यहां लंगर में रोजाना खाते हैं 1 लाख लोग, 1 घंटे में बनती हैं 25 हजार रोटियां, जानिए कैसे हुई लंगर की शुरुआत
By उस्मान | Published: November 23, 2018 12:09 PM2018-11-23T12:09:22+5:302018-11-23T12:09:22+5:30
Guru Nanak Jayanti Special History of Langar served in Gurudwara: क्या आप जानते हैं कि गुरुद्वारा में दिन दिन रात लंगर में खाना क्यों खिलाया जाता है? सिख समुदाय खाने को आपस में बांटकर खाने में विश्वास रखता है और लंगर इस बात का सबसे बड़ा उदहारण है। गुरुद्वारा में लगभग सभी धर्म के लोग जाते हैं और इस बात में कोई शक नहीं है कि सभी लोग गुरुद्वारा में लंगर में मिलने वाली स्वादिष्ट दाल-रोटी और लजीज हलवे का आनंद उठाते हैं।
गुरु नानक जंयती Guru Nanak Jayanti का त्यौहार आज यानी 23 नवंबर को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। सिखों के आदिगुरु गुरु नानक देव का अवतरण संवत् 1526 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। आज गुरु नानक देव के जन्मदिवस पर हम आपको गुरुद्वारों में लगने वाले लंगर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। अगर आप कभी गुरुद्वारा गए हैं, तो आपने वहां 'लंगर' में खाना जरूर खाया होगा।
क्या आप जानते हैं कि गुरुद्वारा में दिन-रात रात लंगर में खाना क्यों खिलाया जाता है? सिख समुदाय खाने को आपस में बांटकर खाने में विश्वास रखता है और लंगर इस बात का सबसे बड़ा उदहारण है। गुरुद्वारा में लगभग सभी धर्म के लोग जाते हैं और इस बात में कोई शक नहीं है कि सभी लोग गुरुद्वारा में लंगर में मिलने वाली स्वादिष्ट दाल-रोटी और लजीज हलवे का आनंद उठाते हैं। लंगर के दौरान सभी भक्त एकसाथ जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं।
ऐसे हुई लंगर की शुरुआत
गुरु नानक उस समय महज 10 से 12 वर्ष के रहे होंगे। पिता महता कालू ने उन्हें बुलाया और कहा कि ये लो 20 रूपये। तुम बाजार जाओ, इन 20 रूपये से एक कारोबार शुरू करो और शाम ढलने तक घर लौटते समय मुनाफ़ा कमाकर ही आना। नानक ने पिता से पैसे लिए और बाजार की ओर रवाना हो गए। बाजार से गुजरते हुए नानक की नजर एक भूखे भिखारी पर पड़ी। वह भूख से बिलख रहा था। नानक ने अपने हाथ की मुट्ठी में बंद पैसे देखे और दूसरी बार उस भिखारी की ओर देखा। इसके बाद नानक आगे चल दिए। कुछ देर बाद नानक हाथ में खाने की खूब सारी चीजें लिए हुए उस भिखारी के पास पहुंचे।
उसे भरपेट खाना खिलाया और जाने अनजाने में ही 'लंगर' की प्रथा आरम्भ की। भिखारी लो लंगर खिलाने के बाद खाली हाथ नानक घर की ओर लौट गए। जब वे घर पहुंचे तो महता कालू उनपर बेहद क्रोधित हुए। ना तो नानक के पास कारोबार से किया हुआ कोई मुनाफा था और ना ही वे 20 रूपये थे जो पिता महता कालू ने उन्हें दिए थे। गुस्से में महता कालू ने उनसे पूछा कि मैनें तुम्हें जो पैसे दिए थे उसका तुमने क्या किया। तो विनम्रता से नानक ने कहा कि मैंने उन पैसों से भूखे भिखारियों का पेट भरा। यह सुनते ही महता कालू गुस्से से और भी लाला हो गए।
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में लगता है सबसे बड़ा लंगर
सिखों के सबसे मशहूर धार्मिक स्थल अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में रोजाना हजारों लोग लंगर में खाना खाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, यहां रोजाना लगभग 40,000 से 80,000 खाना खाते हैं और वीकेंड में यह संख्या लगभग दोगुनी हो जाती है।
लंगर के लिए 1 घंटे में बनती हैं 25 हजार रोटियां
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में रोटी बनाने की एक मशीन भी लगी है जिसका इस्तेमाल छुट्टियों और धार्मिक अवसरों पर किया जाता है। इस मशीन को लेबनान के भक्तों ने लगवाया है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इससे एक घंटे में लगभग 25 हजार रोटी बनती हैं।
लंगर में शामिल होती हैं ये चीजें
लंगर की पूरी सामग्री शाकाहारियों के लिए होती है। लंगर के भोजन में दाल, चावल, चपाती, अचार और एक सब्जी शामिल होती है। इसके साथ मीठे के तौर पर खीर होती है। सुबह में चाय लंगर होता है, जिसमें चाय के साथ मठरी होती है।
एक बार में 100 खाते हैं लंगर
श्रद्धालु लंगर भवन में लगे गलीचे पर कतार में बैठकर भोजन करते हैं। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एसजीपीसी के स्वयंसेवी एक बार में सिर्फ 100 लोगों को प्रवेश की अनुमति देते हैं। पूरी सावधानी से रोजाना पूरी व्यवस्था का संचालन किया जाता है।