विकास मिश्र का ब्लॉगः हांगकांग को निगलने की जल्दबाजी में है चीन
By विकास मिश्रा | Updated: September 28, 2019 05:32 IST2019-09-28T05:32:38+5:302019-09-28T05:32:38+5:30
चीन जल्दी से जल्दी हांगकांग को निगल जाना चाहता है. चीन के वित्तीय बाजार का बड़ा हिस्सा वहां है. यदि वहां ऐसी ही स्थिति बनी रही तो इससे चीन को बड़ा नुकसान होगा.

विकास मिश्र का ब्लॉगः हांगकांग को निगलने की जल्दबाजी में है चीन
चीन यदि कोई हड़बड़ी न करे तो भी 2047 में हांगकांग पूरी तरह उसकी गिरफ्त में होगा ही लेकिन चीन इतना इंतजार करना नहीं चाहता. वह उस समझौते की बुनियाद को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है जो ब्रिटेन से हस्तांतरण के वक्त हांगकांग को हासिल हुआ था. इसी का नतीजा है कि हांगकांग में चीन का भीषण प्रतिरोध हो रहा है. इस विरोध को कुचलने की कोशिशें तेज हो चुकी हैं और आशंका व्यक्त की जा रही है कि चीनी सेना कभी भी हांगकांग में घुस सकती है.
चलिए, सबसे पहले यह समझते हैं कि यह पूरा मामला है क्या? प्रथम अफीम युद्ध में ब्रिटेन ने चीन के छिंग राजवंश को हराकर 1842 में हांगकांग द्वीप पर कब्जा कर लिया था. 1840 से 1842 तक ब्रिटेन और चीन के छिंग राजवंश के बीच चले इस युद्ध को अफीम युद्ध इसलिए कहते हैं क्योंकि इसकी जड़ में अफीम विवाद था. ब्रिटेन ने उस दौर में बड़े पैमाने पर चीन को अफीम का निर्यात किया था जिससे चीनी लोगों का स्वास्थ्य खराब होने लगा था और राजवंश का खजाना भी खाली हो रहा था. विवाद बढ़ा तो ब्रिटेन ने चीन पर आक्रमण कर दिया.
इस युद्ध के बाद हांगकांग ब्रिटेन का हिस्सा हो गया. ब्रिटेन ने 1898 में चीन से कुछ और इलाका इस शर्त पर लीज के रूप में लिया कि वह इसे 99 साल बाद चीन को सौंप देगा. इसी समझौते के तहत 1982 में चीन को हांगकांग वापस मिलने की प्रक्रिया शुरू हुई. 1997 में हांगकांग चीन का हो गया लेकिन इस शर्त के साथ कि हांगकांग की आजादी कायम रहेगी. चीन एक देश और दो शासन प्रणाली पर सहमत हो गया.
हांगकांग के लोग चीन में नहीं जाना चाहते थे क्योंकि ब्रिटेन के शासन में रहते हुए हांगकांग ने बड़ी तरक्की की और दुनिया के बड़े व्यावसायिक केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाई. उसकी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था चीन से बिल्कुल अलग तरह से विकसित हुई. खैर, हांगकांग की किसी ने नहीं सुनी और वह चीन के पास चला गया. कुछ दिन तो सबकुछ ठीक ठाक रहा लेकिन उसके बाद चीन ने नई चाल चली. वह चाल थी हांगकांग के व्यापारियों और उद्योगपतियों को लुभाने की.
चीन के व्यापारियों ने हांगकांग में खूब इनवेस्ट करना शुरू किया और चीनी पर्यटकों ने इतनी खरीददारी शुरू कर दी कि हांगकांग के व्यापारी चीन के समर्थक होने लगे, लेकिन वहां हर कोई आजादी की कीमत लगाने को तैयार नहीं था. इधर चीन ने हांगकांग की स्थानीय शासन व्यवस्था को प्रभावित करना शुरू किया. 2014 में लोग सड़कों पर उतरे. हांगकांग की सरकार ने उस विरोध को आंसूगैस से दबाने की कोशिश की. आंसूगैस से बचने के लिए लोग छाता लेकर आंदोलन में शामिल होने लगे. इसे दुनिया ने अंब्रेला मूवमेंट के रूप में जाना. किसी तरह यह आंदोलन समाप्त हुआ.
इस साल मार्च में फिर से लोग आंदोलित हो गए जब हांगकांग के प्रशासन ने संसद में एक बिल पेश किया जिसमें यह प्रावधान रखा गया कि किसी अपराधी को हांगकांग से चीन प्रत्यर्पित किया जा सकता है. हांगकांग के लोगों को स्पष्ट लगा कि इसका फायदा आंदोलन और किसी भी तरह के विरोध को कुचलने के लिए चीन कर सकता है. तब से लेकर यह आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है. ब्रिटेन ने हालांकि चिंता व्यक्त की है और हांगकांग प्रशासन ने बिल पर आगे की कार्रवाई रोक दी है लेकिन आंदोलनकारी चाहते हैं कि बिल को वापस लिया जाए. आंदोलन किस हद तक उग्र हो चुका है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां की संसद में भी प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ की.
हांगकांग प्रशासन लगातार कह रहा है कि केवल गंभीर आपराधिक मामलों में ही आरोपियों को चीन भेजा जाएगा. इसके लिए जज की मंजूरी जरूरी होगी लेकिन लोगों का कहना है कि यह सीधे तौर पर हांगकांग की स्वायत्तता पर हमला है. यह बिल यदि पास हुआ तो चीन अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए एक औजार की तरह इसका इस्तेमाल करेगा. लोग इसलिए भी क्रोधित हैं कि हांगकांग की लेजिस्लेटिव काउंसिल में स्वतंत्र लोगों के लिए जो स्थान आरक्षित है उस पर कम्युनिस्टों को बिठा दिया गया है. यदि प्रत्यर्पण बिल सदन में आता है तो निश्चय ही पास हो जाएगा.
बहरहाल यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि इस विरोध और आंदोलन को चीन ने खुद ही निमंत्रण दिया है. चीन यदि कुछ नहीं करता तो भी 2047 में हस्तांतरण के पचास साल पूरे हो जाते, उसके बाद चीन के एक प्रांत के रूप में हांगकांग परिवर्तित हो जाता क्योंकि पचास साल के लिए स्वायत्तता देने पर ही चीन ने हामी भरी थी. दिक्कत यह है कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार इतना इंतजार करने के मूड में नहीं है.
चीन जल्दी से जल्दी हांगकांग को निगल जाना चाहता है. चीन के वित्तीय बाजार का बड़ा हिस्सा वहां है. यदि वहां ऐसी ही स्थिति बनी रही तो इससे चीन को बड़ा नुकसान होगा. तो सवाल है कि यह आंदोलन कब तक चलेगा? क्या चीन थ्यानआनमन चौक पर की गई कार्रवाई की तरह इसे दबा पाने में सफल होगा? ऐसा लगता नहीं है क्योंकि दुनिया काफी बदल चुकी है. युवाओं की नई पीढ़ी आजादी के लिए किसी भी हद तक जाने की क्षमता रखती है.