डरे हैं लेकिन कश्मीर नहीं छोड़ रहे क्योंकि लोग सज्जन हैं: आतंकी हमलों के बाद बोले गैर स्थानीय श्रमिक

By भाषा | Updated: October 18, 2021 21:53 IST2021-10-18T21:53:54+5:302021-10-18T21:53:54+5:30

Afraid but not leaving Kashmir because people are gentlemen: Non-local workers after terror attacks | डरे हैं लेकिन कश्मीर नहीं छोड़ रहे क्योंकि लोग सज्जन हैं: आतंकी हमलों के बाद बोले गैर स्थानीय श्रमिक

डरे हैं लेकिन कश्मीर नहीं छोड़ रहे क्योंकि लोग सज्जन हैं: आतंकी हमलों के बाद बोले गैर स्थानीय श्रमिक

श्रीनगर, 18 अक्टूबर कश्मीर में बिहार और अन्य प्रदेशों से आकर काम करने वाले दूसरे प्रवासी श्रमिकों की तरह संजय कुमार भी इस महीने आतंकवादियों द्वारा पांच गैर स्थानीय लोगों की हत्या के बाद से खौफ में हैं लेकिन कहते हैं कि वह कहीं नहीं जाएंगे क्योंकि यहां मजदूरी ऊंची है और लोग सज्जन हैं।

देश के कई हिस्सों से मजदूर हर साल मार्च की शुरुआत में चिनाई, बढ़ई का काम, वेल्डिंग और खेती जैसे कामों में कुशल और अकुशल श्रमिकों व कारीगरों के तौर पर काम के लिए घाटी में आते हैं और नवंबर में सर्दियों की शुरुआत से पहले घर वापस चले जाते हैं।

बिहार से आए 45 वर्षीय श्रमिक शंकर नारायण ने कहा, “हम डरे हुए हैं लेकिन हम बिहार वापस नहीं जा रहे हैं, कम से कम अभी तो नहीं। हम हर साल नवंबर के पहले सप्ताह में वापस जाते हैं और इस बार भी ऐसा ही होगा।”

नारायण की तरह बिहार से ही ताल्लुक रखने वाले कुमार ने कहा कि वह नवंबर के पहले सप्ताह में तय कार्यक्रम के अनुसार अपने पैतृक स्थान पर वापस जाएंगे।

नारायण पिछले 15 साल से हर बार मार्च में कश्मीर आते रहे हैं और घर लौटने से पहले नवंबर के पहले सप्ताह तक यहां काम करते हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर में रहने के दौरान उन्हें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा।

उन्होंने कहा, “लोग बेहद मददगार हैं। 2016 में जब पांच महीनों के लिये पूर्ण बंदी थी, हमें नुकसान नहीं होने दिया भले ही स्थानीय लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी।”

कुमार और नारायण ने कहा कि उन्हें अगर कहीं और इतनी मजदूरी मिल सकती तो वे यहां नहीं आते।

कुमार ने कहा, “हम अव्वल तो यहां पर आते ही नहीं, लेकिन घर पर मिलने वाली मजदूरी हमें यहां मिलने वाली मजदूरी से आधी भी नहीं है। साथ ही, यहां लोग बहुत दयालु और उदार होते हैं।”

कुमार (30) 2017 में मलेशिया गए थे लेकिन वह फिर घाटी लौट आए जहां वह खुद को ज्यादा “सम्मानित” महसूस करते हैं।

उन्होंने कहा, “मैं दो साल तक क्वालालंपुर में था लेकिन वह एक बुरा फैसला था। मुझे वीजा और काम के परमिट के लिये मोटी रकम चुकानी पड़ी। अंत में मैं बस किसी तरह घर वापस लौट सका।”

कुमार ने दावा किया कि विदेशों में निर्माण और सेवा क्षेत्र से जुड़े कामगारों को हेय दृष्टि से देखा जाता है।

बढ़ई का काम करने वाले उत्तर प्रदेश के रियाज अहमद (36) अपने पूरे परिवार -पत्नी और तीन बच्चों- को कश्मीर ले आए हैं।

अहमद ने कहा, “यहां का जीवन घर से बेहतर है। मुझे और मेरी पत्नी को नियमित रूप से काम मिलता है।” उन्हें कुछ वर्षों में अपना घर खरीदने के लिए पर्याप्त बचत कर लेने की उम्मीद है।

अहमद ने कहा, “मैं बढ़ई के तौर पर काम करता हूं जबकि मेरी पत्नी घरेलू सहायिका हैं। कमाई और बचत पर्याप्त है…मैं दो से तीन साल में सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में अपना घर खरीदने की स्थिति में रहूंगा।”

क्या वह गैर स्थानीय लोगों की हत्या के बाद से डरे हुए हैं?

उन्होंने अपने बच्चों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “डर तो लगता है पर भूख से ज्यादा डर लगता है। घर (सहारनपुर) पर हमें सही से दो वक्त का खाना भी नहीं मिल पाता।”

जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर और पुलवामा जिलों में शनिवार को आतंकियों ने पांच हत्याओं को अंजाम दिया और मरने वालों में दो गैर-स्थानीय लोग भी शामिल थे।

उनमें बिहार के अरविंद कुमार साह और सहारनपुर के सगीर अहमद शामिल थे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Afraid but not leaving Kashmir because people are gentlemen: Non-local workers after terror attacks

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे