गांधी की 150वीं जयंतीः बापू ने कहा था 'हिन्दी बने भारत की राष्ट्रभाषा' लेकिन वह किसी भी भाषा को थोपने के खिलाफ थे

By भाषा | Updated: September 29, 2019 13:28 IST2019-09-29T13:28:57+5:302019-09-29T13:28:57+5:30

गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले देश की साझी भाषा के तौर पर हिन्दी को अपनाये जाने की वकालत की थी। हालांकि, विपक्षी दलों ने उनके इस विचार का काफी विरोध किया था।

150th Birth Anniversary of Gandhi: Bapu said 'Hindi became the national language of India' but he was against imposing any language. | गांधी की 150वीं जयंतीः बापू ने कहा था 'हिन्दी बने भारत की राष्ट्रभाषा' लेकिन वह किसी भी भाषा को थोपने के खिलाफ थे

गांधी की 150वीं जयंतीः बापू ने कहा था 'हिन्दी बने भारत की राष्ट्रभाषा' लेकिन वह किसी भी भाषा को थोपने के खिलाफ थे

Highlightsइंदौर के मौजूदा नेहरू पार्क में आयोजित हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में बापू, ठेठ काठियावाड़ी पगड़ी, कुरते और धोती में लकदक होकर मंच पर थे। गौर करने वाली बात यह है कि महात्मा गांधी ने अपने भाषण में हिन्दी की उस "हिंदुस्तानी" शैली के इस्तेमाल पर जोर दिया था, जिसमें संस्कृत के अलावा अन्य भाषाओं के शब्द भी समाये होते हैं।

आजादी के लिये संघर्ष कर रहे भारत को एक सूत्र में पिरोने के लिये हिन्दी की गंगा-जमुनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार पर जोर देते हुए महात्मा गांधी ने यहां 101 साल पहले इस जुबान को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का सार्वजनिक आह्वान किया था। हालांकि, गांधी की 150वीं जयंती से ठीक पहले उनके एक वंशज का कहना है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बापू साझी तहजीब से जुड़ी हिन्दी के हिमायती होने के साथ देश की किसी भी भाषा को दूसरी जुबानों पर थोंपने के खिलाफ थे।

ऐतिहासिक संदर्भों के मुताबिक बापू ने यहां 29 मार्च 1918 को आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दौरान अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा था, "जैसे अंग्रेज मादरी जबान (मातृभाषा) यानी अंग्रेजी में ही बोलते हैं और सर्वथा (हमेशा/हर तरह से) उसे ही व्यवहार में लाते हैं, वैसे ही मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का गौरव प्रदान करें। इसे राष्ट्रभाषा बनाकर हमें अपना कर्तव्य पालन करना चाहिये।"

इंदौर के मौजूदा नेहरू पार्क में आयोजित हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में बापू, ठेठ काठियावाड़ी पगड़ी, कुरते और धोती में लकदक होकर मंच पर थे। बहरहाल, गौर करने वाली बात यह है कि महात्मा गांधी ने अपने भाषण में हिन्दी की उस "हिंदुस्तानी" शैली के इस्तेमाल पर जोर दिया था, जिसमें संस्कृत के अलावा अन्य भाषाओं के शब्द भी समाये होते हैं।

उन्होंने कहा था, "हिन्दी वह भाषा है, जिसे हिन्दू और मुसलमान दोनों बोलते हैं और जो नागरी अथवा फारसी लिपि में लिखी जाती है। यह हिन्दी संस्कृतमयी नहीं है, न ही वह एकदम फारसी अल्फाज से लदी हुई है।" मूलत: गुजरातीभाषी हस्ती ने हिन्दी के साथ प्रांतीय भाषाओं के महत्व को भी रेखांकित करते हुए कहा था, "मेरा नम्र, लेकिन दृढ़ अभिप्राय है कि जब तक हम हिंदी को राष्ट्रीय दर्जा और अपनी-अपनी प्रांतीय भाषाओं को उनका योग्य स्थान नहीं देंगे, तब तक स्वराज्य की सब बातें निरर्थक हैं।"

हिन्दी को लेकर बापू के इन विचारों पर उनके परपोते तुषार अरुण गांधी ने रविवार को "पीटीआई-भाषा" से कहा, "यह सच है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देशवासियों को एकजुट करने के लिये बापू हिन्दी की हिंदुस्तानी शैली के प्रयोग को बढ़ावा देने के हिमायती थे, क्योंकि यह जुबान हमारी मिली-जुली संस्कृति की प्रतीक है। लेकिन वह देश की किसी भी भाषा को दूसरी भाषा पर थोंपने के पक्ष में कतई नहीं थे।"

उन्होंने कहा, "बापू भारत की सभी मातृभाषाओं के सम्मान को बेहद महत्व देते थे। यही वजह है कि वह देश की आजादी के बाद भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की नीति के पक्ष में थे।" महात्मा गांधी के परपोते ने कहा, "बापू जब हिंदुस्तानी शैली की हिन्दी की पुरजोर हिमायत कर रहे थे, तब वह बंगाली और तमिल भी सीख रहे थे। अगर वह आज जिंदा होते, तो देश में भाषाओं को लेकर जारी द्वेषपूर्ण राजनीति से जाहिर तौर पर खुश नहीं होते।"

गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले देश की साझी भाषा के तौर पर हिन्दी को अपनाये जाने की वकालत की थी। हालांकि, विपक्षी दलों ने उनके इस विचार का काफी विरोध किया था। इसके बाद शाह ने स्पष्ट किया था कि उन्होंने प्रांतीय भाषाओं पर हिन्दी को थोंपने की बात कभी नहीं की थी और वह मातृभाषा के बाद दूसरी जुबान के रूप में हिन्दी के इस्तेमाल की गुजारिश भर कर रहे थे। 

Web Title: 150th Birth Anniversary of Gandhi: Bapu said 'Hindi became the national language of India' but he was against imposing any language.

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