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खाद्य तेलों में सरसों तेल के सम्मिश्रण पर रोक के फैसले से संतुष्ट है उद्योग

By भाषा | Updated: May 30, 2021 15:51 IST

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नयी दिल्ली, 30 मई खाद्य तेलों में सरसों तेल के सम्मिश्रण पर आठ जून 2021 से पूरी तरह रोक लगाने के निर्णय से घरेलू खाद्य तेल उद्योग खुश है और सरकार के इस कदम को देश में तिलहन उत्पादन, तेल उद्योग और रोजगार के अवसर बढ़ाने वाला बताया है।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की एक अधिसूचना के माध्यम से खाद्य सुरक्षा और मानक (विक्रय प्रतिषेध और निर्बंधन) विनिमय 2011 में संशोधन किया है। आठ मार्च को जारी खाद्य सुरक्षा और मानक (बिक्री निषेध और प्रतिबंध) तीसरा संशोधन नियमन 2021के अनुसार आठ जून 2021 को और उसके बाद किसी भी बहु स्रोतीय खाद्य वनस्पति तेल में सरसों तेल का सम्मिश्रण नहीं की जा सकेगा। यानी अब सरसों तेल को बिना किसी सम्मिश्रण के बेचना होगा।

एफएसएसआई ने इसके साथ ही विभिन्न मिश्रण वाले खाद्य वनस्पति तेलों (सरसों तेल शामिल नहीं) की खुली बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाया है। इस प्रकार के बहुस्रोत वाले खाद्य तेलों की बिक्री 15 किलो तक के सील बंद पैक में ही की जा सकेगी। इसमें यह भी कहा गया है कि ऐसे मिश्रित तेलों को ‘‘बहु स्रोतीय खाद्य वनस्पति तेल’’ नाम से बेचा जा सकेगा। इसमें सम्मिश्रण में प्रयोग किये गये तेल के सामान्य अथवा वंश नाम का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा।

एफएसएसआई के मुताबिक उसने 10 नवंबर 2020 को इस संबंध में विभिन्न पक्षों से उनकी आपत्तियां और सुझाव मांगे थे। ये सुझाव 18 नवंबर 2020 को इस संबंध में जारी राजपत्र की प्रतियां जनता को उपलब्ध कराने के 60 दिने के भीतर मांगे गये थे। जनता से प्राप्त टिप्पणियों और सुझावों पर विचार करने के बाद एफएसएसआई ने इन बदलावों को आठ जून 2021 से अमल में लाने की अधिसूचना मार्च में जारी कर दी थी।

बाजार सूत्रों का कहना है कि सरकार ने सरसों तेल के सम्मिश्रण को रोककर सराहनीय काम किया है। इससे शुद्ध सरसों तेल की मांग बढ़ेगी और देश में तिलहन उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। उनका कहना है कि पुराने नियमों की आड़ में अब तक आम जनता को मिश्रित सरसों तेल ही उपलब्ध होता रहा है। कई खाद्य तेलों में तो केवल 20 प्रतिशत ही सरसों तेल होता था जबकि 80 प्रतिशत दूसरे तेलों का मिश्रण होता था। चावल की भूसी के तेल का इसमें सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाता रहा है।

बाजार के जानकारों का यह भी कहना है कि सरकार को थोक भाव और खुदरा भाव के बीच जारी व्यापक अंतर पर गौर करना चाहिये और बाजार में ऊंचे मार्जिन पर हो रही बिक्री को लेकर संज्ञान लेना चाहिये। इससे उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिलेगी। उनके मुताबिक घरेलू तेल तिलहन उद्योग पिछले कई वर्षों से सस्ते विदेशी तेलों के आयात के कारण दबा रहा है। अब जबकि विदेशी बाजारों में तेजी है इसलिये घरेलू बाजार में भी तेजी का रुख बना है। कई सालों में पहली बार सरसों और सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को मिला है। इस स्थिति को बनाये रखना देश हित में होगा।

खाद्य तेल उद्योग के जानकारों का कहना है कि तेल तिलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने से जहां सालाना सवा सौ करोड़ रुपये के आयात खर्च की बचत हो सकती है वहीं खली के अतिरिक्त निर्यात से 75 हजार करोड़ रुपय की विदेशी मुद्रा का फायदा हो सकता । इससे घरेलू उद्योग, रोजगार और राजस्व भी बढ़ेगा।

बाजार जानकारों का कहना है कि सरसों तेल मिल डिलवरी भाव इन दिनों 14,400 रुपये क्विंटल (144 रुपये किलो यानी 1,000 ग्राम) के भाव पड़ता है। एक लीटर (910 ग्राम) थैली का भाव पांच प्रतिशत जीएसटी के साथ 137- 138 रुपये लीटर बैठता है। पैकिंग, मार्जिन अन्य खर्चे आदि मिलाकर खुदरा बाजार में सरसों, सोया रिफाइंड का भाव 150 रुपये लीटर से अधिक नहीं होना चाहिये। जबकि इनके भाव कुछ रिपोर्टों में 170- 180 रुपये लीटर तक बोले जा रहे हैं। इस स्थिति पर गौर किया जाना चाहिये।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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