लाइव न्यूज़ :

ब्लॉग: संविधान की वास्तविक भावना को कब समझेंगे हमारे नेता?

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: December 18, 2024 06:48 IST

हमें हमारे संविधान-निर्माताओं ने बंधुता का आदर्श दिया था, हम धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर स्वयं को दूसरे से बेहतर स्थापित करने में लगे हैं.

Open in App

भले ही घोषित उद्देश्य कुछ भी रहा हो, पर संसद के दोनों सदनों में भारत के संविधान के संदर्भ में हुई चार दिन की बहस कुल मिलाकर निराश करने वाली ही थी. निश्चित रूप से यह एक ऐसा अवसर था जब हमारे सांसद संविधान को नये सिरे से समझने की कोशिश के रूप में उपयोग में ला सकते थे.

करीब 75 साल पहले हमने अपने लिए यह संविधान बनाया था और एक सपना देखा था कि इसके आधार पर हम एक नया भारत बनाएंगे. इसीलिए, यह एक अवसर था जब हम मिल-जुल कर यह आकलन करते कि हमारा यह संविधान, जो विश्व का सबसे वृहद लिखित संविधान है, अब तक अपने उद्देश्यों को पूरा करने में कितना सफल रहा है; नागरिकों से और राजनेताओं से संविधान जो अपेक्षाएं करता है, उन्हें किस हद तक पूरा किया गया है; और हमें अपने लक्ष्यों तक पहुंचाने में यह संविधान अबतक कितना कुछ कर पाया है.

वस्तुतः यह आत्म-विश्लेषण का भी अवसर था. अपनी उपलब्धियों और कमियों का ईमानदार आकलन होना चाहिए था. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कुछ हुआ नहीं. इस संदर्भ में संसद के दोनों सदनों में जो कुछ हुआ वह कुल-मिलाकर निराश करने वाला ही था. सारी बहस के दौरान कहीं ऐसा नहीं लगा कि  सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष ने इस संदर्भ में कोई विशेष तैयारी की थी. एक-दूसरे पर आरोपों-प्रत्यारोपों का वही सिलसिला इस बार भी दिखा जो दुर्भाग्य से हमारी संसद में होने वाली बहसों की एक पहचान बन चुका है.

यह कहना गलत होगा कि हमारी संसद में सही सोच वाले और दूसरे की बात को सही ढंग से समझने वाले लोग हैं ही नहीं, पर पता नहीं क्यों हमारे राजनीतिक दल और अधिकांश राजनेता व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों से ऊपर उठकर कुछ सोचने-कहने के लिए तैयार ही नहीं दिखते.

यह याद रखना जरूरी है कि हमने संविधान जब बनाया तो देश विभाजन की त्रासदी से गुजर रहा था. सांप्रदायिकता की आग  में जलने के बावजूद तब हमारे नेतृत्व ने हमें एक पंथ-निरपेक्ष समाज के निर्माण का संदेश दिया था, हमें बताया था कि समानता का अर्थ यह है कि धर्म और जाति से ऊपर उठकर एक मानवीय समाज की रचना करके ही हम एक न्यायपूर्ण व्यवस्था को अपना सकते हैं. हमारे नेता आज संविधान को सर्वोपरि मानने की बात तो करते हैं, पर उनकी करनी में वह सब दिखाई नहीं देता जिसकी अपेक्षा हमारा संविधान उनसे करता है.

हमें हमारे संविधान-निर्माताओं ने बंधुता का आदर्श दिया था, हम धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर स्वयं को दूसरे से बेहतर स्थापित करने में लगे हैं. संविधान को लागू करने के 75वें साल में हमें अपने संविधान के आमुख में कही बातों को सही अर्थों में समझने की कोशिश करनी चाहिए थी, पर संसद में हुई बहस व्यक्तियों की आलोचना में सिमट कर रह गई.

टॅग्स :संविधान दिवसभारतBJPकांग्रेसजेडीयूइंडिया गठबंधनटीएमसी
Open in App

संबंधित खबरें

भारतशशि थरूर को व्लादिमीर पुतिन के लिए राष्ट्रपति के भोज में न्योता, राहुल गांधी और खड़गे को नहीं

भारतबिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र हुआ अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित, पक्ष और विपक्ष के बीच देखने को मिली हल्की नोकझोंक

भारत‘पहलगाम से क्रोकस सिटी हॉल तक’: PM मोदी और पुतिन ने मिलकर आतंकवाद, व्यापार और भारत-रूस दोस्ती पर बात की

भारतPutin India Visit: एयरपोर्ट पर पीएम मोदी ने गले लगाकर किया रूसी राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत, एक ही कार में हुए रवाना, देखें तस्वीरें

भारतPutin India Visit: पुतिन ने राजघाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी, देखें वीडियो

भारत अधिक खबरें

भारतIndiGo Crisis: सरकार ने हाई-लेवल जांच के आदेश दिए, DGCA के FDTL ऑर्डर तुरंत प्रभाव से रोके गए

भारतBihar: तेजप्रताप यादव ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर

भारतबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम हुआ लंदन के वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज, संस्थान ने दी बधाई

भारतIndiGo Flight Cancel: इंडिगो संकट के बीच DGCA का बड़ा फैसला, पायलटों के लिए उड़ान ड्यूटी मानदंडों में दी ढील

भारतरेपो दर में कटौती से घर के लिए कर्ज होगा सस्ता, मांग बढ़ेगी: रियल एस्टेट