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भारत का कृषि निर्यात 'मध्यम अवधि' में दोगुना किया जा सकता है: आईटीसी अध्यक्ष

By भाषा | Updated: September 30, 2021 22:39 IST

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नयी दिल्ली, 30 सितंबर आईटीसी के अध्यक्ष संजीव पुरी ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत के वैश्विक कृषि निर्यात को मध्यम अवधि में दोगुना करने और क्षेत्र की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की बेहतर संभावनायें हैं। देश का वैश्विक कृषि निर्यात में केवल 2.5 प्रतिशत हिस्सा है।

उद्योग निकाय पीएचडीसीसीआई द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को आभासी रूप से संबोधित करते हुए पुरी ने कहा कि कृषि मूल्य श्रृंखला पर ध्यान देने की तत्काल सख्त आवश्यकता है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में आय की गुणवत्ता में सुधार करने और देश में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की शुरुआत करने में मदद करेगी।

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में ‘‘तत्काल और वास्तविक परिवर्तन’’ करने की आवश्यकता है क्योंकि इसे वैश्विक जलवायु परिवर्तन से भी सबसे अधिक खतरा है।

पुरी ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिस ओर हमें गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।’’

आईटीसी के अध्यक्ष ने कहा, ‘‘वर्तमान में, हमारी उत्पादकता और गुणवत्ता की सीमाओं, स्थिरता एवं मूल्य संवर्धन की सीमाओं के कारण, भारत वैश्विक निर्यात में केवल ढाई प्रतिशत का हिस्सा रखता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मध्यम अवधि में इसे दोगुना करने का अवसर बहुत सुस्पष्ट है, और इसे दोगुना करना, वास्तव में सुधार करने तथा इस क्षेत्र के आर्थिक पहलू में सुधार लाने का अवसर प्रदान करता है।’’

उन्होंने कहा कि इसके लिए बहुत सारे नीतिगत सुधारों को करने की आवश्यकता है।

पुरी ने कहा कि कृषि अवसंरचना, निधियों, विनियमों, विपणन संबंधों आदि जैसे मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के स्तर पर पहले ही कुछ सुधार शुरू किए जा चुके हैं।

भारत में कृषि मूल्य श्रृंखलाओं पर कार्यबल की निर्भरता भी बहुत अधिक है। लगभग दो-तिहाई ग्रामीण आजीविका इस क्षेत्र से आती है और भारत का लगभग आधा कार्यबल इस क्षेत्र में लगा हुआ है।

उन्होंने कहा कि इतने बड़े कार्यबल के कृषि में लगे होने के बावजूद, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसकी हिस्सेदारी 20 प्रतिशत से कम है, जो उत्पादकता और कम आय की स्थानिक समस्याओं को दर्शाती है। इसलिए, यहाँ आय की गुणवत्ता वास्तव में एक गंभीर चिंता का विषय है।’’

उनके अनुसार, कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जिसे जलवायु परिवर्तन से ज्यादा खतरा है।

उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन के बाद गेहूं की पैदावार में 50 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। इसके अलावा, भारत पहले से ही पानी की कमी वाला देश है, जिसमें देश का 54 प्रतिशत हिस्सा आता है।

पुरी के अनुसार, कृषि एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें ‘अपार संभावनायें’ हैं।

वर्ष 2050 तक, दुनिया की आबादी नौ अरब की होने जा रही है और वर्ष 2027 तक, भारत 1.5 अरब लोगों के साथ सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने जा रहा है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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