यवतमाल, दो जुलाई महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के एक गांव में सड़क निर्माण कार्य के दौरान ज्वालामुखी के लावा से लगभग छह करोड़ साल पहले बने बेसाल्ट चट्टान के एक स्तंभ का पता चला है। एक प्रमुख भूविज्ञानी ने यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि यह दुर्लभ चट्टान जिले के वानी-पंधकवाड़ा क्षेत्र के शिबला-पारदी गांव में पिछले सप्ताह मिली थी। पर्यावरणविद् और भूविज्ञानी प्रो. सुरेश चोपेन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “यह एक दुर्लभ प्राकृतिक चट्टान है, जिसे ‘कॉलमर बेसाल्ट’ कहा जाता है जो कि छह करोड़ वर्ष पहले महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोट के लावा से बनी थी।’’
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समिति के पूर्व सदस्य चोपेन ने कहा कि यवतमाल जिले का वानी क्षेत्र भौगोलिक रूप से बहुत प्राचीन है। उन्होंने कहा, ‘‘उसी क्षेत्र में, मुझे पंढरकवाड़ा और मारेगांव तहसील के पास 20 करोड़ साल पुराने स्ट्रोमेटोलाइट (स्तरित तलछटी संरचनाएं) और 60 लाख साल पुराने शंख के जीवाश्म मिले थे।”
उन्होंने कहा कि सात करोड़ साल पहले तक महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में एक महासागर था। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन छह करोड़ वर्ष पहले, क्रिटेशियस काल के अंत में, पृथ्वी पर भौगोलिक घटनाएं हुईं और आज के पश्चिमी घाट से, गर्म लावा अब यवतमाल जिले और मध्य विदर्भ में स्थित क्षेत्र में प्रवाहित हुआ, जिसे डेक्कन ट्रैप के रूप में जाना जाता है।’’
उन्होंने कहा कि ज्वालामुखी ने मध्य भारत में पांच लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर किया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में, 80 प्रतिशत चट्टानें बेसाल्ट आग्नेय चट्टानें हैं।
चोपेन ने कहा कि भारत में कर्नाटक में सेंट मैरी द्वीप ऐसे स्तंभकार बेसाल्ट के लिए एक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा, ‘‘महाराष्ट्र में, यवतमाल से पहले, मुंबई, कोल्हापुर और नांदेड़ में ऐसी चट्टानें पाई गई हैं, जब गर्म लावा एक नदी में बहता है और अचानक ठंडा हो जाता है, तो यह सिकुड़ जाता है और षट्भुज के आकार का हो जाता है। ऐसे पत्थर के स्तंभ बनते हैं जिन्हें ‘स्तंभ बेसाल्ट’ कहा जाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘भौगोलिक दृष्टि से ये चट्टानें बहुत महत्वपूर्ण हैं और प्रशासन को पत्थर के स्तंभों और वहां पाए जाने वाले क्षेत्र की रक्षा करनी चाहिए।’’ उन्होंने यह भी दावा किया कि यवतमाल जिले में छह करोड़ साल पहले विशालकाय डायनासोर जैसे जीव और जानवर रहते थे। घने जंगल थे, लेकिन महाराष्ट्र में इस बड़े ज्वालामुखी विस्फोट के कारण सारे जंगल और जीव-जंतु राख हो गए थे।’’
नागपुर में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के प्रवक्ता राष्ट्रपाल चव्हाण ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि इस तरह की चट्टानें आमतौर पर पाई जाती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह भारत में कई स्थानों पर पाई गई थी और यह यवतमाल के वानी क्षेत्र में सड़क खुदाई के काम के दौरान मिली थी... बेसाल्ट चट्टान का यह स्तंभ लगभग 6.4 करोड़ वर्ष पुराना है।
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