ब्लॉग: शहीदों के सरताज श्री गुरु अर्जुन देव जी

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Updated: June 10, 2024 11:34 IST2024-06-10T11:26:30+5:302024-06-10T11:34:06+5:30

सिख इतिहास सिख गुरुओं तथा सिख कौम की शहादत से भरा पड़ा है। इसी परंपरा में सिखों के पांचवे गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहादत को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

Blog: King of Martyrs Shri Guru Arjun Dev Ji | ब्लॉग: शहीदों के सरताज श्री गुरु अर्जुन देव जी

फाइल फोटो

Highlightsसिख इतिहास सिख गुरुओं तथा सिख कौम की शहादत से भरा पड़ा हैइसी परंपरा में सिखों के पांचवे गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहादत को भी प्रमुख स्थान दिया गया हैअमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब बनाने की सोच गुरुजी की थी, उसका नक्शा भी उन्होंने स्वयं बनाया था

सिख इतिहास सिख गुरुओं तथा सिख कौम की शहादत से भरा पड़ा है। सिख गुरुओं ने सदा प्रेम, परस्पर भाईचारे, प्रभु स्मरण, नेक जीवन जीने का संदेश जनता को दिया लेकिन जब-जब मनुष्यों पर अत्याचार, शोषण, धार्मिक उन्माद के तहत धर्म परिवर्तन जैसे अत्याचार किए गए, गुरुओं ने उनका विरोध किया और फलस्वरूप तत्कालीन शासकों द्वारा उन्हें शहीद किया गया। इसी परंपरा में सिखों के पांचवे गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहादत को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

गुरु अर्जुन देव जी का जन्म सन्‌ 1563 में 15 अप्रैल के दिन चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी के घर हुआ था। उनके अंदर के श्रेष्ठ गुणों को देखकर पिता रामदास जी ने मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी। गुरुजी ने अपने पिता द्वारा आरंभ किए गए सभी कार्यों को जिम्मेदारी से पूरा करना शुरू कर दिया। अमृतसर सरोवर की नींव गुरु रामदास जी रखवा चुके थे।

गुरु अर्जुन देव जी ने संगत के साथ मिलकर सेवा करते हुए यह सरोवर संपूर्ण करवाया। इसके पश्चात अमृतसर के बीचोंबीच श्री हरमंदिर साहिब बनाने का विचार गुरुजी ने किया। इसका नक्शा उन्होंने स्वयं बनाया तथा इसकी नींव मुस्लिम फकीर मियां मीर, जो गुरु घर के बहुत श्रद्धालु थे, उनसे रखवाई। सिख धर्म की यह उन्नति और उपलब्धियां कई लोगों को नहीं सुहाती थी।

लाहौर का दीवान चंदू गुरुजी के बेटे हरगोविंद जी से अपनी बेटी का रिश्ता टूट जाने के कारण उनका घोर विरोधी बन गया था। अकबर की मौत के बाद जहांगीर मुगल साम्राज्य के तख्त पर बैठा। उन्हीं दिनों जहांगीर के पुत्र खुसरो ने बगावत कर दी तो जहांगीर ने उसे गिरफ्तार करने का आदेश । वह पंजाब की ओर भागा तथा तरन तारन  में गुरुजी के पास पहुंचा। गुरुजी ने अपने श्रेष्ठ मानवीय गुणों के आधार पर सहजता से उसका स्वागत किया और आशीर्वाद दिया।

इससे जहांगीर बहुत क्रोधित हुआ और गुरुजी पर उल्टे सीधे आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उनसे अपनी मर्जी करवाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने झूठ का साथ देने से स्पष्ट इनकार कर दिया। जहांगीर ने उन्हें लाहौर के हाकिम मुर्तजा खान के हवाले कर उन पर मनचाहे अत्याचार करने की इजाजत दे दी। मुर्तजा खान ने गुरु घर के द्रोही चंदू के साथ मिलकर उन्हें यातनाएं देनी आरंभ कर दीं।

पहले दिन गुरुजी को गर्म तवे पर बैठा कर शीश पर गर्म रेत डाली गई फिर उन्हें देग में बैठा कर उबलते पानी में उबाला गया। 5 दिनों तक इसी प्रकार के अनेक कष्ट दिए गए। छठे दिन उनके अर्द्धमूर्छित शरीर को रावी नदी में बहा दिया गया। जब साई मियां मीर ने गुरुजी को छुड़वाने की कोशिश की तो गुरु जी ने कहा- “क्या हुआ जो यह शरीर तप रहा है! प्रभु के प्यारों को उसकी रजा में खुश रहना चाहिए।”

जहां गुरुजी की देह को बहाया गया, उस स्थान पर गुरुद्वारा डेरा साहिब बनाया गया, जो अब पाकिस्तान में है।

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