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बच्चों में मिर्गी का इलाज : बच्चे को मिर्गी का दौरा पड़ने पर तुरंत करें ये 10 काम, हालत में होगा जल्दी सुधार

By उस्मान | Updated: December 9, 2020 13:24 IST

मिर्गी का उपचार: यह समस्या बच्चों और बुजुर्गों में अधिक देखने को मिलती है, घबराएं नहीं, थोड़ी सी सावधानी हालत बिगड़ने से बचा सकती है

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ठळक मुद्देयह समस्या किसी मानसिक विकार की वजह से हो सकती हैऐसे बच्चों का विशेष ध्यान रखने की जरूरतदौरा पड़ने पर कुछ सरल काम हालत में ला सकते हैं सुधार

मिर्गी एक ऐसी समस्या है जो बड़ों के साथ-साथ बच्चों में भी देखने को मिलती है। दिमाग से संबंधित इस विकार में बच्चों को समय-समय पर दौरे पड़ते हैं। यह समस्या सिर पर चोट लगने, संक्रमण, किसी तरह की विषाक्तता और जन्म से पहले मस्तिष्क से जुड़ी समस्याओं के कारण हो सकती है। 

मिर्गी प्रत्येक बच्चे को अलग-अलग रूप से प्रभावित करती है, उनकी उम्र के आधार पर, उनके पास दौरे का प्रकार, उपचार के लिए वे कितनी अच्छी तरह प्रतिक्रिया करते हैं या  किसी भी अन्य मौजूदा स्वास्थ्य स्थिति।

मिर्गी में क्या होता है ?

मिर्गी में दिमाग में अचानक विद्युत और रासायनिक गतिविधि में परिवर्तन होता है। इससे मरीज को दौरे आने लगते हैं। मिर्गी का दौरा पड़ने का विकार जीवन के किसी भी समय उत्पन्न हो सकता है, लेकिन बच्चों और 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में यह सबसे अधिक पाया जाता है।  एक डॉक्टर किसी बच्चे में मिर्गी का निदान कर सकता है। कुछ मामलों में दवा आसानी से दौरे को नियंत्रित कर सकती है, जबकि अन्य बच्चों को दौरे के साथ आजीवन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

बच्चों में मिर्गी के लक्षण

मिर्गी के लक्षण हर बच्चे में अलग-अलग हो सकते हैं। साथ ही इसके लक्षण इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि मिर्गी का दौरा कब से पड़ने लगा है और इसकी वजह से शरीर का कौन-सा हिस्सा प्रभावित हो रहा है। 

आमतौर पर बच्चों में मिर्गी के लक्षणों में बच्चों का घूरना, देर तक एक ही जगह देखना, अचेत व बेहोश होना, शरीर का पूरी तरह से हिल जाना, मांसपेशियों में जकड़न, शरीर में सनसनाहट, डर और चिंता, ऐसी गंध का आना जो वास्तव में होती ही नहीं आदि शामिल हैं।

बच्चों में मिर्गी के कारण और जोखिम कारक

बच्चों में मिर्गी के कारणों में ऑटिज्म, जेनेटिक, बचपन में उच्च बुखार, मेनिन्जाइटिस सहित संक्रामक रोग, गर्भावस्था के दौरान मातृ संक्रमण, गर्भावस्था के दौरान खराब पोषण, जन्म से पहले या उसके दौरान ऑक्सीजन की कमी, सिर पर आघात, मस्तिष्क में ट्यूमर या अल्सर आदि शामिल हैं। 

उत्साह, चमकती या टिमटिमाती हुई रोशनी, नींद की कमी, संगीत या ज़ोर शोर, भोजन नहीं करना और तनाव आदि मिर्गी के जोखिम कारक हैं जो मिर्गी के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं। 

बच्चों को मिर्गी का दौरा पड़ने पर क्या करें

बच्चे को धीरे से फर्श पर लेटा दें।उसके आसपास की वस्तुओं को हटा दें।अब धीरे-धीरे बच्चे को एक साइट की ओर लिटाएं।बच्चे के सिर के नीचे तकिया रख दें।अगर बच्चे ने शर्ट पहनी है, तो उसके बटन खोल दें या गले में कोई टाइट कपड़ा हो तो ढीला कर दें।अगर उसे किसी तरह का खतरा नहीं है, तो बच्चे को चलने और टहलने से न रोकें।बच्चे के मुंह में कुछ भी न डालें। यहां तक कि दवा या तरल भी नहीं। इससे उसके जबड़े, जीभ या दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है।बच्चे को मिर्गी पड़ने के दौरान और उसके कुछ देर बाद तक उसके साथ ही रहें।दौरा पड़ते समय उसके लक्षण और दौरा पड़ने के समय को नोट करके रखें।डॉक्टर को विस्तार से बताएं कि मिर्गी का दौरा कितनी देर के लिए आया और उसके लक्षण क्या थे।

बच्चों का मिर्गी से बचाव कैसे करें

बच्चे को पर्याप्त नींद लेने दें, क्योंकि नींद की कमी बच्चों में दौरे का कारण होती है।बच्चे को सिर को चोट से बचाने के लिए उसके सिर पर स्कैट या साइकिल चलाते समय हेलमेट पहनाएं। बच्चे को गिरने से बचाने के लिए उसको सावधानी से चलने के लिए कहें। बच्चे को किसी तेज रोशनी या अधिक शोर वाली जगह पर बच्चे को ना ले जाएं, क्योंकि ये भी कई बार दौरे पड़ने की वजह बनाते हैं। बच्चे को रोजाना एक ही समय पर दौरों को कम करने वाली दवा देना ना भूलें।

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