मुंबई, एक दिसंबर भारत के पूर्व क्रिकेटर लक्ष्मण शिवरामकृष्णन को निराशा है कि वर्तमान समय के लेग स्पिनर टेस्ट क्रिकेट खेलने को लेकर महत्वाकांक्षी नहीं हैं और उन्होंने गेंद को रिवर्स स्विंग कराने पर अधिक जोर देने को इसके लिये कुछ हद तक जिम्मेदार ठहराया।
लेग स्पिनर पूर्व में टीम आक्रमण के केंद्र बिंदु हुआ करते थे लेकिन शेन वार्न और अनिल कुंबले जैसे दिग्गजों के संन्यास लेने के बाद लेग स्पिनरों का टेस्ट प्रारूप में कम प्रभाव देखने को मिला है।
पूर्व लेग स्पिनर शिवरामकृष्णन ने वर्चुअल बातचीत में कहा, ‘‘मुझे बहुत अधिक लेग स्पिनरों में टेस्ट क्रिकेट खेलने की महत्वाकांक्षा नहीं दिखती। वे सीमित ओवरों की क्रिकेट खेलकर ही खुश हैं। इससे वास्तव में मुझे पीड़ा पहुंचती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेग स्पिनरों के परिणाम देखकर मुझे वास्तव में निराशा होती है। वे केवल सफेद गेंद की क्रिकेट में सफल होते हैं जब बल्लेबाज आक्रमण पर ध्यान देते हैं और उन्हें विकेट मिलते हैं।’’
भारत की तरफ से नौ टेस्ट और 16 वनडे खेलने वाले शिवरामकृष्णन ने कहा कि एक लेग स्पिनर की असली परीक्षा टेस्ट क्रिकेट में होती है जबकि तीन करीबी क्षेत्ररक्षक लगे हों।
उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान समय की क्रिकेट में सभी लेग स्पिनर इसलिए सफल हो रहे हैं क्योंकि बल्लेबाज बड़े शॉट खेलने के प्रयास में गलतियां करते हैं। मुझे याद नहीं कि भारत के लिये आखिरी बार लेग स्पिनर कब टेस्ट मैच खेला था।’’
अमित मिश्रा भारत की तरफ से टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले आखिरी लेग स्पिनर थे और उन्होंने भी अपना अंतिम मैच 2016 में खेला था।
विश्व क्रिकेट की स्थिति भी ऐसी ही है। भारत के युजवेंद्र चहल, आस्ट्रेलिया के एडम जंपा और इंग्लैंड के आदिल राशिद सीमित ओवरों की क्रिकेट खेलने को प्राथमिकता देते हैं।
शिवरामकृष्णन ने कहा, ‘‘रिवर्स स्विंग पर बहुत अधिक जोर देने से कुछ स्पिनरों का करियर बर्बाद हुआ है। अब पुरानी गेंद का उपयोग रिवर्स स्विंग के लिये किया जाता है और इसका सबसे अधिक असर लेग स्पिनरों पर पड़ा है।
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