एक शपथपत्र दायर कर केंद्र की ओर से गतिरोध समाप्त करने के संबंध में की गई कोशिशों से अदालत को अवगत कराया गया।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल की ओर से दायर शपथपत्र में कहा गया कि इसे केवल उन गलत धाराणाओं के चलते दायर किया गया, जिसमें प्रदर्शन स्थल पर मौजूद गैर-किसान तत्वों ने जानबूझकर पैदा किया है और इसके लिए मीडिया/सोशल मीडिया का सहारा लिया गया।

इस बीच, केंद्र ने सोमवार को शीर्ष अदालत से 26 जनवरी को प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली अथवा किसी भी तरह के मार्च पर रोक लगाने के आदेश देने का अनुरोध किया।

दिल्ली पुलिस के माध्यम से दायर एक आवेदन में केंद्र ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियों को प्रदर्शनकारियों के एक छोटे समूह अथवा संगठन द्वारा गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर रैली निकालने की योजना बनाई है।

आवेदन में कहा गया, '' इस तरह के मार्च अथवा रैली के कारण गणतंत्र दिवस उत्सव में व्यवधान पैदा हो सकता है और कानून-व्यवस्था की स्थिति प्रभावित हो सकती है। ऐसे में शीर्ष अदालत से किसी भी तरह के मार्च, रैली अथवा वाहन रैली को रोकने के संबंध में अनुरोध किया जाता है।''

तीन कृषि कानूनों को लेकर केन्द्र और किसान यूनियनों के बीच आठ दौर की बातचीत के बावजूद कोई रास्ता नहीं निकला है क्योंकि केन्द्र ने इन कानूनों को समाप्त करने की संभावना से इंकार कर दिया है जबकि किसान नेताओं का कहना है कि वे अंतिम सांस तक इसके लिये संघर्ष करने को तैयार हैं और ‘कानून वापसी’ के साथ ही उनकी ‘घर वापसी’ होगी।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले 12 अक्टूबर को इन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केन्द्र को नोटिस जारी किया था।

ये तीन कृषि कानून हैं-- कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार, कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून। राष्ट्रपति रामनाथ कोविद की संस्तुति मिलने के बाद से ही इन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर किसान आन्दोलनरत हैं।

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