पुण्यतिथि विशेषांक: जब मीना कुमारी के पिता ने उन्हें अनाथालय की सीढ़ियों पर छोड़ दिया था, पढ़िए उनका फिल्मी सफर

By मेघना वर्मा | Published: March 31, 2019 07:37 AM2019-03-31T07:37:34+5:302019-03-31T07:37:34+5:30

सात साल की उम्र से बेबी मीना के नाम से पहली बार फ़िल्म मीना कुमारी ने फरज़द-ए-हिंद में दिखाई दीं। इसके बाद लाल हवेली, अन्‍नपूर्णा, सनम, तमाशा आदि कई फिल्में कीं।

Meena Kumari Death Anniversary special kanow more about meena kumari filmy career | पुण्यतिथि विशेषांक: जब मीना कुमारी के पिता ने उन्हें अनाथालय की सीढ़ियों पर छोड़ दिया था, पढ़िए उनका फिल्मी सफर

पाकीजा वो फिल्म थी जिसने ना सिर्फ मीना कुमारी की जिंदगी ही पलट दी बल्कि ये उनकी आखिरी फिल्म भी साबित हुई।

Highlightsबेबी मीना के नाम से पहली बार फ़िल्म मीना कुमारी ने फरज़द-ए-हिंद में दिखाई दीं।‘बैजू बावरा’ ने मीना कुमारी को बेस्‍ट एक्‍ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिलवाया।

मीना कुमारी अपने जमाने की ना सिर्फ बेहतरीन एक्ट्रेस थीं बल्कि एक शानदार महिला भी थीं। कहते हैं कि स्क्रीन पर जो गम की तस्वीर वो स्क्रीन पर बना देती थीं वो किसी और के बस की बात भी नहीं थी। ये रौब और ये रुत्बा मीना कुमारी का ही था जो अपने फैन्स का दिल छू जाती थीं। आज मीना कुमारी की 47वें जन्मदिन पर बात उसी शख्सियत की जिन्हें कभी उनके पिता ने अनाथ आश्रम के बाहर छोड़ दिया था और उनपर चीटियां तक लग गई थीं। 

कहते हैं हर कलाकार की एक्टिंग के पीछे उनकी निजी जिंदगी के कुछ तार जरूर जुड़े होते हैं। मीना कुमारी भी फिल्मी पर्दे पर जिस गम के अफसाने को बुनती थी उस गम का नाता उनकी निजी जिंदगी से जरूर जुड़ा था। बताया जाता है कि छोटे-मोटे प्लेज में हारमोनियम बजाने वाले मास्टर अली बक्श(मीना कुमारी के पिता) बड़ी बेसब्री से अपने होने वाले बच्चे के पैदा होने का इंतजार कर रहे थे। मगर गरीबी और मुफलिसी के उस दौर में उन्हें एक अगस्त 1933 में एक लड़की पैदा हुई।

टॉकीज के जमाने में जब छोटे-मोटे म्यूजशियन को बेरोजगारी का सामना करना पड़ता था ऐसे में अली बक्श की अपनी पैदा हुई बेटी का खर्च सोचकर परेशान हो उठा। गरीबी में वो बच्ची को ठीक परवरिश नहीं दे पाएगा। यही सोचकर उसने दादर के एक मुस्लीम यतीमखाने की सीढ़ी पर अपनी दो दिन की बेटी को छोड़ दिया। छोड़ कर आगे बढ़ते हुए जब उस बच्ची की रोने की आवाज अली बक्श के कानों में पड़ी तो पिता का प्यार फूट पड़ा। वाफिस सीढ़ियों पर आकर देखा तो उस बच्ची के शरीर पर छोटे-छोटे लाल चीटिंया लग गई थी। 

बरहाल अली ने उस बच्ची को उठाया और उसके बदन से चींटियां हटाईं। समय के साथ भले ही उस बच्ची के शरीर से चींटियों के वो दाग निकल गए हों। मगर उसके दिल पर ये दाग जिंदगी भर बना रहा। यही बच्ची आगे चलकर फिल्मी दुनिया का बड़ा नाम बनी। इस बच्ची का नाम था मीना कुमारी। 

सात साल की उम्र से बेबी मीना के नाम से पहली बार फ़िल्म मीना कुमारी ने फरज़द-ए-हिंद में दिखाई दीं। इसके बाद लाल हवेली, अन्‍नपूर्णा, सनम, तमाशा आदि कई फिल्में कीं। लेकिन उन्‍हें स्‍टार बनाया 1952 में आई फ़िल्म ‘बैजू बावरा’ ने। इस फ़िल्म के बाद वह लगातार सफलता की सीढियां चढ़ती गईं। ‘बैजू बावरा’ ने मीना कुमारी को बेस्‍ट एक्‍ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिलवाया।

वह यह अवॉर्ड पाने वाली पहली अभिनेत्री थीं। पाकीजा वो फिल्म थी जिसने ना सिर्फ मीना कुमारी की जिंदगी ही पलट दी बल्कि ये उनकी आखिरी फिल्म भी साबित हुई। तमाम दिलों को निराश कर मीना कुमारी 31 मार्च 1972 में दुनिया को अलविदा कह गईं।

Web Title: Meena Kumari Death Anniversary special kanow more about meena kumari filmy career

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