भारत में 1500 मरीज़ों पर एक डॉक्टर और 1000 मरीज़ों पर 1.7 नर्स , कैसे हो मरीज़ों की देखभाल
By शीलेष शर्मा | Updated: July 1, 2020 15:23 IST2020-07-01T15:23:07+5:302020-07-01T15:23:07+5:30
विपिन अपने साथ दुनिया भर में काम करने वालों की व्यथा का जिक्र करते हुये कहते हैं "अगर हम निजी क्षेत्र की बात करें, तो वहाँ बहुत सारे भेदभाव होते हैं। प्राइवेट नर्स कह रही हैं कि उनके वेतन में कटौती की जा रही है। इस महामारी के दौरान वे अपने परिवारों की देखभाल कैसे करेंगे?

भारत में डॉक्टरों के लिए 1:1500 और नर्स के लिए 1.7:1000 हैं।
विपिन कृष्णन, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में नर्स का काम पिछले अनेक वर्षों से कर रहे हैं ,कॅरोना मरीज़ों की देख भाल करते करते वह खुद इसके शिकार हो गये और आज भी क़्वारन्टाइन में हैं ,डॉक्टर्स डे के अवसर पर दुनिया के नर्स व्यवसाय से जुड़े लोगों से राहुल ने बात कर आप बीती जानी , इन नर्सों ने खुलासा किया कि शुरू में अधिकांश दुनिया के देश कॅरोना को साधारण फ्ल्यू समझते रहे ,इसकी गंभीरता बाद में पता चली।
विपिन अपना अनुभव साझा करते हुये बताते हैं "मैं कुछ आंकड़ों को उजागर करना चाहूंगा। हमारे पास भारत में 1.2 मिलियन पंजीकृत एलोपैथिक डॉक्टर और लगभग 3.7 मिलियन पंजीकृत नर्स हैं। अगर अनुपात की बात करें तो भारत में डॉक्टरों के लिए 1:1500 और नर्स के लिए 1.7:1000 हैं। डब्ल्यूएचओ द्वारा सिफारिश किया गया अनुपात डॉक्टरों का 1:1000 और नर्सों का 3: 1000 है। मानव संसाधन कम पड़ रहे हैं, फिर भी हम कड़ी मेहनत कर रहे हैं। लेकिन हमारे देश में यह परिदृश्य पूरी तरह से अलग है। भारत में सरकारी अस्पतालों और निजी अस्पतालों के बीच बहुत अंतर है। "
विपिन अपने साथ दुनिया भर में काम करने वालों की व्यथा का जिक्र करते हुये कहते हैं "अगर हम निजी क्षेत्र की बात करें, तो वहाँ बहुत सारे भेदभाव होते हैं। प्राइवेट नर्स कह रही हैं कि उनके वेतन में कटौती की जा रही है। इस महामारी के दौरान वे अपने परिवारों की देखभाल कैसे करेंगे? ऐसी स्थिति में, मुझे लगता है कि सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए और उनको पूरा वेतन देना चाहिए। इस हालत में, उनके लिए जीवन यापन करना मुश्किल है।"
क्या डरते हो कॅरोना मरीज़ों की देखभाल के समय
जब राहुल ने पूछा कि क्या वह कॅरोना मरीज़ों के बीच काम करते डरते हैं? तो विपिन का जबाब कुछ इस तरह था "मुझे नहीं लगता कि हम कोरोनावायरस जैसी महामारी से डरते हैं। देश को बचाने के लिए हमें मोर्चे पर लड़ना होगा। मेरे अपने अनुभव से पता चला कि मैं डरा हुआ नहीं था, लेकिन इसलिए नहीं कि मैं संक्रमित था, मुझे अभी भी डर नहीं लग रहा। मैं आपको और सरकार को बताना चाहता हूं कि एक बार ठीक होने के बाद, मैं वापस कोविड़ के वार्ड में जाना चाहता हूं"।
हॉस्पिटलों के कैसे हैं हालात
यह वास्तव में यह एक दुखद स्थिति है। मैं आपको कुछ आंकड़ों के बारे में बताना चाहता हूं। 27 मई को, दिल्ली में संक्रमण दर 13.7% थी, जब हम प्रति दिन 7000 टेस्ट कर रहे थे। 12-13 जून तक, हमारी संक्रमण दर 30% के ऊपर चली गई थी और हम प्रति दिन 5000 टेस्ट कर रहे हैं। यह आश्चर्य की बात है कि हमारी मृत्यु और संक्रमण दर बढ़ रही है, लेकिन हमने टेस्ट कम कर दिया है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि यह सब क्या हो रहा है। मुझे नहीं लगता कि नीति बनाने में हमारी कोई आवाज भी सुनी जा रही है। तब नीतियां बननी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ है। संवाद के दौरान अनु रगनत ,न्यूजीलैंड ,नरेंद्र सिंह आस्ट्रेलिया , शर्ली इमोल यूके ने भी अपने अनुभव साझा किये थोड़े से फ़र्क के साथ सभी की व्यथा और अनुभव एक जैसे थे सिर्फ भारत के बाहर सुविधायें बेहतर थीं।