ब्लॉग: कॉप-27- मिस्र में 27वीं जलवायु वार्ता से क्या निकले नतीजे, कितना सफल रहा ये सम्मेलन?
By निशांत | Updated: November 21, 2022 14:58 IST2022-11-21T14:56:47+5:302022-11-21T14:58:50+5:30
मिस्र में हुई कॉप-27 सम्मेलन में एक अहम बात हुई. दरअसल, जलवायु संकट के प्रभाव के कारण होने वाले ‘नुकसान और क्षति’ से निपटने के लिए 2023 में अगले कॉप से पहले दुनिया के सबसे कमजोर जनसमूहों के लिए वित्तीय सहायता संरचना स्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई गई.

27वीं जलवायु वार्ता को मिलीजुली सफलता (फोटो- सोशल मीडिया)
संयुक्त राष्ट्र की 27वीं जलवायु वार्ता या कॉप-27 मिस्र में संपन्न हो गई. इस सम्मेलन में जहां एक ओर जलवायु संकट के सबसे कमजोर लोगों पर असर को कम करने पर अहम फैसले लिए गए, वहीं इस वार्ता में ग्लोबल वार्मिंग के कारणों को दूर करने के लिए कुछ खास देखने या सुनने को नहीं मिला.
इस कॉप में चर्चाओं के तराजू के एक पलड़े में अगर थी विकसित दुनिया की और अधिक मिटिगेशन महत्वाकांक्षा और जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार देशों की सूची का विस्तार तो दूसरे पलड़े में थी विकासशील देशों की बढ़ते जलवायु प्रभावों का सामना और उनसे निपटने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता की मांग. इस कॉप में तमाम समझौते हुए मगर ग्लासगो में तय हुई एमिशन कटौती की आधार रेखा को बमुश्किल छुआ जा सका.
इस कॉप में एक अकल्पनीय पहल जरूर हुई और वो थी जलवायु संकट के प्रभाव के कारण होने वाले ‘नुकसान और क्षति’ से निपटने के लिए 2023 में अगले कॉप से पहले, दुनिया के सबसे कमजोर जनसमूहों के लिए वित्तीय सहायता संरचना स्थापित करने की प्रतिबद्धता. इसे अकल्पनीय इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि कुछ ही समय पहले इस पर मजबूती से चर्चाओं का दौर शुरू हुआ था और कॉप में इस पर फैसला भी ले लिया गया.
ध्यान रहे कि जलवायु परिवर्तन के चलते हानि की कीमत बढ़कर 200 बिलियन डॉलर हो चुकी है. एक चिंता की बात भी रही इस सम्मेलन में. इसमें भविष्य के ऊर्जा स्रोतों के रूप में रिन्यूएबल के साथ ‘लो एमिशन या कम उत्सर्जन’ वाले ऊर्जा स्त्रोतों पर चर्चा हुई. इससे डर इस बात का बना है कि इस लो एमिशन जैसे अपरिभाषित शब्द की आड़ में नई जीवाश्म ईंधन तकनीकों का विकास शुरू हो सकता है.