लाइव न्यूज़ :

अब्दुलरजाक गुरनाह : उपनिवेशवाद के दंश की पीड़ा को स्वर देने वाला संवेदनशील अफ्रीकी लेखक

By भाषा | Updated: October 10, 2021 11:18 IST

Open in App

नयी दिल्ली, 10 अक्टूबर उपनिवेशवाद भले ही कुछ खास कालखंड तक सीमित रहता हो लेकिन उसके दंश की स्मृतियों को समाज लंबे समय तक संजोये रखता है और इस वर्ष जिस अश्वेत लेखक अब्दुलरजाक गुरनाह को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला है, दरअसल उनका रचनात्मक संसार भी उन्हीं स्मृतियों की संवेदनशीलता को मुखरता देता है।

सात अक्तूबर को जब किसी ने गुरनाह को यह बताया कि उन्हें इस साल के साहित्य के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया तो उनके मन में सबसे पहले जो बात आयी, वह थी कि यह स्वांग या मजाक है। लेकिन यह एक सत्य है। विश्व भर के साहित्य के लिए 2021 का सबसे बड़ा सत्य।

गुरनाह का जन्म 20 दिसंबर 1948 को जंजाबीर में हुआ, जो अब तंजानिया में है। जंजाबीर में 1960 के दशक एक क्रांति हुई, जिसमें अरब मूल के लोगों का उत्पीड़न किया गया। उन हालात में 18 वर्षीय गुरनाह को विवशता में विस्थापित होकर ब्रिटेन में आना पड़ा।

इंग्लैंड में एक शरणार्थी के रूप में उन्होंने 21 वर्ष की आयु से लेखन प्रारंभ कर दिया और लेखन की भाषा बनायी अंग्रेजी जबकि उनकी मातृभाषा स्वाहिली थी। गुरनाह के साहित्य संसार में विस्थापन की पीड़ाओं को बखूबी महसूस किया जा सकता है।

गुरनाह का पहला उपन्यास ‘‘मैमोरी ऑफ डिपार्चर’’ 1987 में प्रकाशित हुआ। गुरनाह के लिए लेखन के क्या मायने हैं, इसे उनके शब्दों में बेहतर तरीके से समझा जा सकता है, ‘‘मेरे लिए लेखन के समूचे अनुभव को जो चीज प्ररित करती है, वह है विश्व में आपकी जगह खोने का विचार। ’’

गुरनाह ने कहा कि उन्होंने अपने लेखन में विस्थापन तथा प्रवासन के जिन विषयों को खंगाला, वे हर रोज सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि वह 1960 के दशक में विस्थापित होकर ब्रिटेन आये थे और आज यह चीज पहले से ज्यादा दिखाई देती है।

उन्होंने कहा, ‘‘दुनियाभर में लोग मर रहे हैं, घायल हो रहे हैं। हमें इन मुद्दों से अत्यंत करुणा के साथ निपटना चाहिए।’’

गुरनाह के उपन्यास ‘पैराडाइज’ को 1994 में बुकर पुरस्कार के लिए चयनित किया गया था। उन्होंने कुल 10 उपन्यास लिखे हैं।

साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले गुरनाह पांचवें अफ्रीकी लेखक बन गये हैं। इससे पहले नाइजीरियाई लेखक वोले सोयिन्का, मिस्र के नगीब महफूज, दक्षिण अफ्रीका की नादिन गार्डिमेर और जान एम कोट्जी को यह सम्मान मिल चुका है।

सत्तर वर्षीय गुरनाह ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ केंट में उत्तर-उपनिवेशकाल के साहित्य के प्रोफेसर के रूप में सेवाएं देते हाल में सेवानिवृत्त हुए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Open in App

संबंधित खबरें

भारतGoa Fire Accident: अरपोरा नाइट क्लब में आग से 23 लोगों की मौत, घटनास्थल पर पहुंचे सीएम सावंत; जांच के दिए आदेश

भारतगोवा के नाइट क्लब में सिलेंडर विस्फोट में रसोई कर्मचारियों और पर्यटकों समेत 23 लोगों की मौत

पूजा पाठPanchang 07 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 07 December 2025: आज इन 3 राशियों के लिए दिन रहेगा चुनौतीपूर्ण, वित्तीय नुकसान की संभावना

भारतEPFO Rule: किसी कर्मचारी की 2 पत्नियां, तो किसे मिलेगी पेंशन का पैसा? जानें नियम

भारत अधिक खबरें

भारतरेलवे ने यात्रा नियमों में किया बदलाव, सीनियर सिटीजंस को मिलेगी निचली बर्थ वाली सीटों के सुविधा, जानें कैसे

भारतकथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा जयपुर में बने जीवनसाथी, देखें वीडियो

भारत2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, 2025 तक नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं?, उद्धव ठाकरे ने कहा-प्रचंड बहुमत होने के बावजूद क्यों डर रही है सरकार?

भारतजीवन रक्षक प्रणाली पर ‘इंडिया’ गठबंधन?, उमर अब्दुल्ला बोले-‘आईसीयू’ में जाने का खतरा, भाजपा की 24 घंटे चलने वाली चुनावी मशीन से मुकाबला करने में फेल

भारतजमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मानित, सीएम नीतीश कुमार ने सदस्यता अभियान की शुरुआत की