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मृत्युदंड पाए 62.2 प्रतिशत कैदी कम से कम एक मानसिक रोग से पीड़ित: अध्ययन

By भाषा | Updated: October 21, 2021 16:27 IST

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नयी दिल्ली, 21 अक्टूबर मृत्युदंड पाए कैदियों में मानसिक बीमारी और बौद्धिक अक्षमता पर एक अध्ययन से पता चला है कि उनमें से 62 प्रतिशत से अधिक को कम से कम एक मानसिक बीमारी थी, उनमें से आधे के मन में जेल में आत्महत्या करने का विचार किया तथा उन्होंने कठिनाई भरा बचपन और जीवन के दर्दनाक अनुभवों का सामना किया।

दिल्ली के राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में आपराधिक न्याय कार्यक्रम ‘प्रोजेक्ट 39ए’ ने छत्तीसगढ़, दिल्ली, कर्नाटक, केरल और मध्य प्रदेश में मौत की सजा पाए तीन महिलाएं और 85 पुरूषों समेत 88 कैदियों और उनके परिवारों पर अध्ययन किया।

‘मृत्युयोग्य: मृत्युदंड का मानसिक स्वास्थ्य परिप्रेक्ष्य’ शीर्षक वाले अध्ययन के निष्कर्षों ने भारत में मृत्युदंड पाने वाले कैदियों के बीच मानसिक बीमारी और बौद्धिक अक्षमता तथा मौत की सजा मिलने के बाद व्यक्ति पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभावों के बारे में प्रयोग एवं अनुभव आधारित आंकड़े प्रस्तुत किए।

पांच साल के अध्ययन के बाद यह रिपोर्ट जारी की गई और इसमें कैद में रहने की स्थितियों तथा खराब स्वास्थ्य के बीच संबंध भी स्थापित किया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि मृत्युदंड पाए जिन कैदियों का साक्षात्कार किया गया उनमें से बहुत बड़ी संख्या (62.2 प्रतिशत) में कैदी मानसिक रोग से पीड़ित थे और 11 प्रतिशत बौद्धिक अक्षमता के शिकार थे। इसमें कहा गया कि यह अनुपात सामुदायिक आबादी के अनुपात के मुकाबले कहीं अधिक है।

रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘मृत्युदंड पाए 51 लोग (62.2 प्रतिशत) कम से कम एक मानसिक बीमारी से पीड़ित पाए गए। 35.3 प्रतिशत मेजर अवसाद समरूात (एमएमडी) से 22.6 प्रतिशत सामान्य उद्वेग समरूा से और 6.8 प्रतिशत साइकोसिस से पीड़ित पाए गए।’’

रिपोर्ट जारी करने के अवसर पर बुधवार को आयोजित एक चर्चा में ओडिशा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस मुरलीधर ने कहा, ‘‘यह रिपोर्ट हमें यह दिखाने का प्रयास कर रही है कि आरोपी भी एक प्रकार से पीड़ित हैं।’’

अध्ययन में बताया गया कि 88 कैदियों में से 19 अंतत: छोड़ दिए गए और 33 की सजा भिन्न अवधि की उम्र कैद में तब्दील कर दी गई। मुख्य अध्ययनकर्ता मैत्रीय मिश्रा ने रिपोर्ट में कहा, ‘‘छोड़ दिए गए 19 कैदियों में से 13 कम से कम एक मानसिक रोग से पीड़ित हैं। तीन ने जेल में आत्महत्या करने का प्रयास किया। अवसादग्रस्त पाए गए 30 कैदियों में से 17 को अब मौत की सजा नहीं होगी।’’

अध्ययन में यह भी बताया गया कि मृत्युदंड पाए कैदियों के बचपन मारपीट, उपेक्षा वाले रहे और खराब पारिवारिक माहौल में गुजरे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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