विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: जनता के असली मुद्दों को समझने की जरूरत

By विश्वनाथ सचदेव | Published: October 31, 2019 02:04 PM2019-10-31T14:04:07+5:302019-10-31T14:04:07+5:30

Vishwanath Sachdev blog: People need to understand the real issues | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: जनता के असली मुद्दों को समझने की जरूरत

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: जनता के असली मुद्दों को समझने की जरूरत

महाराष्ट्र का बीड़ जिला आजकल चर्चा में है और कारण स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की बेटी का चुनाव हार जाना है. देश में ऐसे चुनाव-क्षेत्रों की कमी नहीं है जो राजनीतिक परिवारों की ‘जागीर’  माने जाते हैं. बीड़ ऐसा ही चुनाव-क्षेत्र है. जीता तो यहां से मुंडे-परिवार का ही एक सदस्य है, पर वह स्वर्गीय नेता की बेटी नहीं, भतीजा है. चर्चा इसलिए हो रही है कि बेटी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लग गई है. पर मुझे लगता है बीड़ की चर्चा एक और कारण से भी होनी चाहिए, और यह कारण कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. बीड़ जिले में एक गांव है सौंदाना.

इस छोटे-से गांव में एक छोटे से किसान का हल क्षतिग्रस्त हो गया है और लकड़ी के उस हल को ठीक करने वाला सुतार गांव से बाहर गया हुआ है. वह अकेला सुतार बचा है गांव में इस तरह के काम के लिए. वैसे, अब काम भी नहीं बचा है सुतारों के लिए गांव में. पर हल का टूट जाना भी कोई कम महत्वपूर्ण नहीं है. उसकी मरम्मत पर किसी की खेती निर्भर करती है.

कुछ अर्सा पहले तक और भी सुतार थे गांव में, पर काम की कमी के चलते धीरे-धीरे गांव छोड़कर चले गए. अब मोहन भालेकर अकेला बचा है, जो अपना यह पुश्तैनी काम कर रहा है. उसके तीन बच्चे हैं, पर बाप-दादों के काम में उनकी कोई रुचि नहीं है- इनमें से दो कॉलेज में पढ़ रहे हैं और तीसरा ड्राइवरी कर रहा. इसका मतलब यह है कि भालेकर के बाद कारपेंटरी का काम करने वाला गांव में कोई नहीं बचेगा. निश्चित रूप से इसका बड़ा कारण गांव में काम की कमी तो है, पर यह तो संभव नहीं कि कारपेंटरी का काम ही न बचे गांव में. जैसे यह हल के टूटने वाला काम है. यह भी सही है कि अब गांव में हल भी कम होते जा रहे हैं.

अब ट्रैक्टर चलते हैं खेतों में. पर वह किसान तो लकड़ी के हल पर ही निर्भर है, जिसकी खेती की जमीन कम है और जिसकी आय इतनी नहीं है कि ट्रैक्टर किराये पर ले सके. वह ही भालेकर जैसे व्यक्ति पर निर्भर करेगा. लेकिन अब जो सवाल उठ रहा है वह यह है कि भालेकर जैसे व्यक्ति किस पर निर्भर करें? सौंदाना गांव में जिस किसान का हल टूट गया है, वह या उस जैसे लोग खेती की उपज का ही एक हिस्सा उनके लिए काम करने वाले लोगों को दिया करते थे. वह किसान न तो ट्रैक्टर का बारह सौ रुपया प्रतिदिन किराया दे सकता है और न ही भालेकर को मेहनताना देने की स्थिति में है.

एक दशक पहले तक हल वगैरह की मरम्मत के बदले भालेकर को पच्चीस बोरी जवारी सालाना मिला करती थी. लगभग चालीस घरों का काम किया करता था वह. पर अब उसके ग्राहकों की संख्या कम हो गई है- कुल पांच बोरी जवारी ही उसे मिल पाती है. अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए उसे अब खेत में मजदूरी भी करनी पड़ती है. हालत यह हो गई है कि अब वह मजदूरी भी मुश्किल होती जा रही है. शेष महाराष्ट्र में वर्षा अच्छी होने के बावजूद बीड़ जिले में सामान्य से कम 73 प्रतिशत वर्षा ही हुई है- यानी किसान की मुसीबत बरकरार है. पर भालेकर का कहना है, ‘मैं हल की मरम्मत नहीं करूंगा तो कौन करेगा, जब दे पाएगा संबंधित किसान मजदूरी तो दे देगा.’  

स्थिति निराशा के कर्तव्य वाली है, यानी एक-दूसरे की मदद वाली. किसान अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और किसानों पर निर्भर रहने वाले गांवों के बाकी धंधे वाले धंधा चौपट हो जाने की त्रासदी झेल रहे हैं. बीड़ जिला महाराष्ट्र का वह इलाका है जहां का किसान लगातार सूखे की मार झेलता आ रहा है. किसानों की आत्महत्याओं के मामले भी यहां लगातार सामने आते रहे हैं. पांच साल पहले हुए चुनाव में भाजपा ने किसानों की आत्महत्या को जोर-शोर से चुनावी मुद्दा बनाया था. इस बार स्वयं भाजपा की सरकार कठघरे में खड़ी थी. पर उसने चुनावों में किसानों की बदहाली और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को छुआ तक नहीं. उसने कथित राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया और पिछली बार से कम ही सही, पर वोटों की फसल काटने में सफल ही हुई भाजपा.

सत्ता फिर उसके हाथ में है. पर बीड़ जिले के सौंदाना गांव का भालेकर इस सवाल का जवाब मांग रहा है कि उसकी रोजी-रोटी का क्या होगा? सौंदाना का वह किसान, जिसका हल टूट गया है, पूछ रहा है भालेकर गांव से चला गया तो उसका हल कैसे सुधरेगा? उसके खेत में बुवाई कैसे होगी? बुवाई नहीं हुई तो फसल कैसे उगेगी?

हमारी त्रासदी यह भी है कि ये और ऐसे सवाल चिंता का विषय नहीं बन पा रहे. महाराष्ट्र में भाजपा की जीत की चमक का कम होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि राज्य के किसानों को उस उपेक्षा की पीड़ा है जो पिछले पांच साल तक भाजपा की सरकार ने उसके प्रति दिखाई है. चुनाव-प्रचार के दौरान भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने किसानों की बदहाली के मुद्दे को महत्व देना जरूरी नहीं समझा.

सवाल जनता के असली मुद्दों को समझने की आवश्यकता का है. धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, राष्ट्रवाद के भावुक नारों के सहारे की जाने वाली राजनीति सत्ता के सुख भले ही दे दे, एक सुखी देश के होने का संतोष कभी नहीं दे सकती. टूटे हुए हल की मरम्मत जरूरी है, इस बात के मर्म को समझने की आवश्यकता है. किसी भालेकर के कारीगर से मजदूर बनने की विवशता, हमारे भविष्य पर लगा एक प्रश्नचिह्न है. इसका उत्तर तलाशना ही होगा.

Web Title: Vishwanath Sachdev blog: People need to understand the real issues

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