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हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट एक नहीं, दोनों के बीच है ये बड़ा अंतर

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 26, 2018 14:55 IST

हार्टअटैक उन तमाम कारणों में से एक है जो कार्डिएक अरैस्ट के लिए जिम्मेदार होते हैं

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अधिकतर लोग हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट को एक ही मां लेते हैं जबकि दोनों के फर्क को बखूबी समझना बेहद जरूरी है। हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट दिल से जुड़ी 2 अलग समस्याएं हैं।

हार्टअटैक

- किसी व्यक्ति को हार्टअटैक तब होता है जब उस के हृदय तक जाने वाले औक्सिजन युक्त रक्त का प्रवाह सही ढंग से नहीं होता है, जहां से रक्त पंप हो कर शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुंचता है।

- हार्टअटैक के दौरान दिल की रक्त को पंप करने की क्षमता आंशिकरूप से कम हो जाती है। हार्टअटैक होने पर भी दिल रक्त को पंप करता रहता है, लेकिन इस की गति धीमी हो जाती है।

- हार्टअटैक होने पर व्यक्ति कुछ मिनटों अथवा कुछ घंटों के लिए जी सकता है और जीवित भी बच सकता है, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि मरीज को जितनी जल्दी हो सके, इमरजेंसी केयर में ले जाया जाए क्योंकि शरीर के अंगों और दिमाग में भरपूर मात्रा में रक्त संचार न होने से उन अंगों में गंभीर डैमेजेज हो सकते हैं। ऐसे में स्ट्रोक हो सकता है, यहां तक कि अचानक कार्डिएक अरैस्ट भी हो सकता है।

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कार्डिएक अरेस्ट

- सवाल उठता है कि आखिर कार्डिएक अरैस्ट है क्या? कार्डिएक अरैस्ट अचानक हो सकता है, बिना किसी अलर्ट अथवा वानिर्ंग साइन के।

- कार्डिएक अरैस्ट होने पर मरीज का दिल काम करना बंद कर देता है, क्योंकि ऐसे में हार्ट के इलैक्ट्रिकल सिस्टम में समस्या हो जाती है और पंपिंग की प्रक्रिया बाधित हो जाती है।

- इस के परिणामस्वरूप ब्रेन व शरीर के अन्य हिस्सों में रक्तप्रवाह पूरी तरह से रुक जाता है। कुछ ही सैकंड के भीतर मरीज अचेत हो जाता है और उस के पल्स गायब हो जाते हैं और अगले कुछ ही मिनटों में मरीज की मौत भी हो सकती है।

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हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट में अंतर

- हार्टअटैक उन तमाम कारणों में से एक है जो कार्डिएक अरैस्ट के लिए जिम्मेदार होते हैं

- खराब कार्डियोवैस्कुलर हैल्थ, हार्ट डिजीज, एरिथमिया (अनियमित दिल की धड़कन) अथवा अनियमित हार्टबीट उन तमाम अन्य कारणों में शामिल हैं जिन के चलते हार्ट का इलैक्ट्रिक सिस्टम प्रभावित होता है और कार्डिएक अरैस्ट की स्थिति उत्पन्न होती है।

कार्डिएक अरैस्ट में सिर्फ गोल्डन सैकंड्स- हार्टअटैक के मामले में जहां मरीज के अटेंडेंट अथवा रैस्क्यूअर के पास मरीज को हॉस्पिटल ले जाने के लिए गोल्डन आवर होता है वहीं कार्डिएक अरैस्ट के मामले में व्यक्ति के पास कुछ महत्त्वपूर्ण सैकंड्स ही होते हैं। ऐसे में कार्डिएक अरैस्ट के लक्षणों को पहचान कर तुरंत ऐक्शन लेना बेहद जरूरी होता है।

- जब व्यक्ति को कार्डिएक अरैस्ट होता है तब तुरंत ऐंबुलैंस बुलानी चाहिए और साथ ही कार्डियोपल्मोनरी रीससिटेशन (सीपीआर) भी करना चाहिए। सीपीआर में मरीज की छाती पर हथेलियों से तेज दबाव बनाया जाता है। इस दौरान प्रति मिनट 120 कम्प्रैशन की स्पीड होनी चाहिए। ऐसा तब तक करना चाहिए जब तक कि मरीज को मैडिकल सहायता न मिल जाए।

- हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट एक चीज नहीं हैं और इन का एकसमान प्रबंधन नहीं हो सकता है। ऐसे में हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि इन दोनों के बारे में संपूर्ण जानकारी रखें, न कि इन दोनों स्थितियों को इनोसेंस और इग्नोरैंस का दर्जा दे कर लापरवाही बरतें, खासतौर से कार्डिएक अरैस्ट की स्थिति में, जहां हमें जीवन बचाने के लिए कुछ गोल्डन सैकंड्स ही मिलते हैं।    

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