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स्मार्ट कार्ड के जरिये अदालत परिसरों में प्रवेश मिले : बार संगठन

By भाषा | Updated: October 12, 2021 16:48 IST

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नयी दिल्ली, 12 अक्टूबर (वार्ता) वकीलों के संगठनों ने दिल्ली उच्च न्यायालय को मंगलवार को सलाह दी कि अदालत परिसरों में वकीलों को डिजिटल चिप लगे स्मार्ट कार्ड के आधार पर ही प्रवेश दिया जाना चाहिए, ताकि उनकी पहचान का सत्यापन हो सके।

दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (डीएचसीबीए) और दिल्ली बार काउंसिल ने रोहिणी अदालत कक्ष में हालिया गोलीकांड में तीन व्यक्तियों की मौत के मद्देनजर अदालत परिसरों में सुरक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ के समक्ष कहा कि ये स्मार्ट कार्ड उच्चतम न्यायालय परिसर में प्रवेश सुनिश्चित करने के लिए वकीलों को जारी होने वाले ‘प्रॉक्सिमिटी कार्ड’ की तरह ही होंगे।

पीठ रोहिणी अदालत में 24 सितम्बर को हुई गोलीबारी की घटना के मद्देनजर अदालत परिसरों में सुरक्षा के संदर्भ में स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी।

न्यायालय ने इससे पहले केंद्र, दिल्ली सरकार और विभिन्न अधिवक्ता संघों सहित सभी हितधारकों से इस मामले में अपनी राय देने को कहा था, ताकि उसे संबंधित आदेश में शामिल किया जा सके।

दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित माथुर ने कहा, ‘‘वकीलों को सुप्रीम कोर्ट के ‘प्रॉक्सिमिटी कार्ड’ की तरह के पहचान पत्र के जरिये प्रवेश की अनुमति दी जा सकती है। इन डिजिटलीकृत कार्ड की मेकेनिकल स्कैनिंग होगी।’’

दिल्ली बार काउंसिल की ओर से पेश अधिवक्ता देवेंद्र सिंह ने कहा कि अदालत परिसरों में प्रवेश के नियमन के लिए वकीलों को चिप-युक्त नये कार्ड जारी किये जाएंगे। उन्होंने कहा कि सभी वकीलों को सुरक्षा जांच के नियमों का पालन करना चाहिए और ऐसा नहीं करने पर इसे कदाचार माना जायेगा।

डीएचसीबीए ने आगे सलाह दी कि वकीलों सहित सभी आगंतुकों की उन्नत मेटल डिटेक्टर्स का इस्तेमाल करके तलाशी ली जानी चाहिए तथा सभी वाहनों की जांच उच्च-तकनीक वाले उपकरणों से की जानी चाहिए। उसने सभी फेरीवालों का प्रवेश प्रतिबंधित करने की भी सलाह दी है। उसने कहा है कि केवल लाइसेंसधारक दुकानदारों को ही आने-जाने की अनुमति हो और उनके कर्मचारियों को भी पहचान-पत्र जारी किया जाना चाहिए।

बीसीडी ने तीन-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की सलाह दी है, जिसमें अदालत कक्ष के अंदर सादे पोशाक में पुलिसकर्मियों को तैनात करना, 24-घंटे का नियंत्रण कक्ष स्थापित करना और अदालत परिसर में सुरक्षा की निगरानी के लिए अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाना शामिल है।

दोनों वकीलों के निकायों का मत था कि विचाराधीन कैदियों को आभासी माध्यम (वर्चुअल मोड) से पेश किया जाना चाहिए और सुरक्षाकर्मियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।

इस मुद्दे पर एक अलग याचिका दायर करने वाले वकील की ओर से पेश अधिवक्ता रॉबिन राजू ने कहा कि बार के सभी सदस्यों को अदालतों में सुरक्षा जांच में सहयोग के लिए एक परामर्श जारी किया जाना चाहिए।

दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि उनके सुझाव ‘कमोबेश एक जैसे’ हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि भीड़भाड़ के कारण यह मसला और गंभीर होने वाला है। अदालतें आसान लक्ष्य हैं।”

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘कुल मिलाकर हमें व्यापक सुझाव मिले हैं।’ उन्होंने मामले की अगली सुनवाई के लिए 25 अक्टूबर की तारीख मुकर्रर की।

न्यायालय ने कहा, ‘हम उन प्रतिवादियों से भी बहुमूल्य सुझाव की उम्मीद करते हैं, जिन्होंने अब तक हलफनामा दाखिल नहीं किया है, ताकि अदालत परिसरों की सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश जारी करके करके मामले को बंद किया जा सके।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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