हैपी बर्थडे राहुल द्रविड़: 'द वॉल' जिसने नए सिरे से गढ़ी जेंटलमैन गेम की परिभाषा

राहुल द्रविड़ को भारत ही दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाजों में से एक गिना जाता है

By विनीत कुमार | Published: January 11, 2018 10:07 AM2018-01-11T10:07:26+5:302018-01-11T10:20:05+5:30

Rahul Dravid birthday special: the wall of Indian cricket best records and profile | हैपी बर्थडे राहुल द्रविड़: 'द वॉल' जिसने नए सिरे से गढ़ी जेंटलमैन गेम की परिभाषा

राहुल द्रविड़

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राहुल द्रविड़..एक ऐसा खिलाड़ी जिसने कब खामोशी से इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा और फिर कब मैदान से बाहर चला गया, पता ही नहीं चला। 1996 की जून में श्रीलंका के खिलाफ वनडे से अपने इंटरनेशनल क्रिकेट का सफर शुरू करने वाले द्रविड़ उन चुनिंदा खिलाड़ियों में हैं जो अपने करीब 16 साल के करियर में कभी विवादों में नहीं आए।

'द वॉल ऑफ इंडिया'...द्रविड़

द्रविड़ भले ही मैदान पर शांत और सौम्य नजर आए हों लेकिन आंकड़े गवाह हैं कि उनका बल्ला उतना ही ठोस, अपने अंदाज में उतना ही आक्रामक और गजब के संयम के साथ गेंदबाजों को जवाब देता नजर आया। शायद यही कारण है कि वनडे और फिर टी20 ने आज भले ही क्रिकेट का रंग-रूप बदल दिया और इसकी छाप अब टेस्ट क्रिकेट पर भी नजर आने लगी हो। लेकिन इस खेल को 'जेंटलमैन गेम' अगर आज भी लोग कहते हैं तो इसके पीछे द्रविड़ जैसे कई खिलाड़ी ही हैं।

इंदौर में जन्में द्रविड़ का बेंगलुरु सफर

द्रविड़ का जन्म 11 जनवरी, 1973 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ। बाद में उनका परिवार बेंगलुरू चला गया और फिर वहीं से द्रविड़ ने क्रिकेट का ककहरा सीखा। द्रविड़ अपने शहर को बेइंतहा प्यार करते हैं और इसका जिक्र वह कई बार तामाम इंटरव्यू में कर चुके हैं। द्रविड़ के मुताबिक उनमें क्रिकेट के प्रति पहला लगाव उनके पिता के कारण आया। द्रविड़ ने एक इंटरव्यू में बताया कि कैसे उनके पापा रात-रात भर जगकर रेडियो पर कॉमेंट्री सुनते थे, जब वेस्टइंडीज में मैच होते थे। ऐसे ही वह अपने पिता के साथ कई बार रणजी मैचों को देखने गए और फिर वहीं से क्रिकेट को द्रविड़ ने गंभीरता से लेना शुरू किया।

गांगुली के साथ शुरू हुआ टेस्ट करियर 

द्रविड़ ने 1996 में सौरव गांगुली के साथ अपने टेस्ट करियर का आगाज किया। लॉर्ड्स में इंग्लैंड के खिलाफ इस मैच में गांगुली ने 131 रन बनाए और द्रविड़ ने 95 रन बनाए। इसके बाद नॉटिंघम में दूसरे मैच की पहली पारी में भी द्रविड़ ने 84 रनों की शानदार पारी खेली। दिलचस्प ये रहा कि गांगुली ने भी दूसरे मैच में एक बार फिर शतक ठोका। यह दोनों मैच ड्रा रहे और गांगुली के शतकों के आगे द्रविड़ की चर्चा कम हुई। जानकारों और मीडिया की नजर भले ही तब गांगुली पर रही लेकिन पर्दे के पीछे से द्रविड़ तेजी से उभरने लगे थे।

स्टार बैट्समैन के दौर में द्रविड़ ने बनाया अलग मुकाम

द्रविड़ पर पूरे करियर में कही न कही यह ठप्पा लगता रहा कि उनका बल्लेबाजी करने का अंदाज बहुत धीमा है और वह तेजी से रन नहीं बना सकते। द्रविड़ जिस दौर में आए उस समय वनडे लोकप्रिय हो रहा था। एक ओर तेंदुलकर अपने खेल से दुनिया को लुभा रहे थे तो वहीं, अफरीदी से लेकर सनथ जयसूर्या की चर्चा सुर्खियां बटोर रही थी। इसके बावजूद द्रविड़ अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे। द्रविड़ के बल्ले से भले ही छक्के नहीं निकल रहे थे लेकिन उनका कवर ड्राइव और क्रिकेट के किताबी शॉट्स को वह जिस अंदाज से मैदान पर उतारते थे, उसे देखकर हर कोई मुग्ध होता रहा।   

द्रविड़ की एक अलग बल्लेबाजी स्टाइल थी और विकेट पर जम जाने की उनकी यह काबिलियत ही थी जिसकी बदौलत उनके खाते में 344 वनडे मैच आए। उन्होंने इन मौकों को गलत साबित नही होने दिया और 10,000 से ज्यादा रन बनाए। वनडे में उनके नाम 12 शतक और 83 अर्धशतक हैं।

टेस्ट मैचों में बेमिसाल रहे द्रविड़   

टेस्ट मैचों में द्रविड़ ने कैसे-कैसे कमाल किए हैं, इसकी कहानी अपने आप में क्रिकेट के इस खेल को लेकर एक अलग रोमांच पैदा कर देती है। साल-2000 के बाद के 10-12 सालों में जब भी टीम इंडिया ने टेस्ट मैचों में परचम फहराया, उसमें द्रविड़ का योगदान सबसे अहम रहा। फिर चाहे कोलकाता टेस्ट में वीवीएस लक्ष्मण के साथ बल्लेबाजी करते हुए 180 रनों की पारी हो या फिर 2003 में ऐडिलेड में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 233 रनों की मैच जीताने वाली पारी, हर बार द्रविड़ ने सभी को स्तब्ध किया।

द्रविड़ के खेलते हुए भारत ने जितने टेस्ट मैच जीते उसमें इस दिग्गज के बल्ले से 5131 रन निकले जो केवल सचिन तेंदुलकर के 5594 से कम है। अगर विदेश जमीन की बात करें तो ये और भी नायाब है। द्रविड़ के करियर के दौर में भारत ने विदेशों में 15 टेस्ट मैच (बांग्लादेश और जिम्बॉब्वे को छोड़) जीते और इन मैचों में 65.70 की औसत से उन्होंने 1577  रन बनाए, जो सचिन से भी ज्यादा हैं। 

कप्तान द्रविड़ से विकेटकीपर द्रविड़ तक  

भारतीय क्रिकेट में एक दौर ऐसा भी आया जब बेहद मुश्किल वक्त में राहुल द्रविड़ ने टीम की कप्तानी संभाली और भारत के लिए कई उपलब्धियां भी हासिल की। सौरव गांगुली के बाद इस जिम्मेदारी को संभालते हुए द्रविड़ ने 25 टेस्ट और 62 वनडे मैचों में भारतीय टीम की कप्तान की। उनकी कप्तानी में भारत ने 8 टेस्ट मैच जीते और 6 में हार मिली। साल 2006 में द्रविड़ की कप्तानी में ही वेस्टइंडीज में टेस्ट सीरीज जीतकर भारत ने इतिहास रचा। भारत ने तब वेस्टइंडीज में 1971 से लेकर उस वक्त तक कोई टेस्ट सीरीज नहीं जीती थी। इसके अलावा भारत ने इग्लैंड में भी सीरीज अपने नाम किया।

द्रविड़ ने 1999 से 2004 के बीच 73 वनडे मैचों में भारत के लिए बतौर विकेटकीपर अपनी भूमिका निभाई और बेहद सफल भी रहे। इस दौरान उन्होंने 71 कैच पकड़े और 13 स्टम्पिंग की।

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