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40 वर्ष तक की युवा महिलाओं में स्तन कैंसर का बढ़ता जोखिम

By अनुभा जैन | Updated: October 23, 2024 15:07 IST

यह स्तन कैंसर की मूक प्रकृति को उजागर करता है, क्योंकि कई महिलाएँ निदान में देरी करती हैं क्योंकि उन्हें दर्द या दिखाई देने वाले लक्षण महसूस नहीं होते हैं।

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बैंगलूरू के अस्पतालों ने चिंता व्यक्त करते हुये बताया कि पिछले पांच वर्षों में 20 से 40 वर्ष उम्र की महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में सौ प्रतिशत वृद्वि दर्ज की गयी है। स्तन कैंसर सबसे अधिक 40-60 वर्ष की आयु की महिलाओं को प्रभावित करता है, जबकि आज 40 वर्ष से कम उम्र की युवा महिलाओं में भी इसका डाइगनोसिस तेजी से हो रहा है।कर्नाटका के साथ तमिलनाडु, नई दिल्ली, तेलंगाना भारत के उन चार राज्यों में शामिल है जहां महिला स्तन या ब्रेस्ट कैंसर के मामले सर्वाधिक संख्या में दर्ज किये जा रहे हैं।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आई.सी.एम.आर) - नेशनल सेंटर फॉर डिसीस इंफोरमेटिक्स एंड रिसर्च (एन.सी.डी.आई.आर) स्टडी के अनुसार महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर प्राथमिक कारण है भारत में होने वाली महिला मृत्यु दर का जिसमें 13.5 प्रतिशत नये कैंसर के मामले और 10.6 प्रतिशत सभी कैंसर से होने वाली मौतों के लिये जिम्मेदार हैं। डॉ. मधुप्रिया, वरिष्ठ सलाहकार - सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, अपोलो कैंसर सेंटर, वनागरम, चेन्नई ने कहा कि भारत में हर 4 मिनट में महिलाओं में स्तन कैंसर का निदान किया जा रहा है - जागरूकता बढ़ाना और समय रहते इसका पता लगाने को प्रोत्साहित करना समय की मांग है, जिससे अनगिनत लोगों की जान बच सकती है।

डा. गीता कडायप्रथ, सीनियर कंसलटेंट, ब्रेस्ट सर्जरी, अपोलो कैंसर सेंटर ने साक्षात्कार के दौरान डा.अनुभा से बात करते हुये बताया कि अस्पतालों में 40 साल से कम उम्र के नए स्तन कैंसर के युवा मरीजों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ रही है। यह एक कॉम्पलैक्स इंटरप्ले है जिसमें महिलाओं की लाइफस्टाइल, जेनेटिक्स और एनवाइरनमैंट शामिल है।ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते केसज पर बात करते हु डा. गीता ने कहा कि स्तन कैंसर की घटनाएं बढ़ रही हैं मुख्य रूप से जीवनशैली में बदलाव के कारण। उन्होने कहा कैंसर से डर होना मनुष्य की एक सामान्य अवधारणा है।

आंकडों के अनुसार लगभग 10 प्रतिशत स्तन कैंसर जेनेटिक होते हैं, लेकिन जीवनशैली से जुड़े कारक जैसे कि साझा आहार संबंधी आदतें, परिवारों में निष्क्रियता, बच्चे के जन्म में देरी, स्तनपान में कमी, निष्क्रिय आदतें, मोटापा और खराब आहार वे कारक हैं जो जीन की तुलना में युवा महिलाओं में स्तन कैंसर के मामलों में वृद्धि में योगदान दे रहे हैं। साथ ही बांझपन के लिए हार्मोनल थेरेपी और रजोनिवृत्ति के बाद के उपचार भी स्तन कैंसर के जोखिम को बढ़ा रहे हैंडा. गीता के अनुसार समय के साथ कैंसर के ईलाज में नई तकनीकों के आने से कैंसर सर्वाइवल रेट में सुधार भी हुआ है।

यंग महिलाओं में स्तन कैंसर का होना भारत में जहां यह अनुपात दुगना यानि 15-20 प्रतिशत है वहीं पश्चिमी देशों में इसका आधा महज 7 प्रतिशत ही है। लाइफस्टाइल में परिवर्तन जिसमें शारीरिक गतिविधियां, सही फूड का चयन सही सोर्स के साथ होना चाहिये क्योंकि आज पेस्टीसाइडस का बेहद उपयोग हो रहा है जो कि हमारे खाने में सर्व हो जाते हैं। डा.गीता ने चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि दुर्भाग्य से भारत में आज एडवांस कैंसर स्टेज 1 और स्टेज 2 के कुल 60 प्रतिशत केसेज दर्ज किये गये हैं जो एक चिंता का विषय है। भारत की बढ़ती जनसंख्या, अवेयरनेस की कमी और ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग के प्रोटोेकॉल नहीं होने के कारण यह संख्या बढ़ती ही जा रही है।

अस्पतालों के आंकडों के अनुसार 40 वर्ष से कम आयु की महिलाओं में प्रति माह 50 स्तन कैंसर के मामले देखे जा रहे हैं, जो पांच साल पहले 25 मामलों से अधिक है। सर्जिकल ऑन्कोलॉजी फोर्टिस अस्पताल के कंसल्टेंट डॉ. भरत जी ने कहा कि वे 20-40 वर्ष की आयु की महिलाओं में हर महीने 20-25 स्तन कैंसर के मामले देखते हैं, जबकि पांच साल पहले यह संख्या 10 थी।

अधिकांश निदान तब होते हैं जब रोगी लक्षणों के साथ उपस्थित होते हैं। भारत में चरण चार के मामलों की व्यापकता पश्चिमी देशों की तुलना में अधिक हो सकती है। यह स्तन कैंसर की मूक प्रकृति को उजागर करता है, क्योंकि कई महिलाएँ निदान में देरी करती हैं क्योंकि उन्हें दर्द या दिखाई देने वाले लक्षण महसूस नहीं होते हैं। डा.गीता का मानना है कि महिलाओं को असामान्यताओं की जल्दी पहचान करने के लिए 21 वर्ष की आयु में स्वयं स्तन जांच शुरू कर देनी चाहिए। उनका कहना है कि 40 वर्ष की आयु से शुरू करके, वार्षिक जांच, अल्ट्रासाउंड और मैमोग्राम गांठ बनने से पहले ही जल्दी पता लगाने के लिए आवश्यक हैं।

महिलाओं को अपने जीवन में स्तन कैंसर की जांच को प्राथमिकता देने, समय रहते इसका पता लगाने और इस कारण का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए चेन्नई में अपोलो कैंसर सेंटर ने “मेन इन पिंक वॉकथॉन“ का आयोजन कियास्तन कैंसर महिलाओं में कैंसर से संबंधित मौतों का प्रमुख कारण बन गया है, जिसने सर्वाइकल कैंसर को पीछे छोड़ दिया है। फिर भी, कई जागरूकता प्रयासों के बावजूद, लगभग 90 प्रतिशत महिलाएं आज भी अपने स्तन स्वास्थ्य पर काम करने में झिझकती हैं।

अंत में डा.गीता ने कहा, ‘‘मैंने ऐसी स्टेज 4 की महिलाओं का ईलाज किया जिनके बचने की संभावना बेहद क्षीण थीं। पर 18 साल पहले जिनकी मैने सर्जरी की, जिनके ब्रेस्ट कम्पलीट ट्यूमर की जकड में थे वे आज एकदम स्वस्थ हैं। इमेजिंग करके देखा गया तो ईलाज से ट्यूमर पूरी तरह गायब हो चुका था। उनके शरीर ने सर्जरी व मेडिकेशन का सही तरह रिसपांड किया क्योंकि वे खुद आशावादी थीं।’’

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