अफगानिस्तान में आधी आबादी का संघर्ष, काबुल में इंटरनेट बैन
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 11, 2021 11:36 AM2021-09-11T11:36:33+5:302021-09-11T11:42:29+5:30
निहत्थी महिलाओं से हथियारबंद तालिबानी भी डर गए हैं जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महिलाओं के विरोध को दबाने के लिए काबुल में इंटरनेट सर्विस बंद कर दी गई है । पत्रकारों को भी बुरी तरह से पीटा गया ।
अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के खिलाफ महिलाओं का आंदोलन देश भर में फैलता जा रहा है. निहत्थी महिलाओं से हथियारबंद तालिबानी भी डर गए हैं जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महिलाओं के विरोध को दबाने के लिए काबुल में इंटरनेट सर्विस बंद कर दी गई है और महिलाओं के आंदोलन-प्रदर्शन को कवर करने वाले पत्रकारों को बुरी तरह से पीटा जा रहा है.
मकसद यही है कि इस आंदोलन की खबरें दुनिया तक न पहुंचने पाएं. अपने खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को दबाने की तालिबान हरसंभव कोशिश कर रहा है. इसी के तहत तालिबान के आंतरिक मंत्रलय द्वारा विरोध की शर्ते जारी की गई हैं, जिसके अनुसार प्रदर्शनकारियों को विरोध प्रदर्शन करने से पहले तालिबान न्याय मंत्रलय से पूर्व अनुमति लेनी होगी और यह भी बताना होगा कि आंदोलन के दौरान क्या-क्या नारे लगाए जाएंगे. महिलाओं को लेकर तालिबान की सोच कितनी घटिया है इसका पता तालिबान के इसी बयान से लग जाता है कि ‘महिलाएं मंत्री नहीं बन सकती हैं, उन्हें केवल बच्चे पैदा करना चाहिए.’ महिलाओं को वहां खेलकूद से रोक दिया गया है और शिक्षा को लेकर भी इतनी बंदिशें लगा दी गई हैं कि वे प्राथमिक शिक्षा भी बमुश्किल हासिल कर सकती हैं.
उच्च शिक्षा के बारे में तालिबान की मूर्खतापूर्ण सोच को उसकी सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री शेख अब्दुल बाकी हक्कानी के इस कथन से समझ सकते हैं, ‘पीएचडी या मास्टर डिग्री की कोई वैल्यू नहीं है. मुल्लाओं और सत्ता में शामिल तालिबानी नेताओं के पास भी ये डिग्रियां नहीं हैं. यहां तक कि उनके पास तो हाईस्कूल की डिग्री भी नहीं है, लेकिन फिर भी वे महान हैं.’ ऐसी सोच के साथ तालिबान देश को किस दिशा में ले जाएगा, यह सोचने से भी डर लगता है. निश्चित रूप से तालिबानी सोच रखने वालों की संख्या ज्यादा नहीं है, बहुमत उदारवादी लोगों का ही है लेकिन तालिबान ने हथियारों के बल पर अपने क्रूरतापूर्ण कृत्यों से उन्हें आतंकित कर रखा है. उन्हें सत्ता में रहने का जितना ज्यादा समय मिलेगा, वे उतना ही देश का बेड़ा गर्क करेंगे. इसलिए वहां की महिलाओं ने अपनी जान की परवाह न करते हुए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का फैसला किया है.
तथ्य यह है कि बिना भयभीत हुए अगर अहिंसक ढंग से शांतिपूर्ण प्रतिरोध किया जाए तो दमनकारी सत्ता को आखिरकार झुकना ही पड़ता है. महात्मा गांधी द्वारा अहिंसक आंदोलन के बल पर भारत को आजाद कराने की मिसाल दुनिया के सामने है. ऐसे समय में जबकि चीन, पाकिस्तान जैसे कुछ मुल्क अपने स्वार्थो के लिए तालिबान की हर तरह से मदद करने में लगे हुए हैं और अमेरिका के बीस साल के सैन्य हस्तक्षेप के हश्र को देखते हुए बाकी दुनिया असमंजस में है, अफगानिस्तान के आम लोगों के सामने यही विकल्प बचता है कि वे खुद निर्भय होकर तालिबान की दमनकारी सत्ता का विरोध करें, क्योंकि अभी विरोध नहीं करने पर हो सकता है उन्हें जिंदगी भर गुलामों जैसा जीवन जीना पड़े.