चेक बाउंस मामलों के तीव्र निस्तारण के लिए न्यायालय ने जारी किए निर्देश

By भाषा | Updated: April 16, 2021 22:39 IST2021-04-16T22:39:26+5:302021-04-16T22:39:26+5:30

Court issued instructions for speedy disposal of check bounce cases | चेक बाउंस मामलों के तीव्र निस्तारण के लिए न्यायालय ने जारी किए निर्देश

चेक बाउंस मामलों के तीव्र निस्तारण के लिए न्यायालय ने जारी किए निर्देश

नयी दिल्ली, 16 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को चेक बाउंस के मामलों को जल्दी से निपटाए जाने की व्यवस्था के लिए कई निर्देश जारी किए और केंद्र से कहा कि वह कानून में संशोधन कर के ऐसे प्रावधान करे कि यदि किसी एक व्यक्ति के विरुद्ध एक साल में एक से अधिक मामले दर्ज किए गए हो तो ऐसे मामलों की सुनवाई एक साथ की जा सके।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल मार्च में चेक बाउंस के लंबित मामलों की भारी संख्या का संज्ञान लिया था। 31 दिसंबर, 2019 को देश में ऐसे लंबित कुल 2.31 करोड़ आपराधिक मामलों में चेक बाउंस से जुड़े मामलों की संख्या 35.16 लाख थी।

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पांच न्यायधीशों की संविधान पीठ ने एक साझा आदेश में ‘आपराधिक अदालतों पर बोझ कम करने’ के लिए कदम उठाए। पीठ ने उच्च न्यायालयों से कहा कि वे चेक का अनादर होने के मामलों की सुनवायी करने वाले मजिस्ट्रेटों को ‘प्रक्रिया विषयक निर्देश’ जारी करें और कहें कि वे परक्राम्य लिखत कानून की धारा 138 के तहत शिकायतों को फौरी सुनवाई के स्थान पर समन जारी करके सुनवाई करने के अपने निर्णय का कारण अदालत के रिकार्ड पर दर्ज करें।

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत सरसरी सुनवायी में अभियुक्त अपना दोष नहीं मानता है, तो मजिस्ट्रेट सबूत दर्ज करके तुरंत निर्णय सुना सकता है। लेकिन सीआरपीसी के तहत समन जारी कर सुनवायी करने की प्रक्रिया में न्यायिक अधिकारी को कार्यवाही पूरी करनी और सबूत रिकॉर्ड करना होगा।

पीठ ने कहा, ‘ हम सिफारिश करते हैं कि परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 219 में विहित प्रतिबंधों के बावजूद एक व्यक्ति द्वारा 12 महीने की अवधि के भीतर अधिनियम की धारा 138 के तहत किए गए एक से अधिक अपराधों की सुनवाई एक साथ किए जाने के प्रावधान हेतु अधिनियम में उपयुक्त संशोधन किए जाएं।’

पीठ ने इस मुद्दे पर अदालत के मित्र अधिवक्ता की इसी तरह की सिफारिश का उल्लेख किया।

न्यायालय ने इस इस सुझाव पर ध्यान दिया कि चेक बाउंस संबंधी कानून में केंद्र द्वारा उपयुक्त संशोधन किया जा सकता है ताकि जहां एक ही तरह के उद्येश्य के लिए चेक जारी किए गए हो वहां ‘कार्यवाही की बहुलता से बचा जा सके।’

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बोबडे ने पीठ की ओर से 27 पन्नों का आदेश लिखते हुए कहा, अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायतें मिलने पर जांच कराई जाएगी ताकि सुनवायी अदालत के न्यायिक अधिकार की भौगोलिक सीमा से बाहर रहने वाले आरोपी के खिलाफ इस तरह की एक साथ कार्रवाई का पर्याप्त आधार तय किया जा सके।

आदेश में कहा गया है कि अभियुक्त को बुलाने से पहले जांच कराने के लिए शिकायतकर्ता की ओर से गवाहों के साक्ष्य को शपथ पत्र पर लेने की अनुमति दी जाएगी और ‘उपयुक्त मामलों में मजिस्ट्रेट गवाहों की गवाही दर्ज करने पर जोर दिए बिना जांच को दस्तावेजों की छान-बीन तक सीमित रख सकता है।’

न्यायालय ने सुनवायी अदालतों के लिए प्रक्रिया संबंधी ऐसे निर्देश जारी करने का निर्देश दिया है जिसके तहत एक व्यक्ति के खिलाफ धारा 138 के तहत किसी एक शिकायत की सुनवायी के सिलसिले में जारी सम्मन को उस अदालत के समक्ष उसके खिलाफ ऐसे सभी मामलों के लिए जारी सम्मन माना जाए।

पीठ ने कहा है कि उसके शुक्रवार के निर्णय में चेक बाउंस से जुड़े जो मुद्दे बाकी रह गए गए हैं उन पर मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरसी चवान की अध्यक्षता वाली समिति विचार करेगी।

न्यायालय ने इस समिति का गठन 10 मार्च को किया था।

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Web Title: Court issued instructions for speedy disposal of check bounce cases

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