नयी दिल्ली, नौ दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने ‘बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल इन इंडिया’ (बीसीसीआई) और राज्य क्रिकेट संघों से जुड़े विवादों की सुनवाई के लिए अन्य अदालतों पर लगाई गई अपनी रोक बुधवार को हटा ली।
शीर्ष न्यायालय ने 14 मार्च 2019 को देश भर की सभी अन्य अदालतों को बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट संघों से जुड़े किसी विषय पर कार्यवाही करने या सुनवाई करने से रोक दिया था, जब तक कि न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थ एवं वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस नरसिम्हा लंबित विवादों पर अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप देते हैं।
उस वक्त न्यायमित्र के तौर पर न्यायालय की सहायता कर रहे नरसिम्हा को बीसीसीआई में क्रिकेट प्रशासन से जुड़े लंबित विवादों के समाधान के लिए मध्यस्थ नियुक्त किया गया था।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए की गई सुनवाई के दौरान राज्य क्रिकेट संघों की ओर से दी गई विभिन्न वकीलों की दलीलों का संज्ञान लिया और आदेश निष्प्रभावी करने का फैसला किया।
नरसिम्हा ने कहा कि सभी याचिकाकर्ताओं को, जिन्होंने विभिन्न राहत की मांग की है और जिन पर उच्च न्यायालयों द्वारा फैसला किया जा सकता है, उन्हें अब निराकरण पाने के लिए संबद्ध उच्च न्यायालय जाने की अनुमति है।
शीर्ष न्यायलय ने इस बात का संज्ञान लिया कि काफी संख्या में अर्जियां निष्फल हो गई हैं क्योंकि उनमें मांगी गई राहत मध्यस्थता प्रक्रिया में दी जा चुकी है।
बहरहाल, शीर्ष न्यायालय ने कुछ लंबित अंतरिम अर्जियों को अगले साल जनवरी के तीसरे हफ्ते में सुनवाई के लिए निर्धारित कर दिया।
शीर्ष न्यायालय ने नरसिम्हा को मध्यस्थ नियुक्त करते हुए कहा था कि वह विभिन्न पक्षों द्वारा उठाए गए विषयों को सुनेंगे और न्यायालय द्वारा बीसीसीआई के लिए नियुक्त प्रशासक समिति (सीओए) को सिफारिशें करेंगे। पक्षों के संतुष्ट नहीं होने की स्थिति में न्यायालय उस विषय की सुनवाई करेगा।
शीर्ष न्यायालय ने 2017 में भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) विनोद राय की अध्यक्षता वाली सीओए को बीसीसीआई का कामकाज करने के लिए और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा समिति की न्यायालय द्वारा मंजूर की गई सिफारिशों को लागू करने के लिए नियुक्त किया था।
लोढ़ा समिति ने बीसीसीआई में सुधारों पर कुछ सिफारिशें की थी।
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