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Coronavirus: वैज्ञानिकों का दावा, भारत में हर जगह विकसित नहीं हो सकती 'हर्ड इम्युनिटी', हो भी गई तो जल्दी हो जाएगी खत्म

By भाषा | Updated: July 31, 2020 15:07 IST

बताया जा रहा था कि हर्ड इम्युनिटी से कोरोना से बचने में मदद मिल सकती है लेकिन वैज्ञानिक इस पर सहमत नहीं है

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ठळक मुद्देकुछ इलाकों में ही विकसित हो सकती है हर्ड इम्युनिटी लंबे समय के बजाय कम समय तक रह सकती है70 से 90 फीसद लोगों में किसी संक्रामक बीमारी से ग्रसित होने के बाद होती है विकसित

कोरोना वायरस का प्रकोप तेजी से बढ़ता जा रहा है और फिलहाल इसका कोई टीका तैयार नहीं है। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए हर्ड इम्युनिटी पर भरोसा किया जा रहा था लेकिन अब इस वैज्ञानिकों का मत अलग-अलग है। कोई कह रहा है कि यह हर जगह काम नहीं करती और ज्यादा दिनों तक नहीं रहती है।

नयी दिल्ली और मुंबई में सीरो सर्वेक्षणों में कोरोना वायरस महामारी से सामुदायिक स्तर पर बचाव होने की उम्मीदों के बीच वैज्ञानिकों ने कहा है कि देश में कोविड-19 के खिलाफ सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता (हर्ड इम्युनिटी) अनेक सामाजिक-आर्थिक समूहों को देखते हुए कुछ इलाकों में ही विकसित हो सकती है और लंबे समय के बजाय कम समय तक रह सकती है। 

हर्ड इम्युनिटी क्या है?

हर्ड इम्युनिटी तब विकसित होती है जब किसी सामान्य तौर पर 70 से 90 फीसद लोगों में किसी संक्रामक बीमारी से ग्रसित होने के बाद उसके प्रति रोग प्रतिरक्षा क्षमता विकसित हो जाती है। लेकिन जहां तक नोवेल कोरोना वायरस की बात है तो अनेक मुद्दे हैं जिनके कारण इस विषय पर आम-सहमति नहीं बन पा रही है। 

हर्ड इम्युनिटी पर फिलहाल स्पष्ट आंकड़ों की कमी

वेलकम ट्रस्ट/डीबीटी इंडिया अलायंस के सीईओ और विषाणु विज्ञानी शाहिद जमील ने कहा, 'ऐसे कोई स्पष्ट आंकड़े नहीं हैं जिनसे पता चल सके कि कितनी फीसद आबादी के संक्रमित होने पर हर्ड इम्युनिटी विकसित हो सकेगी। 

कई महामारी विशेषज्ञों का मानना है कि सार्स-सीओवी-2 के लिए यह लगभग 60 फीसद होगी।' उन्होंने कहा देश के विभिन्न हिस्सों में हर्ड इम्युनिटी अलग-अलग वक्त पर हासिल होगी। 

कम लोगों में भी विकसित हो सकती है हर्ड इम्युनिटी

साइंस नाम के जर्नल में हाल में प्रकाशित एक अनुसंधान में पता चला कि कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी पहले के अनुमान के मुकाबले कम संख्या में संक्रमित लोगों के साथ भी हासिल की जा सकती है। 

सीएसआईआर-आईआईसीबी, कोलकाता में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं विषाणु विज्ञानी उपासना रे बताती हैं, 'हर्ड इम्युनिटी इस बात से तय होती है कि आबादी में कितने लोगों में एक संक्रमण के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई है। इससे आबादी के उन लोगों में परोक्ष रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है जो कभी संक्रमण के संपर्क में नहीं आए। 

जितने अधिक लोग संक्रमित होंगे और उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी

इसका निश्चित ही यह अर्थ है कि जितने अधिक लोग संक्रमित होंगे और उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी, तो बाकी आबादी के संक्रमित होने का जोखिम उतना ही कम होगा।'  

नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी में रोग प्रतिरक्षा विज्ञानी सत्यजीत रथ कहते हैं, 'भारत में जहां सामाजिक-आर्थिक समूहीकरण हैं, वहां हर्ड इम्युनिटी के पूरे देश में एकसाथ विकसित होने के बजाए अलग-अलग हिस्सो में विकसित होने की संभावना है और हो सकता है कि यह लंबे समय तक बनी नहीं रहे।' 

टॅग्स :कोरोना वायरसकोविड-19 इंडियामेडिकल किटमेडिकल ट्रीटमेंट
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