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सेंट्रल विस्टा परियोजना को न्यायालय की मंजूरी पर कार्यकर्ताओं ने जतायी ‘निराशा’

By भाषा | Updated: January 5, 2021 20:35 IST

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नयी दिल्ली, पांच जनवरी सरकार की सेंट्रल विस्टा परियोजना को उच्चतम न्यायालय की मंजूरी पर पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने ‘‘निराशा’’ प्रकट की।

न्यायालय ने ‘सेंट्रल विस्टा’ परियोजना को मिली पर्यावरण मंजूरी और भूमि उपयोग में बदलाव की अधिसूचना को मंगलवार को बरकरार रखा और राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर के क्षेत्र में फैली इस महत्वाकांक्षी परियोजना का रास्ता साफ कर दिया।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया।

पर्यावरणविद भवरीन कंधारी ने कहा कि यह परियोजना पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है और सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थान का अतिक्रमण किया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह बहुत निराशाजनक फैसला है। यह परियोजना पर्यावरण के लिए बहुत नुकसानदेह है। दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। पहले ही पेड़ काटे जा चुके हैं। यह परियोजना सरकार द्वारा जनता के लिए खुले स्थानों का अतिक्रमण है। हर तरीके से यह भूमि पर कब्जा के समान है। ’’

इसी तरह के विचार जताते हुए वास्तुकार और ‘लोकपथ’ के कार्यकर्ता तथा मामले के याचिकाकर्ताओं में से एक लेफ्टिनेंट कर्नल अनुज श्रीवास्तव (सेवानिवृत्त) ने कहा कि परियोजना को मंजूरी देने के पहले इस पर विस्तृत चर्चा और सार्वजनिक सलाह-मशविरा करने की जरूरत थी।

श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘यह 611 पन्ने का फैसला है। अदालत ने हम सबको धैर्य से सुना। फैसला सर्वसम्मति वाला नहीं था लेकिन हम निराश और दुखी हैं। इस तरह की परियोजना के पहले और चर्चा तथा सार्वजनिक विचार-विमर्श होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘क्या हम अपने बच्चों के लिए ऐसी चीज छोड़ रहे हैं, जिसपर हमें गर्व होगा? हम अपने वकीलों के साथ मशविरा कर कानूनी विकल्प तलाश रहे हैं। लेकिन हम बहुत निराश हैं।’’

फैसले पर सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की सीनियर फेलो मंजू मेनन ने कहा कि उपाय के तौर पर ‘स्मॉग टावर’ पौधों को दूसरी जगह लगाने जैसे कदम पर नाकामी जगजाहिर है।

उन्होंने कहा, ‘‘संसद के लिए नए भवन को पर्यावरण मंजूरी प्रदान किए जाने को कई महत्वपूर्ण आधार पर चुनौती दी गयी जैसे कि विस्तृत और सम्यक असर आकलन नहीं किया गया। पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो सरकार ने इसके लिए विकल्पों पर भी विचार नहीं किया।’’

उन्होंने, ‘‘पीठ में असहमति वाला दृष्टिकोण याचिकाकर्ताओं के रूख को जायज करार देता है कि इन मुद्दों की पड़ताल करने और उसे सही करने की जरूरत थी। स्मॉग टावर और पौधों को दूसरी जगह लगाने जैसे कदम पर नाकामी पहले से जगजाहिर है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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