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देश के सबसे रईस सांसदों में से एक ‘किंग महेन्द्र’ विचित्र कानूनी विवाद में, खुद को उनकी पत्नी बताने वाली महिला पहुंची सुप्रीम कोर्ट

By भाषा | Updated: September 25, 2019 06:13 IST

पीठ ने कहा, ‘‘आप (याचिकाकर्ता) निश्चित ही लंबे समय से पति पत्नी की तरह रह रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं हुआ कि आप पति पत्नी हैं।’’ पीठ ने इस समय मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और कहा कि महिला आवश्यकता पड़ने या फिर स्पष्टीकरण के लिये उच्च न्यायालय जा सकती है।

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ठळक मुद्देउच्च न्यायालय ने महिला को आरोपों की जांच पूरी होने तक प्रसाद से दूर रहने का आदेश दिया था।आरोप कि इस महिला ने सांसद की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी को गैरकानूनी तरीके से बंद कर रखा है। 

‘किंग महेन्द्र’ के नाम चर्चित जदयू के राज्य सभा सदस्य महेन्द्र प्रसाद एक अजीब कानूनी विवाद में पड़ गये है। एक महिला ने खुद को उनकी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी बताते हुये उच्चतम न्यायलाय में याचिका दायर कर उनके साथ रहने की अनुमति मांगी है। बिहार से सात बार के सांसद 79 वर्षीय प्रसाद के साथ पिछले 45 साल से रहने वाली इस महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें उसे कम से कम चार सप्ताह किंग महेन्द्र से अलग रहने का निर्देश दिया गया है। 

देश के सबसे रईस सांसदों में शामिल किंग महेन्द्र के ‘परित्याग किये गये’ पुत्र ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसमें दावा किया गया था कि उनके पिता ने उनकी मां, जो प्रसाद की असली पत्नी है, को गैरकानूनी तरीके से बंद कर रखा है। उच्च न्यायालय ने महिला को आरोपों की जांच पूरी होने तक प्रसाद से दूर रहने का आदेश दिया था। प्रसाद की दवा की अनेक कंपनियां और दूसरे कारोबार हैं। आरोप कि इस महिला ने सांसद की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी को गैरकानूनी तरीके से बंद कर रखा है। 

न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश राय की पीठ के समक्ष मंगलवार को यह मामला सुनवाई के लिये आया तो महिला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में उच्च न्यायालय ने पूरी तरह गैरकानूनी प्रक्रिया का पालन किया है। उनहोंने कहा कि सांसद भी उसके साथ ही रहना चाहते हैं।

रोहतगी ने इस महिला के प्रसाद की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी होने का दावा करते हुये कहा, ‘‘पति और पत्नी को अलग अलग क्यों रहना चाहिए? देश में लोकतंत्र है।’’ इसे विचित्र मामला बताते हुये उन्होंने इस मामले में हो रही जांच पर सवाल उठाया और कहा कि उच्च न्यायालय को इस तरह का आदेश नहीं देना चाहिए था क्योंकि वह सांसद के पुत्र द्वारा दायर बंदीप्रत्यक्षीकरण मामले की सुनवाई कर रहा है। 

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘आप (याचिकाकर्ता) निश्चित ही लंबे समय से पति पत्नी की तरह रह रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं हुआ कि आप पति पत्नी हैं।’’ पीठ ने इस समय मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और कहा कि महिला आवश्यकता पड़ने या फिर स्पष्टीकरण के लिये उच्च न्यायालय जा सकती है। रोहतगी ने पीठ से कहा कि कुल मिलाकर उच्च न्यायालय का आदेश है कि पति पत्नी को अलग रहना चाहिए। 

हालांकि, पीठ ने टिप्पणी की कि पुलिस द्वारा इस मामले में उच्च न्यायालय में दाखिल स्थिति रिपोर्ट के अनुसार दूसरी महिला (परित्याग किये गये पुत्र की मां) कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है। याचिकाकर्ता का बयान भी दर्ज किया गया है। उच्च न्यायालय के आदेश पर सवाल उठाते हुये रोहतगी ने कहा कि किसी प्राथमिकी के बगैर ही जांच कैसे हो सकती है। उन्होंने दावा किया कि प्रसाद ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले अपने पुत्र का परित्याग कर दिया था और यह सांसद की संपत्ति हड़पने की उसकी चाल है।

उन्होंने कहा कि प्रसाद अस्वस्थ हैं और इसलिए जरूरी है कि उन्हें शीर्ष अदालत पहुंची याचिकाकर्ता के साथ रहना चाहिए। पीठ ने जब यह कहा कि उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को प्रसाद से चार सप्ताह अलग रहने के लिये कहा है तो रोहतगी ने कहा, ‘‘क्यों? किस आधार पर? क्या इस महिला ने कोई अपराध किया है?’’ उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में इस तथ्य का भी जिक्र किया कि प्रसाद, जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार स्मृतिलोप से पीड़ित हैं, शीर्ष अदालत के समक्ष आयी याचिकाकर्ता के अलावा अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य का नाम याद नहीं कर सके। 

रोहतगी ने कहा कि सांसद पिछले 45 साल से इस महिला के साथ परिवार की तरह रह रहे हैं। पीठ ने जब यह कहा कि सभी पक्षों की सहमति के बाद उच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया तो वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि इस मुद्दे पर कोई सहमति नहीं थी कि किसे सांसद के साथ नहीं रहना चाहिए। रोहतगी ने कहा कि मान लीजिये कि वे पति पत्नी नहीं हैं लेकिन एक साथ रहना चाहते हैं तो पुलिस या अदालत इससे इंकार कैसे कर सकती है। 

पीठ ने कहा, ‘‘बेहतर होगा कि आप उच्च न्यायालय वापस जायें। निश्चित ही उच्च न्यायालय ने कुछ दस्तावेज देखे होंगे जो न्यायाधीशों के दिमाग में होंगे।’’ सुनवाई के अंतिम क्षणों में रोहतगी ने कहा कि अब इस महिला को कहां जाना चाहिए क्योंकि उसके पास रहने के लिये कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि क्या उसे किसी होटल में रहने जाना चाहिए।

टॅग्स :बिहारजेडीयू
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