शोभना जैन का ब्लॉग: जेसिंडा आर्डर्न की अभूतपूर्व जीत के सबक

By शोभना जैन | Updated: October 23, 2020 14:57 IST2020-10-23T14:57:24+5:302020-10-23T14:57:24+5:30

न्यूजीलैंड में पिछले सप्ताहांत में हुए चुनाव में जेसिंडा आर्डर्न की पार्टी ने अभूतपूर्व बहुमत हासिल किया है. ये दिखाता है कि उन्हें व्यापक जनसमर्थन हासिल है. जनता ने उनके सुधार एजेंडे को पूरी तरह से लागू करने का मौका भी दिया है.

Shobhna Jain's blog: Lessons from Jacinda Ardern's phenomenal victory in New Zealand | शोभना जैन का ब्लॉग: जेसिंडा आर्डर्न की अभूतपूर्व जीत के सबक

न्यूजीलैंड में सत्ता पर जेसिंडा आर्डर्न की लगातार दूसरी बार वापसी (फाइल फोटो)

Highlightsजेसिंडा आर्डर्न में खराब स्थिति से भी सख्त और कुशल प्रशासनिक दक्षता से निपटने की क्षमता कोविड महामारी से उनकी सरकार द्वारा बेहद प्रभावी ढंग से निपटने पर भी मिला जनसमर्थन

न्यूजीलैंड के क्राइस्ट चर्च में पिछले वर्ष 15 मार्च को दो मस्जिदों पर हुआ बर्बर और नृशंस आतंकी हमला..लेकिन इस दर्दनाक आतंकी हमले के अगले ही दिन एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जिसने आतंकी हमले के पीड़ितों के दर्द पर मरहम सा लगा दिया. 

हमले के अगले दिन न्यूजीलैंड की युवा 40 वर्षीय प्रधानमंत्नी जेसिंडा आर्डर्न की एक मस्जिद में काले रंग के कपड़े पहने, सिर पर दुपट्टा ढके और आंसू भरी आंखों से मृतकों के परिजनों को गले से लगाकर ढाढस बंधाने वाली तस्वीर आज भी काफी लोगों की स्मृतियों में शायद फ्रीज हो गई है. 

यह देश की प्रधानमंत्री का मानवीय चेहरा था, जिसे शायद इसी वजह से ‘करुणामयी नेता’ भी कहा जाने लगा है, लेकिन उनकी खासियत यह रही कि हमदर्दी के साथ-साथ वे तत्कालीन स्थिति से सख्त और कुशल प्रशासनिक दक्षता से निपटीं. बंदूकों और हथियारों पर प्रतिबंध लगवाया और आतंकी को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने पर दृढ़ता से कहा, ‘आतंक कतई बर्दाश्त नहीं होगा, इसकी कोई जगह नहीं है, न तो ऐसे आतंकी के बारे में हम सोचना चाहते हैं, न ही उसकी शक्ल दोबारा देखना चाहते हैं’ यानी सहानुभूति और निर्णायक कार्रवाई दोनों साथ-साथ. 

न्यूजीलैंड में गत सप्ताहांत हुए चुनाव में इन्हीं जेसिंडा आर्डर्न की पार्टी ने चुनाव में अभूतपूर्व बहुमत हासिल कर दूसरी बार जनादेश प्राप्त किया.

इस जीत को कोविड महामारी से उनकी सरकार द्वारा बेहद प्रभावी ढंग से निपटने पर जनसमर्थन मिलने के साथ ही जनता द्वारा उनके सुधार एजेंडे को पूरी तरह से लागू करने का मौका देना भी माना जा रहा है. स्वयं आर्डर्न ने इन चुनाव को ‘कोविड चुनाव’ करार दिया था. 

निश्चित तौर पर यह जीत उनकी उस राजनीति की परिचायक है जिसमें कुशल प्रशासनिक दक्षता के साथ मानवीय नजरिये से सबको साथ लेकर चलने की बात है. साथ ही समावेशी आर्थिक नीतियों और लोकतांत्रिक मूल्यों को पूरी मजबूती देने की बात है और उनके पहले कार्यकाल के आकलन से कहा जा सकता है कि प्रशासन की यह कार्यशैली संभव है. शायद उनकी इसी कार्यशैली की वजह से कहा जाता है कि वे अपने को देश का एक ‘संवेदनशील नागरिक’ ही मानती हैं जो सरकार भी चला रहा है.

बहरहाल, उनकी इस अभूतपूर्व विजय के कई संदेश और सबक हैं. इस नई राजनीति पर अब विश्व की नजरे हैं, तो इस दूसरे कार्यकाल के लिए मिले अभूतपूर्व जनादेश ने बड़ी जिम्मेदारियां और चुनौतियां भी दी हैं. 

विकसित अर्थव्यवस्था वाला देश होने के बावजूद कोविड की वजह से अगर आंकड़ों के हवाले  से कहा जाए तो वहां  अर्थव्यवस्था में 12 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. आर्थिक व्यवस्था पर पड़े दुष्प्रभाव से निपटना भी एक प्रमुख फौरी चुनौती है.

गौरतलब है कि 50 लाख की आबादी वाले न्यूजीलैंड में कोविड से निपटने के लिए उठाए गए प्रभावी कदमों से वहां 2000 लोग ही इस बीमारी की चपेट में आए और 25 लोग ही मारे गए. जेसिंडा सरकार ने बेहद सख्ती से लॉकडाउन लागू किया जिससे बड़े पैमाने पर कोविड के शिकंजे को फैलने से रोकने में मदद मिली. 

इस साल के मार्च में जब न्यूजीलैंड में 100 लोगों में कोरोना की पुष्टि हुई तब प्रधानमंत्नी  ने जनता के सहयोग से आक्रामक नीति अपनाते हुए कठोर पाबंदियों वाला लॉकडाउन लागू कर दिया. उनकी यह योजना काम कर गई और देश में सामुदायिक स्तर पर संक्रमण नहीं हो पाया. 

हालांकि उसके बाद अगस्त महीने में न्यूजीलैंड के ऑकलैंड शहर में कोविड-19 के कुछ नए मामले सामने आए, पर एक बार फिर पीएम ने तत्काल प्रभाव से दूसरा लॉकडाउन भी लगा दिया, जिससे वायरस आगे नहीं बढ़ पाया.

ऑकलैंड में महामारी फैलने के कारण जेसिंडा आर्डर्न ने चुनाव को भी एक महीने के लिए टाल दिया था. यह चुनाव पहले 19 सितंबर को होने वाला था. जेसिंडा की लेबर पार्टी ने वर्ष 2017 में ग्रीन पार्टी और न्यूजीलैंड फस्र्ट के साथ मिल कर साझा सरकार बनाई थी. इस बार भी चुनावों से पूर्व यह तो लग रहा था कि उनकी लेबर पार्टी को बहुमत मिलेगा लेकिन पिछले 50 वर्षो में किसी भी नेता ने वहां इस तरह अभूतपूर्व बहुमत हासिल नहीं किया है.  

जेसिंडा की पार्टी को लगभग 50 प्रतिशत मत मिले जबकि प्रतिपक्षी नेशनल पार्टी को लगभग 26.8 प्रतिशत मत मिले. पिछली बार इस पार्टी के सदस्यों की संख्या 56 थी जो इस बार सिमट कर 35 ही रह गई है, जबकि जेसिंडा की लेबर पार्टी को 120 सदस्यों वाली संसद में 64 सीट मिली है. 

पिछले कई वर्षो से न्यूजीलैंड में सरकार बनाने के लिए विभिन्न दलों को गठबंधन करना पड़ता था, लेकिन इस बार जेसिंडा  की पार्टी अपने बूते सरकार बनाएगी. देखा जाए तो अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने आतंकी हमले, प्राकृतिक आपदाओं, कोविड जैसी तत्कालीन समस्याओं से प्रभावी ढंग से निपटने के साथ ही कल्याणकारी आर्थिक नीतियों, आय और संपदा फासले को कम करने के लिए उठाए गए आर्थिक कदमों के साथ सामाजिक क्षेत्र के लिए ज्यादा आवंटन दिए जाने, जलवायु परिवर्तन के साथ ही शिशु तथा मातृ कल्याण जैसे क्षेत्नों को प्राथमिकता देते हुए अनेक प्रभावी कदम उठाए. 

इनका मतदाताओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और लगता यही है कि मतदाताओं ने सुधारों  को आगे जारी रखने का जनादेश दिया है. जेसिंडा आर्डर्न ने एक नई तरह की शासकीय कार्यशैली को सफलता से अपनाया है. भारी जनादेश देकर जनता ने उनमें भरोसा जताते हुए उन्हें गहन जिम्मेदारियां भी दी हैं.

Web Title: Shobhna Jain's blog: Lessons from Jacinda Ardern's phenomenal victory in New Zealand

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