अपहरण वेब सीरिज रिव्यू: सस्पेंस का परफेक्ट डोज, हर सिचुएशन का जबरदस्त डायरेक्शन
By मेघना वर्मा | Published: December 17, 2018 03:14 PM2018-12-17T15:14:27+5:302018-12-18T10:42:19+5:30
Apharan Web series में हर दूसरी लाइन में गालियां दी गई हैं जो फालतू की सी हैं माने उसके बिना भी काम चलाया जा सकता था।
जरा सोचिए कि आपने कोई चोरी की हो और चोर को पकड़ने का जिम्मा आपको सौंप दिया जाए तो क्या कीजिएगा बस कुछ ऐसी ही कहानी है एएलटी बालाजी की नई वेब सीरिज अपहरण की। अब चूंकी बालाजी टेलीफिल्मस की सीरिज है तो उसमें ड्रामा भी है गाली भी, रोमांस भी है और ढेर सारा सस्पेंस भी।
तो कहानी है एक इमानदार पुलिस ऑफिसर रूद्र श्रीवास्तव यानी अरूणोदय सिंह की। जो अपहरण केस सॉल्व करने के माहिर माने जाते हैं मगर इसी ईमानदारी और जिंदगी की मारामारी ने उन्हें जेल की हवा भी खिला दी है। जेल से निकलने के बाद ना तो उसके पास नौकरी रहती है ना कोई उम्मीद और बस तभी इंट्री होती है मधु त्यागी यानी माही गिल की।
अब सिचुएशन कुछ यूं पलटती है कि किंडनैपिंग केस सॉल्व करने में माहिर रूद्र को शहर के सबसे बड़े बिजनेस मैन गोंविद त्यागी की लड़की को अगवा करना पड़ता है। सिंपल सा प्लान है लड़की जोकि खुद अगवा होना चाहती है उसे उठाना है और गोंविद त्यागी से दो करोड़ रूपये लेने है और बस हो गया काम। अब हिंदी सीरिज है तो ट्वीस्ट ना हो ऐसा कैसे।
जिस मधु त्यागी के कहने पर रूद्र उसकी ही लड़की अनुशा को किंडनैप करता है वो लड़की अनुशा खुद को फांसी पर लटका लेती है वहीं रूद्र को इस केस का इंचार्ज बना दिया जाता है। जिसे किंडनैपर यानी खुद की ही तलाश करनी होती है। बस यहीं से शुरू होता है सिलसिला और सस्पेंस। बहुत सारे टर्न और बैकग्राउंड के साथ ये सीरिज आगे बढ़ती है और क्या-क्या मोड़ लाती है इसके लिए तो आपको देखनी होगी ये सीरिज।
नीमिशा पांडेय का कॉन्सेप्ट हालांकि पुराना है मगर सिचुएशन दर सिचुएशन ये सीरिज आपको अपनी ओर कनेक्ट जरूर करेगी। शुरूआत के तीन से चार एपिसोड आपको बोर कर सकते हैं पर ट्रस्ट मी पांचवे एपिसोड के बाद सस्पेंस को देखने का अपना ही मजा है।
एक बात और , ये आजकल हर सीरिज में गाली-गलौज डालकर लोग उसे हिट क्यों करवाना चाहते हैं। ये डायेक्टर्स या राइटर्स क्यों नहीं समझते कि गाली देना आम है मगर हर सिचुएशन में गाली देना नॉट राइट ना। इस सीरिज में हर दूसरी लाइन में गालियां दी गई हैं जो फालतू की सी हैं माने उसके बिना भी काम चलाया जा सकता था। वहीं कुछ कैरेक्टर्स भी फालतू के ही लगते हैं। जिसकी भी शायद जरूरत नहीं थी।
मुझे इस सीरिज में जो सबसे अच्छा लगा वो है अनिरूद्ध का नरेशन। सीरिज के परफेक्ट सीचुएशन पर परफेक्ट बॉलीवुड सॉग्स को फिलअप किया गया है। सबसे खास बात ये है कि 12 एपिसोड की इस सीरिज के हर एपिसोड को अलग-अलग नाम दिया गया है और सभी नाम भी बॉलीवुड की फेमस गानों से ही लिया गया है।
डायरेक्शन की बात करें तो बलजीत सिंह चड्डा स्टोरी को स्क्रीन पर दिखाने में कामयाब हुए हैं। ये डायरेक्शन का ही कमाल है कि एपिसोड्स में आपके अंदर का एसीपी प्रद्युमन जाग जाता है। मगर मैं इस सीरीज के क्लामैक्स से खुश नहीं हूं। 10 एपिसोड तक पेट में बटरफ्लाई दौड़ने के बाद लगता है भक्ककककक यार ये है क्लामैक्स। पर क्लाइमैक्स तक का सफर काफी रोमांचक है।
अरूणोदय सिंह, माही गिल समेत सभी कलाकारों ने बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है। ओवर ऑल सीरिज को देखा जा सकता है मगर इसके लिए पूरी रात जागने की जरूरत नहीं हैं। मेट्रो में घर पर जब भी समय मिल जाए एक-एक एपिसोड को आराम से खत्म किया जा सकता है।