अफगानिस्तान तालिबानः महिलाओं के मुर्दाघर में सत्ता की बाजी?, क्या पीछे चीन की भी भूमिका है?

By विकास मिश्रा | Updated: July 8, 2025 05:32 IST2025-07-08T05:32:18+5:302025-07-08T05:32:18+5:30

Afghanistan Taliban: एक बात तो तय है कि महिलाओं का मुर्दाघर बने अफगानिस्तान में सत्ता की बड़ी बाजी खेली जा रही है.

Afghanistan Taliban Power struggle in women's morgue Does China also have role behind this? blog Vikas Mishra | अफगानिस्तान तालिबानः महिलाओं के मुर्दाघर में सत्ता की बाजी?, क्या पीछे चीन की भी भूमिका है?

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Highlightsएक बात तो तय है कि महिलाओं का मुर्दाघर बने अफगानिस्तान में सत्ता की बड़ी बाजी खेली जा रही है.कानोंकान खबर नहीं थी कि रूस, अफगानिस्तान को मान्यता देने वाला पहला देश बनने जा रहा है.जिंदा गोश्त, जिनका इस्तेमाल मर्द की हवस पूरी करने और बच्चा पैदा करने की मशीन के अलावा और कुछ नहीं है.

Afghanistan Taliban: अगले महीने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के चार साल पूरे होने जा रहे हैं लेकिन दुनिया के किसी भी देश ने अफगानिस्तान को अब तक मान्यता नहीं दी थी. यहां तक कि पाकिस्तान ने भी नहीं! तो फिर ऐसा क्या हो गया कि अचानक रूस ने अफगानिस्तान को मान्यता दे दी! क्या इसके पीछे चीन की भी भूमिका है? क्या यह ट्रम्प और उनके अमेरिका को रूस का बड़ा चकमा है? जो भी हो, एक बात तो तय है कि महिलाओं का मुर्दाघर बने अफगानिस्तान में सत्ता की बड़ी बाजी खेली जा रही है.

दुनिया का चौंकना लाजमी था क्योंकि किसी को कानोंकान खबर नहीं थी कि रूस, अफगानिस्तान को मान्यता देने वाला पहला देश बनने जा रहा है. यहां तक कि तालिबान को सत्ता में लाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले पाकिस्तान या उसके मददगार चीन ने भी इस तरह की हिम्मत नहीं जुटाई क्योंकि महिलाओं के खिलाफ क्रूरता को लेकर दुनिया भर में तालिबान की आलोचना होती रही है.

वहां महिलाएं मुर्दा की तरह हैं. तालिबान के लिए वो महज गोश्त हैं, जिंदा गोश्त, जिनका इस्तेमाल मर्द की हवस पूरी करने और बच्चा पैदा करने की मशीन के अलावा और कुछ नहीं है. बच्चियों को स्कूल से दूर कर दिया गया है. महिलाएं अकेले घर से बाहर नहीं निकल सकतीं. अंधेरे बंद कमरे में घुटन उनकी तकदीर बन चुकी है. लेकिन जो सत्ता का खेल खेलते हैं,

वे अफगानिस्तान की एक करोड़ चालीस लाख महिलाओं और बच्चियों की फिक्र क्यों करेंगे? उन्हें तो अपनी रोटी सेंकनी है! इसीलिए उन्हें गोटी चलने और बाजी जीतने से मतलब है. अफगानिस्तान से अगस्त 2021 में अमेरिका निकल गया था और पूरे देश पर तालिबान ने कब्जा कर लिया था. उस वक्त जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति थे और डोनाल्ड ट्रम्प ने तब कहा था कि बगराम एयरबेस पर अमेरिका को नियंत्रण रखना था. अभी कुछ दिन पहले उन्होंने आरोप लगाया था कि बगराम एयरबेस पर चीन ने कब्जा कर लिया है.

दरअसल ट्रम्प ने दूसरी बार सत्ता संभाली तभी से उनके मन में यह सपना पल रहा था कि तालिबान से रिश्ते इतने सुधार लिए जाएं कि बगराम एयरबेस का नियंत्रण अमेरिका को मिल जाए. हमें यह बात अचरज भरी लग सकती है कि जो तालिबान अमेरिका से लड़ता रहा वह बगराम एयरबेस फिर से अमेरिका को क्यों देगा? लेकिन इसी को राजनीति कहते हैं.

तालिबान को पता है कि उसके विरोधियों को अमेरिका हथियार और पैसा देकर मजबूत बना सकता है और वो विरोधी किसी दिन तालिबान को फिर से कंदराओं में भेज सकते हैं. इसलिए अमेरिका से ठीकठाक रिश्ते बनाए रखना उसके हक में है. इसी बात का फायदा उठाने की कोशिश अमेरिका कर रहा है. इसी साल मार्च में एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल काबुल गया था जिसका उद्देश्य अमेरिकी पर्यटक जॉर्ज ग्लेजमैन को रिहा कराना था जिन्हें तालिबान ने दो वर्षों से कैद किया हुआ था लेकिन पर्दे के पीछे कहानी कुछ और ही थी.

अमेरिका ने तालिबान के समक्ष बगराम एयरबेस का प्रस्ताव रख दिया था. यह बात किसी तरह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तक पहुंच गई और उन्होंने नया खेल कर दिया. अफगानिस्तान का इतिहास जिन्हें पता है वे जानते हैं कि रूस वहां हमेशा ही बड़ा खिलाड़ी रहा है. बल्कि 1979 में तो तत्कालीन सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला भी कर दिया था.

वो दस साल तक वहां रहा और तालिबान का जन्म ही सोवियत रूस से जंग के लिए हुआ जिसे पैसे और हथियार अमेरिका दे रहा था. सोवियत संघ की वापसी के बाद तालिबान का शासन हुआ. फिर वक्त ने करवट ली और अमेरिका पर हमले के दोषी ओसामा बिन लादेन को लेकर तालिबान और अमेरिका में ठन गई.

अमेरिका ने हमला किया और तालिबान को बेदखल कर दिया. उस दौर में रूस ने तालिबानियों की बहुत मदद की! अब वही रिश्ता काम आ रहा है. सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही तालिबान लगातार कोशिश कर रहा था कि उसे मान्यता मिल जाए. उसे भरोसा था कि पाकिस्तान उसे मान्यता देने वाला पहला देश होगा लेकिन तहरीके तालिबान को लेकर पाकिस्तान ने जिस तरह से तालिबान को ब्लैकमेल करने की कोशिश की, उससे मामला बिगड़ गया. इधर चीन ने भी मान्यता नहीं दी.

हालांकि चीन, ईरान और भारत जैसे देशों ने उसे आधिकारिक मान्यता नहीं देने के बावजूद उससे संबंध बनाए रखा. संबंध बनाने के मामले में तो चीन कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गया. लेकिन तालिबान को तो किसी की मान्यता  चाहिए थी! यह कोशिश पूरी हुई और तालिबान सरकार द्वारा नियुक्त अफगान राजदूत गुल हसन ने मास्को में कार्यभार भी संभाल लिया.

मॉस्को स्थित अफगान दूतावास में तालिबान का सफेद झंडा फहराने लगा है. ट्रम्प को इसकी भनक भी नहीं लग पाई और खेल हो गया. रूसी समाचार एजेंसी ने जब तस्वीरें जारी कीं तब दुनिया को खबर लगी. आप पूरे परिदृश्य का विश्लेषण करें तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि रूस के साथ चीन और ईरान खड़े हैं. ये दोनों देश भी तालिबान को जल्दी ही मान्यता दे दें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

इस तिकड़ी ने बगराम एयरबेस कोे कब्जे में लेने का ट्रम्प का सपना फिलहाल तोड़ दिया है. यदि बगराम एयरबेस अमेरिका के पास चला जाता तो वह चीन और ईरान के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात होती. वो सब अपनी चिंता में व्यस्त हैं. अमेरिका भी खुद की चिंता कर रहा होगा. मुर्दा की तरह जिंदगी जी रही अफगानी महिलाओं की चिंता करने की किसे फिक्र है. चलिए, उनके नाम हम दो बूंद आंसू ही बहा लें...!  

Web Title: Afghanistan Taliban Power struggle in women's morgue Does China also have role behind this? blog Vikas Mishra

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