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अफगान भूमि का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए : अफगान संकट पर दिल्ली सुरक्षा वार्ता

By भाषा | Updated: November 10, 2021 22:48 IST

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नयी दिल्ली, 10 नवंबर भारत, रूस, ईरान और पांच मध्य एशियाई देशों ने बुधवार को यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने का संकल्प लिया कि अफगानिस्तान को ‘‘वैश्विक आतंकवाद का पनाहगाह’’ नहीं बनने दिया जाएगा। साथ ही, उन्होंने यहां अपने शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों की बैठक के दौरान काबुल में एक खुली और अफगान समाज के सभी तबकों के प्रतिनिधित्व के साथ सही मायने में समावेशी सरकार का गठन करने का आह्वान किया।

अफगान संकट पर भारत की मेजबानी में हुई सुरक्षा वार्ता में आठ देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों ने अफगानिस्तान की संप्रभुता,एकता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने तथा इसके अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की जरूरत पर जोर दिया, जिसे तालिबान का समर्थन कर रहे पाकिस्तान के लिए एक परोक्ष संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

अफगानिस्तान में उभरती स्थिति की समीक्षा के लिए भारत की मेजबानी वाली दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता के अंत में इन आठ देशों ने एक घोषणापत्र में यह बात दोहराई कि आतंकवादी गतिविधियों को पनाह, प्रशिक्षण, साजिश रचने देने या वित्तपोषण करने देने में अफगान भू-भाग का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।

अफगानिस्तान में मंडराते मानवीय संकट का जिक्र करते हुए इसमें कहा गया है कि अधिकारियों ने अफगान लोगों को सहायता निर्बाध, सीधे तौर पर और आश्वस्त तरीके से उपलब्ध कराने की हिमायत की तथा कहा कि वह सहायता अफगान समाज के सभी तबकों के बीच गैर-भेदभावकारी तरीके से वितरित की जाए।

वार्ता में शामिल हुए मध्य एशियाई देशों में कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान हैं।

बैठक की अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने की।

वार्ता के बाद अधिकारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संयुक्त रूप से मुलाकात की, जिस दौरान उन्होंने (मोदी ने) अफगानिस्तान के संदर्भ में क्षेत्र के देशों द्वारा ध्यान केंद्रित किये जाने वाले चार पहलुओं पर जोर दिया।

आधिकारिक बयान के मुताबिक प्रधानमंत्री ने चार पहलुओं पर जोर दिया, जिनमें (अफगानिस्तान में) एक समावेशी सरकार की जरूरत, अफगान भू-भाग का आतंकवादी समूहों द्वारा इस्तेमाल किये जाने को कतई बर्दाश्त नहीं करने का रुख अपनाना, अफगानिस्तान से मादक पदार्थ व हथियारों की तस्करी को रोकने की एक रणनीति और उस देश में बढ़ते मानवीय संकट का समाधान करना शामिल है।

इसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने यह उम्मीद भी जताई कि क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता आधुनिकीकरण व प्रगतिशील संस्कृति तथा चरमपंथ रोधी प्रवृतियों की मध्य एशिया की परंपरा में नयी जान फूंकने का काम करेगी।

मुलाकात के दौरान वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों ने भारत द्वारा वार्ता का आयोजन किये जाने की सराहना की।

दिल्ली घोषणापत्र में कहा गया है कि अधिकारियों ने एक शांतिपूर्ण, सुरक्षित और स्थिर अफगानिस्तान के लिए मजबूत समर्थन दोहराया।

इसमें कहा गया है कि उन्होंने अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति से उभरी अफगान लोगों की समस्याओं को लेकर भी गहरी चिंता प्रकट की तथा कुंदुज, कंधार और काबुल में आतंकी हमलों की निंदा की।

इसमें कहा गया है, ‘‘सभी देशों ने अफगानिस्तान में मौजूदा राजनीतिक स्थिति और आतंकवाद, कट्टरपंथ व मादक पदार्थों की तस्करी से पैदा हो रहे खतरों तथा मानवीय सहायता की जरूरत पर विशेष ध्यान दिया। ’’

घोषणापत्र में आतंकी ढांचों को नष्ट करने तथा कट्टरपंथ की राह पर ले जाने वाली गतिविधियों को रोकने की जरूरत का जिक्र किया गया, ताकि अफगानिस्तान वैश्विक आतंकवाद का पनाहगाह नहीं बने।

सुरक्षा अधिकारियों ने एक खुली और सही मायने में समावेशी सरकार के गठन पर जोर दिया जो अफगानिस्तान के सभी लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती हो और जिसमें समाज के सभी तबके का प्रतिनिधित्व हो।

घोषणापत्र में कहा गया है कि प्रशासनिक व राजनीतिक ढांचे में समाज के सभी तबके का समावेश देश में राष्ट्रीय सुलह प्रक्रिया की सफलता के लिए जरूरी है।

अफगानिस्तान पर संबद्ध संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों को याद करते हुए भागीदार देशों ने इस बात का जिक्र किया कि संयुक्त राष्ट्र को उस देश में एक अहम भूमिका निभानी होगी और उसकी उपस्थिति बनाए रखनी होगी।

घोषणापत्र में कहा गया है कि अधिकारियों ने उस देश में बदतर होती सामाजिक-आर्थिक व मानवीय स्थिति पर चिंता प्रकट की तथा अफगान लोगों को तत्काल मानवीय सहायता उपलब्ध कराने की जरूरत को रेखांकित किया।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा कि अफगानिस्तान के हालिया घटनाक्रमों का न केवल अफगान लोगों के लिए, बल्कि क्षेत्र के लिए भी महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं।

घोषणापत्र में कहा गया है कि भागीदार देशों ने अफगानिस्तान में उभरती स्थिति, खासतौर पर सुरक्षा स्थिति की, और इसके क्षेत्रीय एवं वैश्विक निहितार्थों पर चर्चा की।

इसमें कहा गया है कि भागीदार देशों ने अफगानिस्तान में मौजूदा राजनीतिक स्थिति और आतंकवाद, कट्टरपंथ व मादक पदार्थ की तस्करी से उत्पन खतरों तथा मानवीय सहायता पर विशेष ध्यान दिया।

डोभाल ने अपनी टिप्पणी में कहा, ''अफगानिस्तान से उपजी चुनौतियों से निपटने के लिए क्षेत्र के देशों के बीच यह घनिष्ठ परामर्श, अधिक सहयोग और बातचीत और समन्वय का समय है।''

उन्होंने कहा, ''हम सभी उस देश के घटनाक्रम पर गहराई से नजर रख रहे हैं। इनके न सिर्फ अफगानिस्तान के लोगों के लिए बल्कि इसके पड़ोस व क्षेत्र के लिए भी महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं। ''

भारत ने चीन और पाकिस्तान को भी आमंत्रित किया था लेकिन दोनों देशों ने इसमें भाग नहीं लेने का फैसला किया।

घोषणापत्र के मुताबिक अधिकारियों ने कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए सहायता मुहैया करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और भविष्य में भी एक दूसरे से संपर्क मे बने रहने पर सहमत हुए।

घोषणापत्र में कहा गया है, ‘‘भागीदार देशों ने नयी दिल्ली में अफगानिस्तान पर तीसरी क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता का आयोजन करने के लिए भारत का शुक्रिया अदा किया। वे अगले दौर की वार्ता 2022 में आयोजित करने पर सहमत हुए। ’’

ईरान ने 2018 और 2019 में इसी रूपरेखा के तहत वार्ता की मेजबानी की थी।

ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव रियर एडमिरल अली शामखानी ने अफगानिस्तान में आतंकवाद, गरीबी और मानवीय संकट की चुनौतियों पर चर्चा की।

उन्होंने कहा, ''समाधान सभी जातीय समूहों की भागीदारी के साथ एक समावेशी सरकार के गठन के माध्यम से ही आता है।'' उन्होंने आशा व्यक्त की कि चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक तंत्र का तैयार किया जाएगा।

उन्होंने कहा, ''भारत ने जो भूमिका निभाई है, मैं उसके लिये उसका शुक्रिया अदा करना और सराहना करना चाहता हूं, क्योंकि अफगानिस्तान में उनकी बड़ी भूमिका है।''

रूस की सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पेत्रुशेव ने अफगान मुद्दे पर मॉस्को प्रारूप और तुर्क काउंसिल सहित विभिन्न संवाद तंत्रों का उल्लेख किया और इस बात पर जोर दिया कि उन्हें एक दूसरे की नकल नहीं करनी चाहिये बल्कि एक दूसरे का पूरक होना चाहिये।

पेत्रुशेव ने अफगान संकट से निकलने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए व्यावहारिक उपायों का भी आह्वान किया, जिसमें कहा गया था कि संवाद के मास्को प्रारूप में अफगानिस्तान मुद्दे को सुलझाने के प्रयासों के समन्वय की महत्वपूर्ण क्षमता है।

उन्होंने कहा, ''मास्को में, हमने तालिबान के साथ बातचीत आगे बढ़ाने के साथ-साथ क्षेत्र के सभी हितधारकों के प्रयासों को व्यावहारिक रूप से समन्वयित करने के संबंध में अपने देशों की स्थिति निर्धारित करने के लिए एक अच्छी नींव रखी।''

कजाखस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के प्रमुख करीम मासीमोव ने कहा कि अफगानिस्तान के अंदर स्थिति जटिल बनी हुई है।

उन्होंने कहा, ''तालिबान के सत्ता में आने के साथ, देश के अंदर की स्थिति जटिल बनी हुई है। एक प्रभावी सरकारी प्रणाली बनाने में कई बाधाएं हैं।''

ताजिकिस्तान के सुरक्षा परिषद के सचिव नसरुलो रहमतजोन महमूदज़ोदा ने कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति ने क्षेत्र के लिए अतिरिक्त जोखिम खड़ा कर दिया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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