पीपीए रद्द होने तक मुफ्त बिजली के खोखले वादे का कोई मतलब नहीं है : नवजोत सिद्धू

By भाषा | Published: July 6, 2021 03:45 PM2021-07-06T15:45:40+5:302021-07-06T15:45:40+5:30

There is no point in the hollow promise of free electricity till the PPA is cancelled: Navjot Sidhu | पीपीए रद्द होने तक मुफ्त बिजली के खोखले वादे का कोई मतलब नहीं है : नवजोत सिद्धू

पीपीए रद्द होने तक मुफ्त बिजली के खोखले वादे का कोई मतलब नहीं है : नवजोत सिद्धू

googleNewsNext

चंडीगढ़, छह जुलाई कांग्रेस विधायक नवजोत सिंह सिद्धू ने मंगलवार को एक कानून के जरिए पंजाब में बिजली खरीद समझौते (पीपीए) को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि मुफ्त बिजली के ‘‘खोखले वादों’’ का कोई मतलब नहीं है, जब तक कि शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार के दौरान हस्ताक्षरित इन समझौतों को रद्द नहीं किया जाता।

क्रिकेटर से नेता बने सिद्धू ने सिलसिलेवार ट्वीट में यह भी कहा कि अगर पीपीए के तहत निजी बिजली संयंत्रों को दिए जा रहे तय शुल्क का भुगतान नहीं किया गया, तो बिजली की लागत सस्ती हो सकती है। पंजाब में बिजली संकट के बीच सिद्धू पिछले कुछ दिनों से खासकर पीपीए का मुद्दा उठा रहे हैं।

सिद्धू ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘मुफ्त बिजली के खोखले वादों का कोई मतलब नहीं है, जब तक कि ‘‘पंजाब विधानसभा में नए कानून’’ के माध्यम से पीपीए को रद्द नहीं किया जाता है...जब तक पीपीए के दोषपूर्ण खंड पंजाब के लिए बाध्यकारी हैं, 300 यूनिट मुफ्त बिजली केवल एक कल्पना है।’’

आम आदमी पार्टी (आप) ने अगले साल सत्ता में आने पर 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का वादा किया है। सिद्धू ने चार जुलाई को राज्य में उपभोक्ताओं को 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली और चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध कराने की भी पैरवी की थी।

अमृतसर पूर्व सीट से विधायक सिद्धू ने दावा किया, ‘‘पीपीए पंजाब को 100 प्रतिशत उत्पादन के लिए निश्चित शुल्क का भुगतान करने को लेकर बाध्य करते हैं, जबकि अन्य राज्य 80 प्रतिशत से अधिक का भुगतान नहीं करते हैं...यदि पीपीए के तहत निजी बिजली संयंत्रों को इन निश्चित शुल्कों का भुगतान नहीं किया जाता है, तो यह पंजाब में सीधे तौर पर बिजली की लागत को तुरंत 1.20 प्रति यूनिट कम कर देगा।’’

बिजली खरीद समझौते के प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए सिद्धू ने दावा किया कि पिछली सरकार के दौरान हस्ताक्षर किए गए पीपीए राज्य में बिजली की मांग की ‘‘गलत गणना’’ पर आधारित थे। उन्होंने दावा किया, ‘‘13,000-14,000 मेगावाट की शीर्ष मांग केवल चार महीने के लिए है, जबकि बाकी समय बिजली की मांग 5000-6000 मेगावाट तक रहती है, लेकिन शीर्ष मांग पर निर्धारित शुल्क का भुगतान करने के लिए पीपीए तैयार किए गए और इस पर हस्ताक्षर किए गए।’’

उन्होंने दावा किया कि ‘‘दोषपूर्ण’’ पीपीए के कारण पंजाब के लोगों को ‘‘हजारों करोड़ रुपये’’ ज्यादा खर्च किए हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Open in app