प्रवासी कामगारों के परिवारों के सामने आजीविका का संकट

By भाषा | Published: October 19, 2021 04:24 PM2021-10-19T16:24:14+5:302021-10-19T16:24:14+5:30

Livelihood crisis in front of families of migrant workers | प्रवासी कामगारों के परिवारों के सामने आजीविका का संकट

प्रवासी कामगारों के परिवारों के सामने आजीविका का संकट

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(सुमीर कौल)

श्रीनगर/सहारनपुर, 19 अक्टूबर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में फर्नीचर आदि बनाने का काम करने वाले 28 साल के जहांगीर के सामने अब परिवार का गुजारा करने का संकट खड़ा हो गया है जिसके पिता को पिछले शनिवार को दक्षिण कश्मीर में आतंकवादियों ने मार डाला। इस घटना के बाद इलाके से प्रवासी कामगारों का पलायन शुरू हो गया है।

जहांगीर ने सहारनपुर से फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हम अब्बा के साथ मिलकर घर चलाते थे। अब मैं सोच रहा हूं कि क्या करुंगा क्योंकि यहां ज्यादा काम नहीं है और मैं कश्मीर में उनका काम करने के बारे में सोच नहीं सकता।’’

जहांगीर के पिता सगीर अंसारी की आतंकवादियों ने शनिवार को दक्षिण कश्मीर के लितेर गांव में गोली मारकर हत्या कर दी थी। वहां वह पिछले कुछ साल से एक स्थानीय प्रतिष्ठान के साथ बढ़ई के रूप में काम कर रहे थे।

सगीर के छोटे भाई नसीर ने कहा, ‘‘हमें फोन आया कि सगीर भाई नहीं रहे और हमें जम्मू से उनका शव लाने को कहा गया। हम उसी समय निकल गये और उनके शव को घर लाए।’’

उन्होंने साफ किया कि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने शव को भेजने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया था, इसलिए उन्हें जम्मू से सहारनपुर तक उसे लेकर आना पड़ा।

जहांगीर शादीशुदा है और एक बच्ची का बाप है। उसने कहा, ‘‘मैं अपने पिता के साथ हर महीने करीब 15 हजार रुपये कमा लेता था, लेकिन अब उनकी मौत के बाद कुछ समझ नहीं आ रहा कि परिवार का गुजारा कैसे करुंगा।’’

अपने पिता से हुई बातचीत को याद करते हुए उसने कहा कि अब्बा कश्मीर में काम करते हुए बहुत खुश थे।

हालांकि 16 अक्टूबर को पुलवामा में सगीर की मौत और 17 अक्टूबर को पास के कुलगाम में दूसरे राज्य के दो नागरिकों राजा रिषी देव और जोगिंदर रिषी देव की मौत से दक्षिण कश्मीर में काम कर रहे दूसरे राज्यों के लोगों के बीच दहशत का माहौल पैदा हो गया।

एक अधिकारी ने बताया कि बाहर से आए लोग सेब के बागान और गत्ता तथा क्रिकेट बल्लों के कारखानों में काम करते हैं। वे घाटी में छह महीने रहकर काम करते हैं और फिर घर चले जाते हैं।

एक अन्य सुरक्षा अधिकारी के अनुसार दक्षिण कश्मीर से करीब 600 लोग सुरक्षित स्थानों की ओर जा चुके हैं।

नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, ‘‘किसी जानकार को मारने के बजाय अज्ञात की जान लेने से ज्यादा डर का माहौल पैदा होता है और मुझे फिक्र है कि आतंकवादी शायद इसमें कामयाब हो गए हैं।’’

यहां एक कपड़े की दुकान में काम करने वाला बिहार निवासी सूरज घाटी से जल्द अपने गांव जाने के लिए सामान पैक कर चुका है। उत्तर प्रदेश के हापुड़ का रहने वाला जावेद यहां एक सलून में काम करता है और वह भी घर जाने के बारे में सोच रहा है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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