गांधीनगर: हंगर वाच नाम के एक संगठन ने अपने सर्वे में इस बात की खुलासा किया है कि कोरोना महामारी के दौरान गुजरात राज्य के अंदर करीब 21.8 फीसदी घरों में एक वक्त का खाना नहीं बन सका। रिपोर्ट से साफ है कि महामारी के दौरान काफी सारे लोगों को भूखे भी सोना पड़ा है।
साल 2020 का अंत भले ही अब करीब आ गया है। लेकिन, हर कोई अब बेसब्री से नए साल का इंतजार कर रहा है, कोरोना महामारी के लिए साल 2020 अधिकांश लोगों के लिए अच्छा नहीं रहा है। लॉकडाउन की वजह से काफी सारे लोग पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े थे। उस दौरान कई लोगों की किसी ना किसी वजह से मौत भी हुई।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस साल काफी सारे लोगों के हाथ से महामारी की वजह से नौकरी चली गई, जिस वजह से देश के अधिकतर हिस्सों में भुखमरी भी छायी हुई है।
अन्ना सुरक्षा अभियान के तहत संगठन ने किया सर्वे
कोरोना महामारी के बीच गुजरात सरकार ने भुखमरी को खत्म के लिए भी कई प्रभावी कदम उठाए हैं। हाल ही में अन्ना सुरक्षा अभियान (गुजरात) के तहत किए 'हंगर वॉच' सर्वे में पता चला है कि 20.6 फीसदी घरों में अनाज ना होने की वजह से खाना नहीं बन सका।
वहीं, 21.8 फीसदी घरों में एक वक्त का खाना भी नहीं बन सका। अहमदाबाद, आणंद, भरूच, भावनगर, दाहोद, मोरबी, नर्मदा, पंचमहल और वडोदरा सहित नौ जिलों में ये सर्वे सितंबर और अक्टूबर के महीने में किया गया था।
लॉकडाउन के पांच महीने बाद भी भूख की स्थिति
हंगर वॉच सर्वे से पता चला है कि लॉकडाउन ख़त्म होने के पांच महीने बाद भी भूख की स्थिति काफी गंभीर है। वहीं, बड़ी संख्या में घरों (62 फीसदी) में आय घटी है, अनाज (53 फीसदी), दालें (64 फीसदी), सब्जियां (73 फीसदी) और अंडे/मांसाहारी पदार्थों (71 फीसदी), पोषण गुणवत्ता की मात्रा (71 फीसदी) में कमी आई है। इसके अलावा, 45 फीसदी घरों में भोजन खरीदने के लिए पैसे उधार लेने की जरूरत बढ़ी है।