कोविड की तबाही के बाद बजट तय करेगा अर्थव्यवस्था के सुधरने की गति

By भाषा | Updated: January 1, 2021 18:48 IST2021-01-01T18:48:11+5:302021-01-01T18:48:11+5:30

After the devastation of Kovid, the budget will decide the pace of improvement of the economy | कोविड की तबाही के बाद बजट तय करेगा अर्थव्यवस्था के सुधरने की गति

कोविड की तबाही के बाद बजट तय करेगा अर्थव्यवस्था के सुधरने की गति

नयी दिल्ली, एक जनवरी अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ-साथ कारोबार के संचालन में वृद्धि, व्यवधान में कमी तथा टीका आने से भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार की उम्मीद है। हालांकि, अर्थव्यवस्था के आगे की गति बहुत हद तक 2021-22 के बजट पर भी निर्भर करेगी।

भारत 2019 में ब्रिटेन को पीछे छोड़ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया, लेकिन महामारी की तबाही तथा लॉकडाउन के चलते व्यवसाय के ठप्प हो जाने, उपभोग कमजोर पड़ने, निवेश कम हो जाने, रोजगार के नुकसान आदि ने अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया। कुल मिलाकर असर ऐसा रहा कि 2020 में भारत फिसलकर छठे स्थान पर आ गया।

इस साल अप्रैल से नये वित्त वर्ष की शुरुआत होगी। एक महीने बाद नये वित्त वर्ष के लिये वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी। ऐसे में बजट का ध्यान मंदी के झोंकों से अर्थव्यवस्था को उबारने की होगी।

विश्लेषकों का मानना है कि सरकार की व्यय योजनाओं विशेषकर बुनियादी संरचनाओं तथा सामाजिक क्षेत्रों में और महामारी व लॉकडाउन से प्रभावित समूहों को राहत से सुधार की गति तय होगी।

भारतीय अर्थव्यवस्था की गति कोरोना वायरस महामारी के आने के पहले से ही सुस्त होने लगी थी। वर्ष 2019 में आर्थिक वृद्धि की गति 10 साल से अधिक के निचले स्तर 4.2 प्रतिशत पर आ गयी थी, जो इससे एक साल पहले 6.1 प्रतिशत थी।

महामारी ने लगभग 1.5 लाख लोगों की मौत के साथ भारत के लिये एक मानवीय और आर्थिक तबाही ला दी। हालांकि, यूरोप और अमेरिका की तुलना में प्रति लाख मौतें काफी कम हैं, लेकिन आर्थिक प्रभाव अधिक गंभीर था।

अप्रैल-जून में जीडीपी अपने 2019 के स्तर से 23.9 प्रतिशत कम थी। यह बताता है कि वैश्विक मांग के गायब होने और सख्त राष्ट्रीय लॉकडाउन की श्रृंखला के साथ घरेलू मांग के पतन से देश की आर्थिक गतिविधियों के लगभग एक चौथाई का सफाया हो गया था। अगली तिमाही में जीडीपी में 7.5 प्रतिशत की गिरावट ने एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को एक अभूतपूर्व मंदी में धकेल दिया।

बाद में धीरे-धीरे पाबंदियों को हटा दिया गया, जिसने अर्थव्यवस्था के कई हिस्सों को वापस पटरी पर आने में सक्षम किया। हालांकि, उत्पादन महामारी से पहले के स्तर से नीचे ही रहा।

इस बीच जब भरपूर फसल उत्पादन के साथ कृषि क्षेत्र भारत की आर्थिक में सुधार की चालक रही है, कोविड-19 संकट के जवाब में सरकार की प्रोत्साहन लागत अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक संयमित रही है।

सीतारमण ने कुल प्रोत्साहन पैकेज 29.87 लाख करोड़ रुपये या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 15 प्रतिशत घोषित किया। यह चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार के कुल बजट खर्च के बराबर राशि है, लेकिन इसमें वास्तविक राजकोषीय लागत सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 1.3 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है, जिसमें प्रोत्साहन कार्यक्रम के लिए 0.7 प्रतिशत शामिल है और यह व्यय भी पांच साल में होना है।

अधिकांश विश्लेषकों ने इस खर्च को अपर्याप्त माना।

ऐसे में अर्थव्यवस्था आने वाले समय में क्या गति प्राप्त करेगी, यह बहुत हद तक आगामी बजट पर निर्भर करने वाला है। सरकार की राजस्व आय कम होने के कारण यह स्थिति रही है। लॉकडाउन के कारण सरकारा राज्यों की जीएसटी नुकसान की भरपाई के लिये भी संसाधन नहीं जुटा पाई, जिसे अंतत: कर्ज लेकर पूरा करना पड़ा है।

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Web Title: After the devastation of Kovid, the budget will decide the pace of improvement of the economy

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