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Uttar Pradesh: मोनाड यूनिवर्सिटी के चेयरमैन विजेंद्र को अपने रडार पर लेगी ईडी

By राजेंद्र कुमार | Updated: May 19, 2025 16:25 IST

फिलहाल एसटीएफ के डीएसपी संजीव दीक्षित जिनकी देखरेख में विजेंद्र सिंह को मोनाड यूनिवर्सिटी में छापेमारी कर 1372 फर्जी मार्कशीट, 282 फर्जी प्रोविजनल एवं माइग्रेशन दस्तावेज़ पकड़े गए हैं. उनके आधार पर यूनिवर्सिटी के चेयरमैन विजेंद्र सिंह सहित कुल दस लोगों को गिरफ्तार किया गया है. 

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 50 हजार से लेकर पांच लाख रुपए में दी जा रही फर्जी डिग्री और मार्कशीट के मामले में पकड़े गए मोनाड यूनिवर्सिटी के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा को जल्दी ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अपने रडार पर लेगा. फिलहाल एसटीएफ के डीएसपी संजीव दीक्षित जिनकी देखरेख में विजेंद्र सिंह को मोनाड यूनिवर्सिटी में छापेमारी कर 1372 फर्जी मार्कशीट, 282 फर्जी प्रोविजनल एवं माइग्रेशन दस्तावेज़ पकड़े गए हैं. उनके आधार पर यूनिवर्सिटी के चेयरमैन विजेंद्र सिंह सहित कुल दस लोगों को गिरफ्तार किया गया है. 

एसटीएफ़ ने विजेंद्र सिंह हुड्डा, यूनिवर्सिटी के चांसलर नितिन कुमार सिंह, चेयरमैन का पीए मुकेश ठाकुर, यूनिवर्सिटी का हेड ऑफ वैरिफिकेशन डिपार्टमेंट गौरव शर्मा, विपुल ताल्यान, एडमिशन डायरेक्टर इमरान, अकाउंटेंट अनिल वत्रा, कुलदीप, सनी कश्यप और संदीप सेहरावत को गिरफ्तार किया है. इन सभी के कारनामों का ब्यौरा एसटीएफ़ के अधिकारी तैयार कर उसको ईओडब्लू तथा ईडी को जल्दी ही सौंपेगे, ताकि विजेंद्र सिंह और उसे बचाने वाले राजनीतिक आकाओं को भी पकड़ा जा सके. 

इसलिए कसेगा ईडी का शिंकजा : 

बताया जा रहा है कि एसटीएफ़ की इस रिपोर्ट के आधार पर ईडी के अधिकारी विजेंद्र सिंह हुड्डा चंद वर्षों में खड़े किए गए विशाल साम्राज्य की जांच करेंगे. यह भी पता लगाएंगे कि 1500 करोड़ रुपए के बाइक बोट घोटाले में नाम आने के बाद पांच लाख रुपए के इनामी विजेंद्र सिंह कैसे विदेश भागा और फिर वहां से वापस आने के बाद उसकी जमानत कैसे हो गई. फिर वह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर कैसे बिजनौर से बीता लोकसभा का चुनाव लड़ा और उसके बाद कैसे वह मोनाड यूनिवर्सिटी की फर्जी और मार्कशीट बेचने का घंधा करने लगा. 

विजेंद्र सिंह के बार में यह जानकारी हासिल करने में एसटीएफ़ और ईडी को मोनाड यूनिवर्सिटी से बरामद किए गए  14 मोबाइल फोन, 6 आईपैड, सात लैपटॉप, 26 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि भी काफी उपयोगी साबित होंगे. एसटीएफ इस यूनिवर्सिटी से मिले डेटाबेस के जरिए बीते 2 सालों में दी गई एक एक डिग्री का ब्यौरा जुटाकर अब यह तलाश करेगी कि फर्जी डिग्री लेने वाले यह लोग कौन थे और फर्जी डिग्री का इस्तेमाल कहां हुआ है. 

फिलहाल एसटीएफ़ के अधिकारियों को मोनाड यूनिवर्सिटी से पकड़े गए संदीप कुमार उर्फ संदीप सेहरावत जो हरियाणा का रहने वाला है ने यह बताया है कि वह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन बिजेंद्र सिंह हुड्डा के कहने पर बीएड, बीए, बीए एलएलबी, फार्मासिस्ट और बीटेक की फर्जी मार्कशीट व डिग्री छापता था. और विजेंद्र सिंह का खास राजेश इस काम में उसकी मदद करता था. डीएसपी संजीव दीक्षित का कहना है कि अब तक जांच में यह साबित हुआ है कि ये लोग प्रत्येक कोर्स के हिसाब से डिग्री व मार्कशीट के अनुसार 50 हजार से 4 लाख तक प्रति छात्र लेते रहे हैं. 

बीते तीन वर्षों से यह धंधा हो रहा था. यह सब भी तब हो रहा था जबकि ईओडब्ल्यू के साथ ईडी बाइक बोट घोटाले की जांच कर है. विजेंद्र सिंह भी इस घोटाले में आरोपी रहा है. ऐसे में अब विजेंद्र सिंह हुड्डा की गिरफ्तारी के बाद मोनाड यूनिवर्सिटी पर ईडी का भी शिकंजा कसना तय है क्योंकि आशंका जताई जा रही है कि बाइक बोट घोटाले से जुटाई गई रकम विजेंद्र सिंह हुड्डा ने मोनाड यूनिवर्सिटी में निवेश किया. 

कौन हैं बिजनौर से चुनाव लड़ने वाले विजेंद्र सिंह?

एसटीएफ़ के अफसरों के अनुसार, मोनाड यूनिवर्सिटी के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा बहुत पहुंचा हुआ व्यक्ति है. वह सिर्फ दसवीं पास है लेकिन उसने चीन में लैपटाप और टैबलेट बेचकर करोड़ों रुपए कमाए. वर्ष 2010 में उसने चीन से लौट कर भारत में यह कारोबार शुरू किया और यहां भी उसने करोड़ों रुपए कमाए. इसके बाद उसने देश के नामी पत्रकारों के साथ मिलकर एक न्यूज़ चैनल शुरू किया. 

इसके जरिए उसने यूपी के बड़े नौकरशाहों के साथ ही देश के तमाम चर्चित नेताओं से अपने संपर्क बनाए. वर्ष 2018 में उसने अपने न्यूज चैनल को बेच दिया और दूसरी कारोबार करने में जुट गया. परन्तु उसे सफलता नहीं मिली. इसी बीच उसका संपर्क वर्ष 2010 में बनी गर्वित इनोवेटिव लिमिटेड कंपनी के मालिकों से हुआ. फिर इन लोगों ने मिलकर वर्ष 2018 में बाइक बोट नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया. 

इस स्टार्टअप के जरिए यह वादा किया गया कि 62 हजार रुपए निवेश करने पर एक साल तक प्रतिमाह 9500 रुपये मिलेंगे. इसके बाद इलेक्ट्रिक बाइक स्कीम भी लॉन्च की गई.इसमें बताया गया कि 1.24 लाख रुपए का निवेश करने पर एक साल तक 17 हजार रुपये प्रति महीने मिलेंगे. कंपनी के इस वादे पर लाखों लोगों ने कंपनी में निवेश किया. कुछ महीने तक इस कंपनी की तरफ से निवेशकों के पैसे भी वापस किए गए, फिर यह कंपनी बंद हो गई. 

इसके बाद निवेशकों ने हंगामा किया तो पहले इस मामले की ईओडब्ल्यू ने जांच की फिर ईडी की जांच शुरू हुई. साल 2019 में विजेंद्र सिंह का नाम बाइक बोट घोटाले में आया. इसी बीच विजेंद्र सिंह और उसकी करीबी दीप्ति बहल लंदन भाग गए. इन दोनों पर पांच-पांच लाख रुपए का इनाम घोषित था. वर्ष 2022 में विजेंद्र सिंह ने कोर्ट से जमानत ले ली. इसके बाद उसने हापुड़ के पिलखुआ में मोनाड यूनिवर्सिटी खोल दी. 

इस यूनिवर्सिटी से वह फर्जी डिग्री बनाकर बेचने लगा. अपने इस गोरखधंधे को छिपाने के लिए विजेंद्र सिंह ने बीते साल राष्ट्रीय लोकदल की सदस्यता ली. फिर लोकसभा चुनाव के ठीक पहले उसने बसपा मुखिया मायावती से मिलकर बिजनौर संसदीय सीट से चुनाव लड़ने के लिए टिकट प्राप्त कर लिया. 

इस चुनाव में विजेंद्र सिंह को 2,18,986 वोट मिले थे. वह तीसरे स्थान पर रहा था. इस चुनाव के बाद उसने बसपा से नाता तोड़ लिया और अपनी यूनिवर्सिटी की वह फर्जी डिग्री बनाकर बेचने के गोरखधंधे में जुट गया. इस गोरखधंधे में उसने बड़ी संख्या में छात्रों को चूना लगाकर भारी कमाई की है. 

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