ब्लॉगः अब 3 दिन के अंदर चुनना होगा पाकिस्तान को कार्यवाहक प्रधानमंत्री, क्या पाक में कभी लोकतंत्र पनपेगा ?

By शोभना जैन | Published: August 12, 2023 10:17 AM2023-08-12T10:17:08+5:302023-08-12T10:23:51+5:30

कुल मिला कर तो फिलहाल यही कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में फिलहाल आम चुनाव के लिए माहौल तैयार किया जा रहा है, लेकिन पाकिस्तान की उलझती राजनीति और लोकतंत्र के प्रति आस्था को लेकर जो स्थितियां रह चुकी है, उसके चलते कल वहां क्या होगा, क्या वहां चुनाव हो पाएंगे? फिलहाल पक्के तौर पर इस पर टिप्पणी करना मुश्किल ही है।

Will democracy ever flourish in Pakistan | ब्लॉगः अब 3 दिन के अंदर चुनना होगा पाकिस्तान को कार्यवाहक प्रधानमंत्री, क्या पाक में कभी लोकतंत्र पनपेगा ?

ब्लॉगः अब 3 दिन के अंदर चुनना होगा पाकिस्तान को कार्यवाहक प्रधानमंत्री, क्या पाक में कभी लोकतंत्र पनपेगा ?

भयावह आर्थिक संकट और राजनीतिक त्रासदी में पेंच दर पेंच उलझते जा रहे पाकिस्तान में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सिफारिश पर कल देर रात राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने आखिरकार संसद औपचारिक रूप से भंग कर दी। इसके साथ ही अब तीन दिन के अंदर देश को कार्यवाहक प्रधानमंत्री चुनना होगा जो इस वर्ष के अंत तक संभव चुनाव तक गद्दी पर रहेंगे, लेकिन फैसले के पीछे उलझे समीकरणों की बात करें तो जिस तरह यह नेशनल असेंबली 12 अगस्त के अपने निर्धारित कार्यकाल से तीन दिन पहले भंग की गई है, उसके चलते देश के संविधान के अनुसार अब देश में चुनाव कराने के लिए तीन माह की बजाय चार माह का समय मिल गया है। हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान इन चुनाव में भाग लेने में असमर्थ होंगे। अप्रैल 2022 में इमरान खान को पद से हटाए जाने के बाद से उनके खिलाफ दायर कई मामलों में से एक में भ्रष्टाचार का दोषी ठहराए जाने पर वह जेल में बंद हैं, उन पर न्यायालय पांच वर्ष तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा चुका है।

कुल मिला कर तो फिलहाल यही कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में फिलहाल आम चुनाव के लिए माहौल तैयार किया जा रहा है, लेकिन पाकिस्तान की उलझती राजनीति और लोकतंत्र के प्रति आस्था को लेकर जो स्थितियां रह चुकी है, उसके चलते कल वहां क्या होगा, क्या वहां चुनाव हो पाएंगे? फिलहाल पक्के तौर पर इस पर टिप्पणी करना मुश्किल ही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इमरान खान की लोकप्रियता और उनका निष्कासन, दोनों काफी हद तक सेना से प्रभावित थे, जिनके साथ उनका नियमित रूप से टकराव होता रहता था। पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान ने सेना के खिलाफ असहमति का अभियान चलाया और आरोप लगाया कि सेना ने राजनीति में हस्तक्षेप किया है।

पाकिस्तान में लोकतंत्र की क्या स्थिति रही है, यह दुनिया के सामने रहा है, लेकिन एक बार फिर किस तरह से लोकतंत्र की वहां हत्या हुई पिछले पांच वर्षों में सभी ने देखा। घोर अव्यवस्था की पोषक के लेबल वाली इमरान सरकार के संसद में विश्वासमत हारने के बाद अप्रैल 2022 में शरीफ सत्ता में आए लेकिन हश्र वो ही पुराना रहा, पीडीएम नीत शरीफ सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति अल्वी ने संसद भंग कर दी 15 माह तक उनकी सरकार और विपक्ष के साथ-साथ सेना के साथ चली तगड़ी रस्साकशी के बाद आखिरकार देश भर में चल रही राजनैतिक अस्थिरता और घोर आर्थिक संकट के बीच कल आधी रात संसद भंग कर दी गई।

देश की आर्थिक स्थिति का आलम यह है कि बुरी तरह खस्ताहाली की स्थिति में अंतर राष्ट्रीय मुद्रा कोष के 3 अरब डॉलर के आर्थिक सहायता के बावजूद कोई उम्म्मीद नजर नहीं आ रही है। ऐसे आलम में आम चुनाव अगर होते हैं तो उसके बाद क्या होगा निर्वाचित सरकार अगर बन भी जाती है तो उसका रास्ता क्या होगा ? सवाल घने और गहरे हैं। वैसे एक पक्ष का मानना है कि अगर पीएलएमन को बहुमत मिलता है तो नवाज शरीफ एक बार फिर पाकिस्तान के वजीर ए आजम बन सकते हैं लेकिन शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। फिलहाल वे निर्वासन बतौर लंदन में रह रहे हैं।

 पाकिस्तान में लड़खड़ाते लोकतंत्र को पिछले पांच वर्षों में और भी गहरा आघात पहुंचा है संविधान कमजोर हुआ है, बेमायने होता जा रहा है। वैसे तो पाकिस्तान में लोकतंत्र कभी पनपा ही नही है, लेकिन हर दौर में निरंतर बढ़ती गिरावट की वही सियासत और खास तौर पर पिछले कुछ वर्षों में सेना, राजनैतिक हुक्मरानों के बीच भीषण टकराहट और विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच एक दूसरे को खत्म करने की सियासत में लोकतंत्र और लहूलुहान और भी होता जा रहा है निर्वाचित सरकारें दिखावटी साबित होती जा रही है, संसद विधायी कामकाज की बजाय अखाड़ा बनती जा रही है नाउम्मीद के आलम में जनता एक तरफ आर्थिक तबाही के दौर में एक जून की रोटी के लिए सड़कों पर है। बहरहाल, आम चुनावों का ऐलान तो हो चुका लेकिन क्या चुनाव होंगे और कितने निष्पक्ष होंगे और सबसे अहम सवाल कि अगर निर्वाचित सरकार बनती भी है तो वो कितनी स्थाई होंगी। इन्हीं तमाम सवालों के समाधान को लेकर अंतहीन प्रतीक्षा कर रहे लोकतंत्र का रूदन जारी है।

Web Title: Will democracy ever flourish in Pakistan

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