न्यायाधीशों को आर्थिक, राजकोषीय नियमन के मामलों में बहुत सोच-विचार कर हस्तक्षेप करना चाहिए: न्यायालय

By भाषा | Updated: March 23, 2021 23:46 IST2021-03-23T23:46:18+5:302021-03-23T23:46:18+5:30

Judges should intervene in matters of economic, fiscal regulation: Court | न्यायाधीशों को आर्थिक, राजकोषीय नियमन के मामलों में बहुत सोच-विचार कर हस्तक्षेप करना चाहिए: न्यायालय

न्यायाधीशों को आर्थिक, राजकोषीय नियमन के मामलों में बहुत सोच-विचार कर हस्तक्षेप करना चाहिए: न्यायालय

नयी दिल्ली, 23 मार्च उच्चतम न्यायाल ने मंगलवार को कहा कि न्यायाधीशों को आर्थिक और राजकोषीय नियामकीय ममलों में हस्तक्षेप करने में ‘काफी सावधानीपूवर्क’ कदम बढ़ानरा चाहिए क्योंकि वे ऐसे विषयों के कोई विशेषज्ञ नहीं होते।

न्यायालय ने किस्त अदायगी पर रोक से जुड़े मामले में फैसला सुनाते हुए यह बात कही। फैसले में उसने निर्देश दिया कि पिछले साल कोविड-19 महामारी संकट के बीच कर्ज अदायगी पर रोक को लेकर उधारकर्ताओं से कोई चक्रवृद्धि या दंडात्मक ब्याज नहीं लिया जाएगा और यदि पहले ही इस तरह की कोई राशि ली जा चुकी है, तो उसे वापस या कर्ज की अगली किस्त में समायोजित किया जाएगा।

न्यायाधीश अशोक भूषण, न्यायाधीश आर एस रेड्डी और न्यायाधीश एम आर शाह की पीठ ने कहा कि यह अंतत: सरकार और आरबीआई को विशेषज्ञों से सलाह लेकर निर्णय करना होता है कि देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज से क्या बेहतर है और कितना वित्तीय राहत या पैकेज दिया जाना है। उन्हें ही (सरकार औ रिजर्व बैंक) इसे तैयार करना और क्रियान्वित करना होता है।

पीठ ने कहा, ‘‘ये ऐसे मामले हैं जिनके बारे में न्यायाधीशों और अदालतों के वकीलों को उनके प्रशिक्षण और विशेषज्ञताओं के आधार पर बहुत ज्यादा जानकारी होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। आर्थिक और राजकोषीय नियमन के उपाय एक ऐसा क्षेत्र है जहां न्यायाधीशों को बहुत ही सोच-विचारकर हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि न्यायाधीश इन मामलों के विशेषज्ञ नहीं होते हैं।’’

शीर्ष अदालत ने विभिन्न पक्षों की तरफ से दायर याचिकाओं पर अपने फैसले में यह बात कही। इन याचिकाओं में महामारी को देखते हुए ऋण किस्त अदायगी से छूट की अवधि बढ़ाने, स्थगन अवधि के दौरान ब्याज या ब्याज पर ब्याज से पूरी तरह से छूट तथा क्षेत्रवार राहत पैकेज का निर्देश देने का आग्रह किया गया था।

अपने फैसले में पीठ ने कहा कि जब सरकार कोई नीति बनाती है, वह परिस्थिति, कई तथ्यों और संसाधनों की कमी समेत विधि परिस्थितियों पर आधारित होती है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘नीति निर्माण में विशेषज्ञों की भी राय होती है। ऐसे में अगर अदालत से कहा जाए कि वह हलफनामे में दिये गये तथ्यों के आधार पर नीति के लाभकारी प्रभाव या उसका मूल्यांकन करे तो यह खतरनाक होगा।

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Web Title: Judges should intervene in matters of economic, fiscal regulation: Court

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