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पत्रकार जरूर पढ़ें, 30 की उम्र तक आते-आते गले पड़ सकती हैं ये चिंताएं और बीमारियां

By उस्मान | Updated: August 30, 2018 14:54 IST

बर्नआउट को गंभीर तनाव और निराशा के साथ भी जोड़ा जाता है पत्रकारों को इसका सबसे अधिक खतरा होता है

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अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार, तनाव आज की पीढ़ी की सबसे बड़ी समस्या है। खासकर महिलाएं इससे अधिक पीड़ित हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह उनका प्रोफेशन यानी पेशा है। इतना ही नहीं उनका प्रोफेशन उन्हें 30 साल की उम्र से पहले बर्नआउट (burnout) की गिरफ्त में ढकेल देता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, पत्रकारिता में बर्नआउट का अधिक खतरा होता है।  

बर्नआउट क्या है?

इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन डिजीज (ICD-10) के अनुसार, बर्नआउट एक बहुत अधिक थकावट की स्थिति है। इसमें भावनात्मक थकान, मानसिक थकान, तनाव, अलगाव और व्यक्तिगत रूप से उपलब्धि नहीं मिलने से असंतोष की भावना पैदा होना शामिल हैं। इसके अलावा बर्नआउट को गंभीर तनाव और निराशा के साथ भी जोड़ा जाता है। पिछले कई सालों में, इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया है कि बर्नआउट को एक बीमारी माना जाना चाहिए, लेकिन वर्तमान में इसे मानसिक विकार के रूप में नहीं माना जाता है।

पत्रकारों को बर्नआउट का खतरा क्यों?

हालांकि मायो क्लिनिक और साइकोलॉजी टुडे जैसे प्रतिष्ठित मेडिकल सेंटर पर बर्नआउट जैसी स्थिति का सही समय पता लगाने और इससे बचने के उपाय दिए गए हैं लेकिन कुछ प्रोफेशन ऐसे हैं जिसमें बर्नआउट का खतरा अधिक होता है। उन्हीं में एक है जर्नलिज्म यानि पत्रकारिता। चलिए जानते हैं कि पत्रकारिता आपको कैसे इस स्थिति तक ले जाती है। 

पत्रकारों को सताने लगती है भविष्य की चिंता

यूनिवर्सिटी ऑफ कान्सास ने जर्नलिज्म में बर्नआउट की स्थिति और जॉब सेटिस्फेक्शन को लेकर दो अध्ययन किये। पहला अध्ययन 2009 में किया गया और उसका फॉलो-अप अध्ययन साल 2015 में किया। 

शोधकर्ताओं ने न्यूजरूम में पुरुष और महिला कर्मचारीयों के बीच न केवल कई तरह की असमानता पाई बल्कि पहले अध्ययन में उन्होंने पाया कि 62 फीसदी महिलाएं अपने करियर के भविष्य को लेकर संदिग्ध थी यानी उन्हें अपने करियर को लेकर संदेह था। इतना ही नहीं इन महिलाओं ने जर्नलिज्म छोड़ने का इरादा भी बना लिया था। साल 2015 के अध्ययन में यह संख्या 67 फीसदी तक बढ़ गई।

इस प्रवृत्ति का मतलब यह है कि बहुत कम महिलाएं इस करियर को जारी रखेंगी। शोधकर्ताओं ने इस बिखराव के कई कारण बताए जिनमें बेहतर पद नहीं मिलना, दूसरी शिफ्ट में अधिक काम होना और संगठन से पर्याप्त समर्थन नहीं मिलना शामिल हैं। इन सभी लक्षणों से संकेत मिलता है कि भविष्य में पत्रकारों को बर्नआउट होने की अधिक संभावना होती है। 

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