मां नहीं चाहती थीं बेटा खेले क्रिकेट, जानिए कैसे कप्तान से BCCI अध्यक्ष बने सौरव गांगुली

खिलाड़ी के रूप में अपने शीर्ष दिनों के दौरान गांगुली जिस तरह सात खिलाड़ियों की मौजूदगी के बावजूद ऑफ साइड में आसानी से रन बनाकर विरोधी टीमों को हैरान कर देते थे।

By भाषा | Published: October 23, 2019 02:31 PM2019-10-23T14:31:55+5:302019-10-23T14:31:55+5:30

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मां नहीं चाहती थीं बेटा खेले क्रिकेट, जानिए कैसे कप्तान से BCCI अध्यक्ष बने सौरव गांगुली

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ड्रेसिंग रूम से बोर्ड रूम तक पहुंचे पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली का क्रिकेट प्रशासन के शीर्ष तक का सहज सफर उनके खेलने के दिनों की याद दिलाता है जब ऑफ साइड पर उनके कलात्मक खेल का कोई सानी नहीं होता था। 8 जुलाई 1972 को कोलकाता में जन्मे सौरव गांगुली की मां नहीं चाहती थीं कि वह क्रिकेट बनें। हालांकि बड़े भाई स्नेहशीष ने सौरव को सपोर्ट किया। स्नेहशीष खुद उस वक्त बंगाल क्रिकेट टीम की ओर से खेलते थे।

1993 से 1995 में रणजी में शानदार प्रदर्शन के बाद सौरव गांगुली को टीम इंडिया में चुन लिया गया। साल 1996 में इंग्लैंड दौरे में उन्होंने लगातार दो मैचों मेंशतक लगाकर देश में तहलका मचा दिया। इनमें से एक सेंचुरी लॉर्ड्स में थी। इसके बाद गांगुली ने कभी पीछे मुड़कर देखा ही नहीं।

सन् 2000 में टीम के अन्य सदस्यों के मैच फिक्सिंग के कांड और खराब स्वास्थ्य के चलते तात्कालिक कप्तान सचिन तेंदुलकर ने कप्तानी छोड़ दी, जिसके बाद गांगुली को कप्तान बनाया गया। विश्व कप-2003 में गांगुली की कप्तानी में भारत फाइनल तक पहुंचा। साल 2008 में सौरव इंडियन प्रीमियर लीग की टीम कोलकाता नाइट राइडर्स के कप्तान बनाए गए। इसी वर्ष ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक घरेलू सीरीज के बाद गांगुली ने क्रिकेट से त्याग की घोषणा की।

खिलाड़ी के रूप में अपने शीर्ष दिनों के दौरान गांगुली जिस तरह सात खिलाड़ियों की मौजूदगी के बावजूद ऑफ साइड में आसानी से रन बनाकर विरोधी टीमों को हैरान कर देते थे, उसी तरह वह विश्व क्रिकेट के शीर्ष पदों में से एक बीसीसीआई अध्यक्ष पद के लिए सभी को पछाड़ते हुए सर्वसम्मत उम्मीदवार बनकर उभरे।

दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के शीर्ष तक 47 साल के गांगुली के सफर ने एक बार फिर इस कहावत को सही साबित कर दिया कि ‘एक नेतृत्वकर्ता हमेशा नेतृत्वकर्ता’ रहता है। गांगुली के अंदर नेतृत्व क्षमता नैसर्गिक रूप से थी जिन्हें 2000 में उस समय भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया जब टीम इंडिया मैच फिक्सिंग के रूप में अपने सबसे बुरे दौर में से एक का सामना कर रही थी। गांगुली जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटे और उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए प्रतिभावान लेकिन दिशाहीन युवा खिलाड़ियों के समूह को विश्व स्तरीय टीम में बदला और साथ ही उस पीढ़ी के दिग्गजों के साथ अच्छे कामकाजी रिश्ते भी बनाए।

चाहे एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के साथ उस समय की सबसे घातक सलामी जोड़ी बनाना हो या युवराज सिंह और वीरेंद्र सहवाग जैसे उभरते हुए खिलाड़ियों का समर्थन हो, गांगुली ने हमेशा अपने फैसलों पर भरोसा किया और इन्हें सहजता से लिया। बड़े खिलाड़ी से शीर्ष प्रशासक तक के सफर को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए हालांकि उन्हें कई चुनौतियों से पार पाना होगा जिसका सामना फिलहाल भारतीय क्रिकेट को करना पड़ रहा है। वह खिलाड़ी के रूप में ऐसा करने में सफल रहे और अब प्रशासक के रूप में भी ऐसा करने में सक्षम हैं।

भारत को अपनी कप्तानी में 21 टेस्ट जिताने वाले और 2003 विश्व कप के फाइनल में पहुंचाने वाले गांगुली को बंगाल क्रिकेट संघ के साथ प्रशासक के रूप में काफी अनुभव है। वह पहले इस संघ के सचिव और फिर अध्यक्ष रहे। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 18 हजार से अधिक रन बनाने वाले गांगुली निश्चित तौर पर ईडन गार्डन्स के कार्यालय में बैठकर मिले अनुभव का इस्तेमाल बीसीसीआई के संचालन में करेंगे।

गांगुली को बीसीसीआई की कार्यप्रणाली की भी जानकारी है क्योंकि वह बोर्ड की तकनीकी समिति और तेंदुलकर तथा वीवीएस लक्ष्मण के साथ क्रिकेट सलाहकार समिति के सदस्य रह चुके हैं। प्रशासकों की समिति के 33 महीने के कार्यकाल के बाद बीसीसीआई की बागडोर संभालने वाले गांगुली के पास भारतीय क्रिकेट की छवि सुधारने के लिए केवल नौ महीने का समय है जिसे 2013 आईपीएल स्पाट फिक्सिंग प्रकरण से नुकसान पहुंचा था।

गांगुली की कप्तानी में स्वाभाविकता और आक्रामक दिखती थी और उनकी नेतृत्व क्षमता की एक बार फिर परीक्षा होगी जब वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद में भारत को दोबारा उसकी मजबूत स्थिति दिलाने का प्रयास करेंगे। संभावना है कि गांगुली की अगुआई वाले प्रशासन और आईसीसी के बीच रस्साकशी देखने को मिल सकती है क्योंकि विश्व संचालन संस्था के प्रस्तावित भविष्य दौरा कार्यक्रम (एफटीपी) का बीसीसीआई के राजस्व पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

वैश्विक संस्था का नया संचालन ढांचा तैयार करने के लिए नवगठित कार्य समूह में आईसीसी के भारत को जगह नहीं देने से स्थिति और जटिल हो गई है। इसके अलावा घरेलू मोर्चे पर भी चुनौतियां कम नहीं हैं। कप्तान के रूप में भारतीय टीम को आगे बढ़ाने के लिए गांगुली को लगातार पांच साल मिले थे लेकिन इस बार उनके पास कुछ महीनों का ही समय होगा क्योंकि उन्हें अगले साल अनिवार्य ब्रेक लेना होगा। गांगुली ने खुद स्वीकार किया है कि बोर्ड में ‘आपातकाल जैसी स्थिति’ है लेकिन इस दिग्गज को पता है कि इस स्थिति से कैसे निपटना है क्योंकि खिलाड़ी के रूप में अपने सफर के दौरान भी वह ऐसी स्थिति का सामना कर चुके हैं।

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