चेक-बाउंस के मामलों का अंबार निपटाने को अतिरिक्त अदालतों की कानूनी व्यवस्था की जाए:न्यायालय

By भाषा | Updated: March 4, 2021 21:35 IST2021-03-04T21:35:09+5:302021-03-04T21:35:09+5:30

Legal arrangements should be made for additional courts to handle check-bounce cases: Courts | चेक-बाउंस के मामलों का अंबार निपटाने को अतिरिक्त अदालतों की कानूनी व्यवस्था की जाए:न्यायालय

चेक-बाउंस के मामलों का अंबार निपटाने को अतिरिक्त अदालतों की कानूनी व्यवस्था की जाए:न्यायालय

नयी दिल्ली, चार मार्च उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को अदालतों में लंबित 35 लाख से अधिक मामलों को ‘‘विचित्र’’ स्थिति बताया और केन्द्र सरकार को इस समस्या से पार पाने के वास्ते एक खास अवधि के लिये अतिरिक्त अदालतों के गठन के वास्ते कानून बनाने का सुझाव दिया।

मुख्य न्यायधीश एस ए बोवडे की अध्यक्षता में गठित पांच न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 247 के तहत केन्द्र सरकार को परक्राम्य लिखत अधिनियम के प्रावधानों के तहत चेक बांउस के मामलों से निपटने के लिये अधिकार प्राप्त हैं और साथ ही उसका यह कर्तब्य भी बनता है।

संविधान का अनुच्छेद 247 संसद को यह अधिकार देता है कि उसके द्वारा बनाये गये कानूनों के बेहतर प्रशासन के लिये वह कुद अतिरिक्त अदालतों का गठन कर सकती है। वह संघ की सूची से जुड़े मौजूदा कानूनों के मामले में भी ऐसा कदम उठा सकती है।

इस पीठ में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, बी आर गवई, ए एस बोपन्ना और एस रविंनद्र भट भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, ‘‘पराक्रम्य लिखत कानून के विकृत होने की वजह से इसके तहत लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस तरह के मामलों से निपटने के लिये आप एक निश्चित अवधि के लिये अतिरिक्त अदालतों की स्थापना कर सकते हैं।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि केन्द्र इस तरह के मामलों से निपटने के लिये एक सेवानिवृत न्यायधीश अथवा मामले के किसी विशेषज्ञ को भी नियुक्त कर सकती है।

पीठ ने केन्द्र की ओर से इस मामले में पेश सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि परक्राम्य लिखत कानून के तहत लंबित मामले समूचे न्यायिक प्रणाली में लंबित मामलों के 30 प्रतिशत तक हो गए हैं। इस कानून को जब बनाया गया था तब इसके न्यायिक प्रभाव के बारे में कोई आकलन नहीं किया गया। शीष अदालत के मुताबिक कानून बनाते समय इस तरह का आकलन किया जाना चाहिये।

उसने कहा कि जब कानून को बनाया गया तब यदि प्रभाव के बारे में आकलन नहीं किया गया तो यह अब किया जा सकता है। इसके लिये केन्द्र संविधान में प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है।

इस संदर्भ में पीठ ने बिहार में मद्य निषेध कानून बनने के बाद वहां लंबित जमानत के हजारों मामलों का जिक्र भी किया।

मेहता ने कहा कि हालांकि सरकार किसी भी नये विचार को लेकर सकारात्मक रुख रखती है लेकिन मुद्दे पर और विचार विमर्श की आवश्यकता है।

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