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महिलाओं के खिलाफ अपराध कैसे थमे जब सजा की दर ही बेहद सुस्त, पढ़ें NCRB के आंकड़े

By रोहित कुमार पोरवाल | Updated: December 4, 2019 15:31 IST

2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में देशभर में सजा की दर 24.5 फीसदी रही जोकि अकेले दिल्ली में 35 फीसदी रही। सजा दर के मामले में गुजरात और पश्चिम बंगाल सबसे पीछे रहे।

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ठळक मुद्दे2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में देशभर में सजा की दर 24.5 फीसदी रही जोकि अकेले दिल्ली में 35 फीसदी रही। सजा दर के मामले में गुजरात और पश्चिम बंगाल सबसे पीछे रहे। गुजरात में यह 3.1 फीसदी और पश्चिम बंगाल में सजा की दर 3.2 फीसदी रही। 

निर्भया मामले के आरोपियों को वारदात के सात साल बाद भी फांसी पर नहीं लटकाया जा सका है। वहीं, निर्भया मामले की तरह एक बार फिर हैदराबाद के दिशा रेप-हत्याकांड की वजह से देशभर में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए व्यापक स्तर पर चिंता और गुस्सा दिखाई दे रही है। देशभर में जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। संसद में भी इस महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर सवाल-जबाव हो रहे हैं।

एक बड़ी आबादी आए दिन हो रहे ऐसे अपराधों की खबरों से हताश है तो बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जिन्हें उम्मीद है कि नई पीढ़ी के लिए देश को अपराध मुक्त और बेहतर बनाया जा सकता है। ऐसा करने के लिए किसी को भी समस्या की गहराई में उतरना होगा। भारत में आपराधिक घटनाओं को दर्ज करने के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) है। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कितने लोगों को सजा मिली, इस बात का रिकॉर्ड भी ब्यूरो के पास रहता है। 

इस बाबत 2017 के एनसीआरबी के आकड़े हैरान करने वाले हैं। 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में देशभर में सजा की दर 24.5 फीसदी रही जोकि अकेले दिल्ली में 35 फीसदी रही। सजा दर के मामले में गुजरात और पश्चिम बंगाल सबसे पीछे रहे। गुजरात में यह 3.1 फीसदी और पश्चिम बंगाल में सजा की दर 3.2 फीसदी रही। 

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में रेप के 32599 मामले दर्ज किए गए। इनमें बच्चों के साथ हुए अपराध मामलों की संख्या 10221 थी। 

हलांकि ये आंकड़े 2013 के एनसीआरबी के आंकड़ों से बहुत कम हैं। 2013 में महिला और बच्चों के खिलाफ अपराधों के 33707 मामले दर्ज किए गए। 

जानकारों का मानना है कि निर्भया मामले के बाद कानून को कठोर हुए लेकिन उन्हें अमल में लाने और अपराधों से निपटने के लिए बुनियादी संरचना की कमी देर तक मुकदमों के जारी रहने के कारण अपराधों के मामलों में न्याय सुस्त रफ्तार से हुआ।

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